रविवार, 29 सितंबर 2024

क्या देश की आजादी विक्टोरिया रानी की चरण वंदना से मिली थी

संघ के गांधी पं. दीनदयाल उपाध्याय का कल 25 सितंबरको जन्म दिन था । भाजपा ने दिल्ली में अपने भाजपा के पांच सितारा मुख्यालय के ठीक सामने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 72 फीट ऊंची मूर्ति भी लगवाई है, जिसका अनावरण पिछल साल प्रधानमंत्री मोदी जी ने कियाथा। राम और कृष्ण की तरह दीन दयाल भी अचानक प्रकट हुए अवतार हैं। उनका इतिहास अज्ञात है, दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 1916 में हुआ था। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के बाद जब आजादी मिली तो वे 31 साल के पर्याप्त होश हवास वाले युवा थे। लेकिन आजादी की लड़ाई में उनका क्या योगदान है, यह रहस्य दीन दयाल के साथ ही तिरोहित हो गया। फिर भी उन्हें प्रचण्ड राष्ट्र भक्त कहा जाता है। सरकार तमाम योजनाएं उनके नाम पर चला रही हैं । उन्हें महान विचारक कहा जाता है। लेकिन उनके विचार क्या थे, वह स्वयं भी जीते जी नहीं जान पाये। उनका जन्म दिवस होने पर उन्हें प्रणाम करने वालों का ताँता लगा है। उनके विचार और उनका योगदान मेरे लिए उनकी मृत्यु की तरह ही एक गुत्थी है । एक ओर समझ में नहीं आती सारी योजनाएं दीनदयाल के नाम पर शुरू की जाती हैं, हेडगवार. गोलवलकर, सावरकर के नाम पर क्यूं नहीं ? भारत रत्न मालवीय को जिनसे संघ, जनसंघ से कोई रिश्ता नहीं , जूनियर रहे अटल को भारत रत्न , लेकिन हेडगवार, गोलवलकर, सावरकर को क्यूं नहीं । एक बार अटल ने अपने प्रधान मंत्रीत्व काल में सावरकर को भरत रत्न देने का प्रयास किया था ,क्या हुआ? सबको पता है... बीजेपी के हवाले पता चला है कि साल 1951 में भारतीय जनसंघ की नींव रखी गई थी और इस पार्टी को बनाने का पूरा कार्य इन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर किया था। इस पार्टी के गठन के बाद उपाध्याय जी को इस पार्टी का महासचिव भी चुना गया था और ये पार्टी आरएसएस से जुड़ी हुई थी। पहले आरएसएस के प्रचारक थे। दीनदयाल उपाध्याय की उपलब्धि .. दीनदयाल उपाध्याय जी ने जो अपनी सेवाएं भारतीय जनसंघ पार्टी और आरएसएस को दी थी, उसको अभी भी बीजेपी पार्टी के द्वारा याद रखा गया है । देश हित में उनकी क्या सेवाएं रही, यह पता नहीं । इन्होंने साप्ताहिक पांचजन्य और दैनिक स्वदेश नामक दो अखबार भी शुरू किए थे, जिनमें विक्टोरिया रानी का चरण वंदना किया जाता था , उसी चरण वंदना के कारण शायद आजादी मिली है। इसके अलावा इन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य पर एक नाटक भी लिखा था और शंकराचार्य के जीवन पर एक किताब भी लिखी थी। सनातन आज शायद इसी लिये जिंदा है, नहीं तो गांधी नेहरू तो कब का सनातन को खतम कर चुके थे। फिर भी बीजेपी द्वारा इनकी याद में कई तरह के कार्य भी किए गए हैं । बीजेपी की और से कई योजनाओं का नाम इनके नाम पर रखा गया है. जैसे दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना और दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना इत्यादि । इतना ही नहीं प्रधान मंत्री मोदी जी ने कई सार्वजनिक संस्थानों , मुगलसराय रेलवे स्टेशन जहां इनकी हत्या हुई थी ,का नाम बदलकर इनके नाम पर परिवर्तित कर दिया है. इसके अलावा इनके नाम पर कई कॉलेज और अस्पताल का नाम भी बदल कर रख दिया गया है। दीनदयाल उपाध्याय का निधन .. दीनदयाल उपाध्याय 10 फरवरी, 1968 को अपनी पार्टी से जुड़े कार्य के लिए लखनऊ से पटना जाने वाली रेल में रवाना हुए थे और इसी दौरान इनकी हत्या मुगलसराय स्टेशन पर कर दी गई थी। उनका शव रेलवे यार्ड में पटरी पर रहस्यमय परिस्थितियों में मिला था । इनकी हत्या किसने की थी इस बात का पता आजतक नहीं चल पाया था। पूरी भगवा पार्टी सुभाष चंद्र बोस , लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु की जाँच की मांग गला फाड़कर करते हैं , लेकिन दीन दयाल की हत्याकी जाँच का नाम नहीं लेते , क्यूं? श्रीमती गांधी ने जाँच शुरू कराया था लेकिन पता चला कि अटल ने जोर नारा लगाया, " इंदिरा गांधी दुर्गाकीअवतार है" उसी नारे जाँच दब गयी। फिर जिन्न कभी बाहर नहीं आया, आयेगा कैसे? ज्यादा जानना हो तो बलराज की आत्मकथा , " जिंदगी का सफ़र " पढ़िये। स्टेशन का नाम बदलने से जुड़ा विवाद जिस मुगलसराय स्टेशन पर इनका शव मिला था उस स्टेशन का नाम बदलकर इनके नाम रखने का प्रस्ताव हाल ही में पेश किया गया है और इस प्रस्ताव का विरोध समाजवादी पार्टी और अन्य पार्टियों द्वारा किया गया है और तर्क दिया गया कि मुगलसराय लाल बहादुर शास्त्री का गृह नगर है , बदलना है तो उनक नाम पर रखा जाये । दीन दयाल का यहां क्या है ,अगर बनाना ही है उनके नाम पर यार्ड का नाम रखकर उस पर शिलापट्टी लगा सकते हैं। हालांकि लाख विरोध के बावजूद भी इस स्टेशन का नाम साल 2018 में परिवर्तित कर दिया गया. PDDU. रेलवे स्टेशन लेकिन आज तक किसी को PDDU जाना है कहते नहीं सुना । दीनदयाल उपाध्याय से पहले भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष और सांसद रहे प्रोफेसर बलराज मधोक तो दीनदयाल जी हत्या की जांच की मांग करते-करते खुद भी 2016 में इस दुनिया से चले गए लेकिन उनकी मांग पर न तो वाजपेयी सरकार ने और न ही मोदी सरकार ने कोई ध्यान दिया। यही नहीं, प्रो. मधोक ने अपनी आत्मकथा 'जिंदगी का सफर’ में दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की साजिश में जिन लोगों के शामिल होने का संदेह जताया था, उन्हें मोदी सरकार ने 'भारत रत्न’ से सम्मानित कर दिया। प्रो. बलराज मधोक की आत्मकथा 2003 में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की साजिश में संघ जनसंघ के ही कुछ लोगों के शामिल होने की बात 2005 में भाजपा की स्थापना के 25 साल पूरे होने के मौके पर एक इंटरव्यू के दौरान प्रेस को बताई थी । मै भी उनके योगदान को न जानते हुये भी उनके अग्यात योगदान के लिये श्रद्धांजलि के साथ नमन करता हूं .....सादर नमन. drbn singh

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सुमन
लोकसंघर्ष