सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
कुछ भी बन बस कायर मत बन।पाश
की यह लाइन जीने की कला सिखाती है भारतीय शिक्षा आन्दोलन की शुरुआत
डोरैजियो नाम के एक आयरिश और बंगाली पिता-- माता की संतान से मिलती है |
जो 1830 के आस -- पास बंगाल में एक युवा शिक्षक व सामाजिक कार्यकर्ता था जो
नौजवानों के बीच में प्रगतिशील सक्रियता के लिए इतना लोकप्रिय था | उसे
नौकरी से निकाल दिया गया वो क्रांतिकारी नौजवान अल्प आयु में ही काल कलवित
हो गया | परन्तु उसके दिए गये विचारों के मशाल को उसके शिष्यों ने उस काल
परिवेश में आगे बढाया |
1857 के बाद भारतीय पुर्न जागरण दौर आता है | उस काल खण्ड में मुख्यत:
स्वामी दयानन्द ने इसके साथ ही शिकागो में भारतीय दर्शन के व्याख्यान से
पूरी दुनिया में एक नई क्रान्ति का परचम फ़ैलाने वाले स्वामी विवेकानन्द व
राजा राम मोहन राय जैसे महान पुरुषो के विचारों से छात्रो और नौजवानों में
व्यापक असर पडा जिसके कारण छात्र आन्दोलनों में एक नया उत्तेजना पैदा किया |
युगान्तर और विप्लव क्रांतिकारी संगठनों को बंगाल में अजीत सिंह , भाई
परमानन्द, सूफी अम्बा प्रसाद के विचारों से उत्तरीय भारत में छात्रो ,
नौजवानों पर क्रांतिकारी चेतना विकसित करने में सफल रहे |
लाल , बाल पाल के गरम् दल और रामप्रसाद बिस्मिल की हिन्दुस्तानी
प्रजातांत्रिक सेना की अदम्य वीरता युवको को आत्माहुति के लिए प्रेरित करती
रही है |
1916 में गांधी युग शुरू होने के बाद शिक्षा तथा नौकरियों का
बहिष्कार करके लाखो -- लाख युवा राष्ट्र मुक्ति के यज्ञ की बलिवेदी पर
अपना सर्वस्र होम करने के लिए सडको पर उतरते है , मुकदमा, जेल , फाँसी इनके
अरमान थे उस क्रान्ति पथ का शहीदे आजम भगत सिंह के साथ वैज्ञानिक
दृष्टिकोण और मार्क्सवादी क्रांतिकारी विचारधारा का एक नया युग शुरू होने
के बाद छात्रो , नौजवानों को , तेभागा , तेलगाना और नक्सलबाड़ी के सशत्र
क्रांतिकारी आन्दोलन प्रेरित करते है | वर्तमान में व्यवस्था परिवर्तन के
प्रयास में संसद की परिक्रमा करने वालो ने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण
आन्दोलन , समाजवादियो के हिन्दी आन्दोलन और विभिन्न राजनैतिक पार्टियों
द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को भर्ती करने के लिए विभिन्न नामो और झण्डो से
बने रंग -- बिरंगे छात्र संगठनों ने छात्र आन्दोलन , छात्र राजनीति ,
छात्र यूनियन और छोटे बड़े चुनाव के लिए के लिए सफल -- असफल उम्मीदवारों की
कतारे तैयार करने का काम तो किया युवाओं की आँखों में व्यवस्था परिवर्तन
के सपने जगाए मगर व्यवस्था और सत्ता की आक्टोपसी जकड़बन्दी से मानवता की
मुक्ति के सपने साकार करने में न केवल पूरी तरह असफल रहे बल्कि कुछ और
जनविरोधी व्यक्तियों को सत्ता प्रतिष्ठान के परिसर में खड़ा करते चले गये
जिन्होंने बखूबी शासक वर्गो की सेवा करने में कोई कसर नही छोड़ी |
साम्प्रदायिकता , जातिवाद , और शार्टकट के जरिये जल्दी से अमीर बन
जाने का लालच क्रांतिकारी युग परिवर्तन के विराट स्वपन के तुलना में युवाओं
को एन जी ओ और चिटफंड की चेन चलाने वाली कम्पनियों के मकडजाल में सफलता
पूर्वक उलझा दिया है | अन्ना व बाबा रामदेव के आन्दोलन ने हताश छात्रो --
नौजवानों की आँखों में अकस्मात एक बारगी नई रोशनी की चमक पैदा तो की मगर 18
महीने के अन्दर ही उससे भी परिवर्तन गामी युवा मन का मोह भंग हो चुका है |
ऐसे में छात्र आन्दोलन और युवा आन्दोलन दोनों ही इस देश में अभी भी
क्रान्ति के सपने के साथ दो मुख्य धाराओं में टूटकर धीरे -- धीरे आगे बढ़ते
चले जा रहे है | एक और आतंकवादी सैन्य कार्य दिशा के सशत्र योद्धाओं के
रूप में आदिवासी ( जल , जंगल , जमीन ) भारत की पीढ़ा के साथ खड़े है तो दूसरी
और शहीदे आजम भगत सिंह के सपनो को अपनी मंजिल मानते हुए , देश के कोने --
कोने में जन दिशा , शिक्षा , वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार -- प्रसार ,
चेतना स्तर का परिष्कार , लाइब्रेरियो , पर्चो , पत्रिकाओं , अध्ययन चक्रो
, गोष्ठियों
और नुक्कड़ नाटको , दीवार पत्रको , तथा जनसंपर्क के प्रयास में रात दिन खून
-- पसीना एक करके एक के बाद एक नये -- नये छात्रो को क्रान्ति के मन्त्र से
दीक्षित करते चले जा रहे है | 1976 -- 77 में भारतीय राजनीति ने एक नया
मोड़ लिया जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में देश में वंशवाद को तोड़ने के लिए
नये परिवर्तन के साथ महाविद्यालय व विश्व विद्यालय के छात्रो ने समाजवादी
धारा को आगे बढाया उसी आन्दोलन की पौधों में लालू यादव , शरद यादव ,
रामबिलास पासवान के साथ प्रफुल्ल महन्तों ने भारतीय राजनीति में दस्तक दिया
पर सत्ता की चकाचौध में वो छात्रो के हितो को भूलकर नव धनाढ्य लोगो के साथ
हो लिए भारतीय राजनीति में उसके बाद कोई भी राष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलन नही
हुआ | वर्षो बाद इलाहाबाद विश्व विद्यालय के छात्रो ने आज फिर एक बार
अंगड़ाई ली है उसी क्रम में विश्व विद्यालय के सीनेट हाल में '' युवा संवाद
'' के पहल पर दो दिवसीय गोष्ठी का आयोजन किया | इस परिसंवाद के प्रथम सत्र
का उदघाटन महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय विश्व विद्यालय वर्धा के कुलपति व
पूर्व पुलिस अधिकारी श्री विभूति नारायण राय ने छात्रो को संबोधित करते
हुए कहा कि आज छात्रो के समक्ष वर्तमान में बड़ी चुनौतिया खड़ी है इन
चुनौतियों को गम्भीरता से समझना होगा और इन चुनौतियों का सामना करने के लिए
प्रत्येक छात्रो को सामने आना होगा | उन्होंने एक मात्र '' आस्कर प्राप्त
'' सत्यजीत रे की फिल्म '' अप्पू सोनार '' से परिभाषित करते हुए तत्पश्चात
इस फिल्म के कथानक को तत्कालीन सामाजिक परिवेश से जोड़ते हुए युवाओं को यह
सोचने पर मजबूर किया -- क्या सोचा जाए ?
वर्तमान पूंजीवाद , ब्रांडवाद से युवाओं को आगाह किया की वे तार्किक होकर
इन चीजो के समक्ष प्रस्तुत हो और युवाओं को प्रश्नाकुल होने का सुझाव दिया
और संकेत भी किया विश्व की पूंजीवादी व्यवस्था की साजिशो से सतर्क रहने की
आवश्यकता पर बल दिया | क्रम को आगे बढाते हुए इलाहाबाद विश्व विद्यालय के
राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर रमेश दीक्षित ने अपने संबोधन में कहा की
समकालीन युवाओं में कई श्रेणिया है | एक रिक्शा चालाक है तो एक ए सी में
कम्प्यूटर में कार्य करता है परिस्थितिया युवाओं के समझदारी व सोच को
निर्धारित करती है | पिछले कई दशको से युवाओं द्वारा राष्ट्रीय फलक पर कोई
आन्दोलन नही हुआ | प्रो दीक्षित ने शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए
कहा की आज के युवाओं को क्रांतिकारी विचारों को पढ़ना चाहिए | परन्तु आज का
युवा स्वीकारोक्ति से बंधा चला जा रहा है | आज फिर से वही प्रतिरोध की
क्षमता का प्रदर्शन युवाओं को करना होगा जो शहीदे आजम भगत सिंह ने किया था |
आज प्रतिरोध की भावना खत्म हो रही है यह देश और समाज के लिए घातक है |
प्रथम दिन के दूसरे सत्र में कवि सम्मलेन में आये गणमान्य कवियों ने भी
अपने कविताओं के माध्यम से युवा मन के दशा व दिशा पर काब्य पाठ किया |
युवा
संवाद द्वारा आयोजित परिसंवाद के द्दितीय दिन के तीसरे सत्र में युवा
संवाद --- एक पहल युवा दृष्टि दशा और दिशा , भूमण्डलीकरण , बाजार वाद
और युवा संस्कृति विषय पर चर्चा करते हुए रीडर संजय भदौरिया ने कहा कि
आज
पूरी दुनिया एक ग्राम के रूप में बदल गयी है | अमरीकी साम्राज्यवाद इस पूरी
दुनिया में अपने को दादा ( गुण्डा ) घोषित करके दूसरे देशो में सरकार
गिराने से लेकर सैनिक कार्यवाही तक कर रहा है | ये सारी बाते भूमण्डलीकरण
के विपरीत है | हमारा देश जो '' सर्वजन हिताय: सर्वजन सुखाय: का नारा देता
है ठीक उसके विपरीत कार्य कर रहे है वर्तमान के जन नेता | देश में ही नही
वरन पूरी दुनिया में चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ है |
पूंजीवादी व्यवस्था के दलालों ने पूरी दुनिया को भूमण्डलीकरण व वैश्वीकरण
की चपेट में ले लिया है | 1990 में जब से इस देश में डंकल प्रस्ताव व नई
आर्थिक नीति लागू हुई उसके बाद से ही सत्ता और तिजोरियो का मिलन पर्व शुरू
हो गया और देश के नौजवानों , छात्रो , बुनकरों , लघु सीमांत किसानो के साथ
ही आम आदमी के हक हुकूक को काटते चले जा रहे है | इसी का परिणाम है की आज
आम चीजो से सरकार सब्सिडी हटाती जा रही है | इसके साथ ही देश में माल
संस्कृति को बढावा देकर देश के सारे वैविध को एक रूपता देकर हमारी भाषा ,
संस्कृति और परम्पराओं के जड़ो को खत्म करने की साजिश चली जा रही है | किसी
भी देश में उसकी भाषा उसकी अस्मिता होती है हमारे हिन्दी भाषा को नष्ट --
भ्रष्ट करने की कोशिश की जा रही है | आज स्थिति यह बन गयी है अखबारों में
हमारे खबरों के लिए जगह नही है | नव साम्राज्यवाद के साथ हमारे नौजवानों ,
छात्रो को एक और युद्ध के लिए अभी से तैयार होना पडेगा | हम आर्थिक गुलामी
के मकडजाल में फँसते चले जा रहे है और देश पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का
कब्जा बढ़ता जा रहा है जो युवा पीढ़ी के लिए खतरनाक है | अंग्रेजो की गुलामी
के दासता में तो चंद दलाल थे परन्तु आज हर गली नुक्कड़ में इतने दलाल पैदा
हो गये है इनको चिन्हित करना मुश्किल है | विकास के नाम पर हमारी सरकारे
आम किसानो की जमीने हड़प रही है व केंद्र सरकार राज्य सरकार द्वारा संचालित
व्यवस्था को ध्वस्त करके देश के नव धनाढ्य और पूंजी के हाथो में शिक्षा को
बेचा जा रहा है और शिक्षा को इतना मंहगा बनाया जा रहा है की आने वाले कल
में आम आदमी के बेटी -- बेटे शिक्षा से मरहूम रहे |
गोष्ठी के क्रम को आगे बढ़ते हए पवन जायसवाल ने कहा कि आज हम सब लोगो
के बीच संवाद हीनता की कमी होती जा रही है | इस वर्तमान समाज को फिर से नया
जीवन देना होगा पूरे विश्व को आज फिर एक नये रौशनी की जरूरत है | वर्तमान
परिवेश में परिवार के साथ ही समाज की दशा व दिशा पर सोचने की आवश्यकता है
| हम सब अपने आने वाले कल के भविष्य में बच्चो को कौन सा समाज देने जा रहे
है | मुझे यह कहने में संकोच नही की हमारे देश के नेताओं ने भारत को
आर्थिक रूप से गुलाम बना दिया है | विदेशो से आ कर यहाँ पर देश के आवाम से
अनुचित मुनाफ़ा कमाकर हमे लूटा जा रहा है |
मार्क्स ने कहा था हम राजनीति के गुलामी से मुक्त हो सकते है पर आर्थिक गुलामी से मुक्त होने में हजारो वर्ष लग जायेंगे |
प्रो
-- जगदीश खत्री ने बताया कि अगर दिशा और दृष्टि सही होगा तभी हम अपने
लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है | '' या रब तेरी दुनिया फानी देखी --- हर
चीज में तेरी कहानी देखी |
हमे अपनी मानसिकता को बदलना होगा उन्होंने भूमण्डलीकरण की पैरवी करते हुए कहा की हम सिर्फ नकारत्मक चीजो को देख रहे है |
रविनन्दनसिंह
ने युवाऔ को ललकारते हुए इस परिसंवाद को दिशा देते हुए छात्रो का आवाहन
किया हम योद्धा है हमे हर चुनौती के प्रतिरोध का उत्तर देना चाहिए आज
आवश्यकता है कि नौजवान छात्र अपने को विचारों से लैस करे | जहा बुद्धि है
वही द्दंद है | राजनीति गन्दी नही है इसमें गन्दे लोग आ गये है जो सामन्ती
मानसिकता में जीते है |
पदमा सिंह ने क्रम को आगे करते हुए बोला कि आज फिर से छात्रो नौजवानों को
प्रतिरोध की ज़िंदा मिशाल बनना होगा उनमे भविष्य के नये विचारों के बीज
डालकर सीचना होगा | नौजवान होने की शर्त होती है सपने देखना , सपनो की उड़ान
भरना और उन सपनो में रंग भरना | हमेशा बड़े और व्यापक सपने देखना चाहिए |
विज्ञान के औजार बुरे नही है हम अगर उन औजारों को अपने हथियार के रूप में
इस्तेमाल करे तो निश्चित ही नये विचारो का सृजन होगा | एक नई क्रान्ति का
उदय होगा | सरकारों का धर्म होता है वो अपने आवाम को रोटी कपड़ा और मकान
मुहैया कराए || वर्तमान में उत्तर पदेश में सात दंगे हो चुके है | राजनीति
सारे वर्गो को आपस में दुश्मन बनाने का कुचक्र रच रहा है क्या यही है 21
सदी का भारत है | नौजवान वैज्ञानिक चिंतन के हथियार से अपने को तैयार करे
तर्कशील बने और खुद एक अच्छे इंसान होने की पहचान को स्थापित करे |
संकीर्णताओ से इतर हो युवा वैज्ञानिक चिन्तंत से ही नकारत्मक समुदाय को
समाप्त करना होगा | देशी व विदेशी पूंजी के गुलामी के जंजीरों को तोड़ना
होगा | पूंजीवाद हमारी समस्याओं का समाधान नही है | दुनिया में उच्च शिक्षा
में 33% नौजवान की भागीदारी है हमारे भारत में 17% उच्च शिक्षा में
भागीदारी है | इसी क्रम में धनजय चोपड़ा ने बड़े सहज भाव से बोला कि बाजार का
मीडिया से रिश्ता है इसीलिए अब आम आदमी की खबरे पन्नो से गायब है जहा
पूंजी आती है मुनाफे की बात भी आती है |
आज हमारे देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनिया पानी का व्यापार कर रही है हमारा
ही पानी जमीन से खीचकर भारी मुनाफा कमा रही है जरा सोचिये क्या आने वाले कल
में हमारे पास पानी बचेगा | अगर आज का नौजावन सोया रहा तो हमे हाशिये पे
जाने से कोई नही रोक सकता | सत्र के अध्यक्ष वरिष्ठ कविi अजामिल ने कहा कि
आज फिर बदलाव की जरूरत है 70 और 80 के दशक में सेमिनार , गोष्ठिया और
विचारों का आदान प्रदान होता रहा है मगर r उसके बाद से इसमें शून्यता आ गयी
है उन्होंने कहा की घर में क्या करना है वो घर का मालिक तय करेगा जो अच्छा
है उसे आने दो कचड़े को उठाकर बाहर फेंक दो | | नव साम्राज्यवाद हमारे देश
की ताकत और संसाधनों का बखूबी इस्तेमाल कर रहा है और हम खामोश तमाशबीन बन
के खड़े है | उन्होंने युवाओं को आगाह किया कि हमारे सांस्कृतिक पर्वो को
मेला का स्वरुप दिया जा रहा है जो खतरनाक है | यह बाजारवाद का ही प्रभाव है
इसका प्रमाण अब की कुम्भ में साफ़ दृष्टिगोचर हो रहा था क्या ये सच है जो
सहा जा रहा है ---- आत्मा की सतह पर बर्फ की मानिन्द|
हम बच्चो के हाथो में कैसी दुनिया छोड़ने जा रहे है इस पर गम्भीरता से चिन्तन व मंथन की आवश्यकता है |
परिसंवाद
के आखरी सत्र के विषय ''भारतीय लोकतंत्र और युवा '' पर काशी हिन्दू विश्व
विद्यालय के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष देवानंद सिंह ने सवाल उठाया आजादी
के 65 साल में हमने क्या पाया और क्या खोया प्रिन्ट मीडिया हो या
इलेक्ट्रानिक मीडिया वो समाज में नकारत्मक खबरे परोसने में सबसे अहम भूमिका
निभा रही है | जैसा समाज होगा वैसे ही लोग बनेगे | 65 सालो में नौजवान छला
गया है | 62 के बाद में युवाओं का गुस्सा फूटा उसके ढाई साल बाद असम में
नौजवानों को सत्ता मिली पर वहा भी विश्वास टूटा | आज वर्तमान भारत प्रसव
पीड़ा से गुजर रहा है , नया भारत बनाने और विकसित करने के लिए यह देश छात्रो
और नौजवानों को चुनौती दे रहा है | हिन्दुस्तान असुरक्षित है , कोई विकल्प
नही नजर आ रहा है आज नौजवानों को खुद विकल्प खोजना होगा |राष्ट्र वाद की
भावना जितनी मजबूत होगी देश उतना ही मजबूत होगा | दुर्भाग्य से यहाँ पढा
लिखा तबका घोर जातिवादी व्यवस्था में फंसा पडा है |
इलाहाबाद विश्व विद्यालय के पूर्व अध्यक्ष के के राय ने कहा की आज वर्षो
बाद इस विश्व विद्यालय के नौजवानों ने जो अगड़ाई ली है उससे लगा कि विचारों
की धारा पर बरसों से जमी धुल धीरे धीरे छट रही है प्रतिरोध की आवाज को
सत्ता ने पचा लिया है और उसका इस्तेमाल वे अपने लिए कर रही है | पूर्व
अध्यक्ष विनोद कुमार दुबे ने सम्वाद को आगे बढ़ते हुए कहा की लोकतंत्र की
कड़ी टूट रही है | इस लोकतंत्र को बहाल रखने के लिए हम नौजवानों छात्रो को
दूसरी आजादी के संघर्ष का विगुल बजाना है | सच्चे लोकतंत्र में टकराना
जरूरी है | जिन्दा हो तो जिन्दा रहने का सपना देखो | निराश बैठने से कुछ
नही होने वाला है | लोकतंत्र की बहाली के लिए विष पीना पडेगा | तभी युवाओं
की सच्ची भूमिका सार्थक होगी और लोकतंत्र का सपना साकार करना होगा | तुफानो
से आँख मिलाओ सैलाबों से हाथ मिलाओ
इसी क्रम मुख्य अतिथि जे एन यू के पूर्व अध्यक्ष व राज्य सभा सदस्य देवी
प्रसाद त्रिपाठी ने युवाओं से अपील करते हुए कहा अँधेरे को चीरते
हुए
दीपक से जिन्दगी चलती है | भारत ही नही पूरे विश्व के सभ्यताओं के आरम्भ से
धर्म, राजनीत ,अर्थ ,साहित्य चिन्तंन जो भी बड़ा कार्य हुआ उसको अंजाम दिया
सब नौजवानो ने दिया भारतीय नवजागरण काल स्वामी विवेकानन्द ने शुरुआत
की और प्रगतिशील व वैज्ञानिक क्रान्ति के अगुवा भगत सिंह ने अंग्रेजी
साम्राज्यवाद को सोचने पर मजबूर कर दिया आज भारत की सबसे बड़ी शक्ति उसका
नौजवान है 35 वर्ष तक के नौजवान हमारे देश में 66% है हमारे पास अपार उर्जा
है आज तक जितने भी संघर्ष हुए उसमे नौजवानों की जबर्दस्त भागीदारी रही है
| छात्रो नौजवानों की बहुत से बुनियादी समस्याए है | जातिवादी ,
सम्प्रदायवाद , धर्मवाद से परिवर्तन का संघर्ष नही लड़ा जा सकता है ,
परिवर्तन की शक्तिया नये विचारों से आएगी || आज इंग्लैण्ड में नये आर्थिक
नीति के खिलाफ वहा का नौजवान संघर्ष के रास्ते पर खड़ा है | संघर्षो की छाँव
में असली आजादी पलती है इतिहास उस और झुक जाता है जिस और जवानी चलती है
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इलाहाबाद विश्व विद्यालय के पूर्व अध्यक्ष
श्याम कृष्ण पांडये ने नौजवानों को संबोधित करते हुए कहा कि
विश्वविद्यालय का यह सीनेट हाल राष्ट्रीय छात्र आंदोलनों का गवाह रहा है |
1968 में इस सीनेट हाल में 15 दिन बहस चली तब प्रसाशनिक प्रतियोगिताओं में
हिन्दी और अन्य भाषाओं को माध्यम बनाया गया | 14 सितम्बर 1949 में हिन्दी
को राष्ट्रीय भाषा घोषित तो किया गया पर उसके साथ शर्त लगा दी गयी की
अंग्रजी भाषा इसकी माध्यम रहेगी | उन्होंने आज के युवा और नौजवानों को इस
पहल के लिए साधुवाद देते हुए कहा की वर्षो बाद इन नौजवानों ने उस परम्परा
को फिर से जीवित किया है जो वक्त के धुन्ध में खत्म सा हो गया था | इस
परिसंवाद को कराने में विशेष भूमिका में सर्वेन्द्र प्रताप शाई '' मन्ना ''
प्रमुख थे उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की इस माध्यम से हमने
पुरानी पीढी और नये पीढी के बीच संवाद जोड़ने की शुरुआत की है ताकि हमारे
पुरानी पीढी के छात्र नेता हम लोगो को दिशा निर्देशन दे सके | विश्व
विद्यालय के मेधावी छात्र शिवाजी सिंह ने परिसंवाद पे प्रतिक्रिया देते हुए
कहा की युवा का अभिप्राय आयु से नही वरन विचारों से है | अगर किसी मानव
में नये विचारों से सामंजस्य बनाने की क्षमता नही है तो वह युवा नही हो
सकता | वक्ताओं से यह बात निकल के नही आई | जे . एन यू के छात्र आलोक सिंह
चुन्ना ने कहा की आजादी के बाद से देश के युवाओं के ऊर्जा का विभिन्न लोगो
ने अपनी तरह से शोषण किया है उनके कार्य सिद्द होते ही नौजवानों को
उन्होंने दूध के मक्खी की तरह निकल फेका है | आज युवा पीढी जो निराशा और
हताशा में जी रही थी वो फिर से अपने नये तेवर के साथ संघर्ष के लिए रणभूमि
में तैयार होने के लिए खड़ी हो रही है और इसकी शुरुआत हो चुकी है और आने
वाले कल में इस बहस को हम लोग पूरे देश के छात्र नौजवानों के बीच में लेकर
जायेंगे और इस सड़ी -- गली व्यवस्था के विरुद्ध हम फिर एक जुट होकर खड़े
होंगे |
धनजय सिंह ने कहा की विश्व विद्यालय में दो दशको से सन्नाटा छाया हुआ था
विचारों का एक संवादहीनता आ चुकी थी परिसर में हमारे नीति नियामक लोग हम
छात्रो के भविष्य के साथ लगातार खिलवाड़ कर रहे है ऐसे में फिर से नौजवानों
छात्रो को जगाने ले लिए यह प्रयास शुरू किया गया है | दुष्यंत कुमार की यह
नज्म बहुत प्रेरित करती है |
कुछ भी बन बस कायर मत बन।
ठोकर मार पटक मत माथा
तेरी राह रोकते पाहन
कुछ भी बन बस कायर मत बन।
तेरी रक्षा का न मोल है
पर तेरा मानव अनमोल है
यह मिटता है वह बनता है
अर्पण कर सर्वस्व मनुज को
कर न दुष्ट को आत्म समर्पण
कुछ भी बन बस कायर मत बन। -सुनील दत्ता
पत्रकार