मंगलवार, 23 जुलाई 2024

ठेले पर नेमप्लेट

ठेले पर नेमप्लेट ________________________________________________ जब कुछ सिपाही फल के ठेले पर फलवाले के नाम का बोर्ड चिपकाने की कवायद कर रहे थे,तो दशहरी आम ने लंगड़ा आम से धीरे से पूछा,' ये क्या हो रहा!' ' नया देश बनाया जा रहा! विकसित देश टाइप कुछ!!!' लंगड़ा आम ने धीरे से जवाब दिया। ' ऐसे बनेगा!' ' बिलकुल!' ' अविष्कार की जगह जहां बहिष्कार होगा और नवाचार की जगह व्यभिचार होगा! क्यों!' ' हां ऐसे ही!' ' अरे मैंने तो तुकबंदी की थी यार!' ' तुकबंदी में ही तुक है!' ' ऐसे कैसे!' ' ऐसे ही!' ' अबे ऐसे कैसे!' ' समझ! दरअस्ल हमारी जाति-धर्म निर्धारित की जा रही है!' ' पगले हो क्या! हमारी कौन-सी जाति-धर्म!' ' जो बेचने वाले की होगी,वही हमारी होगी! सिंपल!!!' ' मीठा और रसीला होने से काम नहीं चलेगा! ' ' न!' ' और संविधान!' ' जो शपथ खाते हैं वे याद करते नहीं ! और एक तू है,तुझे खाया जाता है,मगर तू याद रखे है! कमाल है! ' ' अरे बोलो न यार! ' ' तो ले सुन ले फिर! गुण न देखो फलन का, कर सेलर की पहचान /मोल करो मानवता का, धरा रहे संविधान' ' वाह जी वाह! खूब! होना तो यह चाहिए था कि चीजों के दाम को,गुणवत्ता को,सफाई को लेकर बहस होनी चाहिए थी!' ' अबे ग्राहक अब हमें नहीं बेचने वाले को टटोलेंगे,फिर समान लेंगे!' लंगड़ा आम मुस्कुराया। ' नेम प्लेट क्या तुक है यार!' दशहरी आम मुंह बनाते हुए बोला। ' कर दी न बेतुकी बात! तुकबंदी ही व्योम है। तुकबंदी ही धरा।तुकबंदी ही शाश्वत है। तुकबंदी ही खरा।आओ तुकबंदी को माथे से लगाएं और एक स्वर में गाएं...सबका साथ। सबका विकास। सबका विश्वास।' ' भाई कविता नहीं! सीधे सीधे बता न!' ' बंधु सीधी बात यह है कि जनता नेम प्लेट देखेगी तो उसके प्लेट में क्या है,क्या नहीं,वह यह देखना-सोचना भूल जायेगी! अबे जनता राजनीति का चौसा आम होकर रह गई है।' ' चौसा बता रहे हो!!! अरे! हम में और आदमी में कुछ तो फर्क होगा!' 'फर्क तो कई हैं,मगर एक फर्क बहुत तगड़ा है!' 'वो क्या?' 'हमारे अंदर गुठली पाई जाती है दोस्त...' यह कहकर लंगड़ा आम इरादतन रुक गया। ' और आदमी के अंदर !!!' दशहरी आम ने झट से पूछा। ' हमारे अंदर गुठली तो आदमी के अंदर ग्रंथि!' ' और आत्मा!!! आत्मा कहां गई!' ' देख तो रहे हो सब!' ' बिना आत्मा के आदमी हो सकता है क्या!' ' हो सकता है,होते ही हैं, बल्कि अब ऐसे ही होते हैं!' ' बिना आत्मा के आदमी को क्या कहते हैं श्रीमान! तनिक इस पर भी प्रकाश डालिए!' ' कहते तो आदमी ही हैं महोदय! पर पर्यायवाची रूप में कार्यकर्ता,अंधभक्त, चमचा, फॉलोवर,प्रजा कह सकते हैं आप!' ' चलो माना! पर यह बताओ कि बिना आत्मा के आदमी दिखता कैसा है!' ' हूं..यह तो एक मुश्किल सवाल है!' ' बट इंडिया वांट्स टू नो!' ' बस तू आंखे बंद करके किसी भी तानाशाह के चेहरे को याद कर ले फिर!' 'ओह! तो ऐसे दिखेगा!' ' तू आंख तो बंद कर!' ' चेहरा याद करने के लिए वैसे अब आंखें बंद करने की जरूरत नहीं! दशहरी आम ने लगभग फुसफुसाकर कहा। लंगड़ा आम चौकन्ना होकर इधर-उधर देखने लगा। अनूप मणि त्रिपाठी

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