गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

गाय माता के साथ बलात्कार भागवत सरकार में

गाय माता के साथ बलात्कार भागवत सरकार में मध्य प्रदेश के मंदसौर में 35 वर्षीय व्यक्ति द्वारा गाय के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। आरोपी गिरफ्तार, पशु क्रूरता अधिनियम के तहत केस दर्ज मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली एक घटना सामने आई है। एक 35 वर्षीय व्यक्ति को गाय के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। आरोपी की इस शर्मनाक हरकत का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिससे इलाके में भारी आक्रोश फैल गया है। कहां और कब हुई घटना? यह घिनौना कृत्य 2 अप्रैल 2025 की रात मंदसौर के रिंदा गांव में हुआ। आरोपी द्वारकापुरी गोस्वामी ने अपने चाचा के मवेशीखाने में इस अमानवीय हरकत को अंजाम दिया। पुलिस के अनुसार, घटना के समय आरोपी अकेला था और रात का अंधेरा होने के कारण उसे किसी ने नहीं रोका।

बुधवार, 9 अप्रैल 2025

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी राजा ने वक्फ संशोधन कानून को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से पार्टी के महासचिव डी राजा ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने महासचिव डी. राजा के माध्यम से आज यानी 9 अप्रैल 2025 को अधिवक्ता राम शंकर के माध्यम से भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है, जिसमें वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता और वक्फ अधिनियम, 1995 में इसके द्वारा डाले गए और हटाए गए प्रावधानों को चुनौती दी गई है। समाजवाद और साम्यवाद के क्रांतिकारी अग्रदूत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने देश में अल्पसंख्यकों, पिछड़े और हाशिए पर पड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए लगातार काम किया है। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के साथ गठबंधन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थिरु एम.के स्टालिन ने विधानसभा में केंद्र सरकार से वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को वापस लेने का आग्रह किया क्योंकि इससे भारत में मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जनता के विरोध के बावजूद, वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 को केंद्र सरकार ने जेपीसी के सदस्यों और अन्य हितधारकों द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर उचित विचार किए बिना पारित कर दिया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संसद सदस्यों द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर भी विचार नहीं किया गया। वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 06.04.2025 को अधिसूचित किया गया है, क्योंकि मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के मौलिक अधिकार गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं और अधिनियम के तत्काल कार्यान्वयन से तमिलनाडु में लगभग 50 लाख मुसलमानों और देश के अन्य हिस्सों में 20 करोड़ मुसलमानों के अधिकारों का उल्लंघन और पूर्वाग्रह होता है, इसलिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के प्रावधानों को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी है।

जनसंघियों का नारा था - भैया बचके रहिया हो रूस से चोरवा आईल बा गहबर लाल रंगाइल बा ना

आदरणीय भाई राघवेन्द्र भाऊ की दीवार से ------ हिन्दुस्तानियों की एकता मजहबों की चिता पर होगी ********************** महापंडित राहुल सांकृत्यायन ( केदारनाथ पाण्डेय ) ************* जन्मदिन: 9 अप्रैल ( 1893 ) ************ राहुल् सांकृत्यायन के पास कोई औपचरिक डिग्री नही थी । जब पंडित नेहरू को पता चला कि हिंदी में लिखी राहुल जी की किताब ' मध्य एशिया का इतिहास ' आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कोर्स में है तो उन्होंने तत्कालीन शिक्षा मंत्री हमायूँ कबीर से कहा - ' राहुल जी को किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बना दो । नही तो कुलपति ही बना दो ।' लेकिन लकीर के फकीर और डिग्री के व्यामोह में फंसे हुमांयू कबीर ने ऐसा नहीं किया । बाद में उन्हें श्रीलंका के अनुराधापुर विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग में बौद्ध धर्म पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया गया । उन्हे सोवियत सरकार ने भी बुलाया । राहुल सांकृत्यायन पहली बार चार सितंबर 1937 को इलाहाबाद आए । छह सितंबर को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने उनका 'मेरी कमजोरियां ' शीर्षक व्याख्यान रखा था । इसकी अध्यक्षता पं. जवाहरलाल नेहरू ने किया था । ********** " ... मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ’- इस सफ़ेद झूठ का क्या ठिकाना है ? अगर मज़हब बैर नहीं सिखलाता, तो चोटी-दाढ़ी की लड़ाई में हज़ार बरस से आज तक हमारा मुल्क़ पामाल (बर्बाद) क्यों है ? पुराने इतिहास को छोड़ दीजिए, आज भी हिंदुस्तान के शहरों और गांवों में एक मज़हब वालों को दूसरे मज़हब वालों के ख़ून का प्यासा कौन बना रहा है? असल बात यह है--' मज़हब तो है सिखाता आपस में बैर रखना । भाई को है सिखाता भाई का ख़ून पीना । ' हिंदुस्तानियों की एकता मज़हबों के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मज़हबों की चिता पर होगी ।' ********* मेरा भी मानना है कि बेशक धर्म की कभी उदात्त और नवजागरण /पुनर्जागरण वाली भूमिका भी रही । लेकिन इन दिनों कोई फिरका हो धर्म की संस्थागत भूमिका आतताई और पतनशील है । भारतीय जनता पार्टी ने तो धर्म और राजनीति का ऐसा घातक मेल बनाया है जिससे अंततः मानवीयता /मनुष्यता का ही हनन होगा । भाजपा को वोट देना धार्मिक, कर्मकांडी कृत्य बना दिया गया है । यह भारत की महान जनता को तर्क , विवेक और वैज्ञानिक नजरिये से दूर रखने की बहुत संगठित, व्यापक और आपराधिक दक्षता के हद तक की साजिश है । क्या हम धर्म को फिलवक्त के लिए उसके बैरक तक ही सीमित कर देने का अभियान चला सकते हैं -- कोई फिरका हो । फ्रांसिस फुकुयामा अपनी किताब ‘ एंड आफ द हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन ‘ में कहता है कि ( छोटे - छोटे गलाकाटू चुनाव की बहुतायत ) , पूजा - पाठ को प्रतिस्पर्धी और लोकप्रिय बनाकर भी आम जन को रैडिकल राजनीतिक चेतना से विरत रखा जा सकता है । डीपी त्रिपाठी ( डीपीटी ) कहते हैं --- हम जा कहां रहे हैं ? सीमाओं पर सैनिक टकराव भी राष्ट्रवादी उन्माद उभारते हैं जो यथास्थिति बनाये रखने में मददगार होता है । सारे महान विचारों के अध:पतन का , उनके अवसरवादी आत्मकेंद्रियता का यह दौर बदल सकने की पहल से कौन असहमत होगा ? दरअसल आज गांधी की ज्यादा जरूरत है -- ईश्वर अल्ला तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान ….। ************ 60 के दशक का यह वह दौर था जब हमारी सांस्कृतिक समझ और आस्था कुछ उन सी ग्रेड हिंदी ( कथित धार्मिक ) फिल्मों से तय हो रही थी जिसमें किसी देवता की हथेली से निकले रेज ( रश्मियों ) से कोई कुष्ठ पीड़ित तुरन्त कंचन देह प्राप्त कर लेता था । सिनेमा हॉल में तब औरतें सुबकने लगती थीं , प्रभु की अपार करुणा देखकर । इन फिल्मों में बहुत कुछ स्वतः होता था । मतलब जड़ पत्थर का हवा में अचानक नाचने लगना , पेड़ों का बेमौसम अचानक फलों से लद जाना और बिना तेल - बाती दीयों का जगजग हो उठना । सब प्रभु की कृपा से होता था । ये वो धार्मिक फिल्में थीं जो अंततः ' खुल जा सिमसिम ' मुहावरे में ढल जाती थीं । तब रही होगी मेरी उम्र 11 -12 की । मेरे तीन बाबा में सबसे छोटे पंडित रामसुंदर दुबे , मुख्तार थे । जो बाद में पूरे गोरखपुर मंडल के रेवेन्यू मामलों के नामी और सबसे काबिल एडवोकेट हुए । घर में स्तोत्र जोर - जोर से पढ़ने का चलन था और भोजन से पहले मंत्र का भी । मैंने भी कई साल पूजा के बर्तन मांजे । छोटे बाबा का संस्कृत के विपुल साहित्य से देवताओं की आराधना - प्रार्थना ( स्तोत्र ) तक ही मतलब था । अभी यह समझ कमजोर नहीं पड़ी थी कि संस्कृत देवभाषा है और उत्कृष्ट देवाराधन उसी में संभव है । छोटे बाबा 1952 में जनसंघ से देवरिया से सांसद का चुनाव भी लड़े । उनके प्रचार में चाचा लोग कम्युनिस्टों से सावधान रहने का गीतात्मक नारा लगाते थे -- भैया बचके रहिया हो रूस से चोरवा आईल बा गहबर लाल रंगाइल बा ना ( गहबर मतलब गाढ़ा , चटख ) ठीक - ठीक नहीं कह सकता लेकिन उसी के आसपास दीवानी मामलों के ( यशस्वी अधिवक्ता पं कन्हैयालाल मिश्र के सुयोग्य जूनियर रहे ) मशहूर वकील पंडित लक्ष्मीकांत चतुर्वेदी भारतीय जनसंघ की उत्तर प्रदेश राज्य इकाई के अध्यक्ष थे । बाबा के मित्रों की विप्र श्रेष्ठ टोली खासकर किसी मलिकार जी की स्थापना थी कि कम्युनिस्ट वही है जिसका कमीनापन ही ईष्ट हो । कम्युनिष्ट विधर्मी और पथभ्रष्ट माना जाता था । पंडित जवाहरलाल नेहरू की निंदा की जाती थी , यह कहना गलत है । नेहरू को गाली दी जाती थी । इसी माहौल से निकला था मैं जो नेहरू को अप्रतिम राजनेता , नए भारत का निमार्णकर्ता और दुनिया का सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक चिन्तक मानता हूं । थोड़ा और बड़ा हुआ । तब शायद 10वीं या 11वीं कक्षा में था । मेरे पास से राहुल सांकृत्यायन की ' बोल्गा से गंगा ' बरामद हुई थी । ' तुम्हारी क्षय ' भी । घर में कोहराम मच गया । मेरी खासी प्रताड़ना हुई । मुझसे कहा गया मैं इस मंत्र का प्रतिदिन 11 बार पाठ करूं -- ' मैं पापी हूं , पापात्मा हूं , मुझसे पाप कर्म ही संभव है । हे भगवान विष्णु मेरे पापों को क्षमा करें ' पापोहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भव, पाहि मां पुण्डरीकाक्ष सर्वपापहरो भव ।' और यहीं से जो मैं आज हूं उसका प्रस्फुटन होने लगा था । यह अब पकड़ पा रहा हूं । सोचता हूं आखिर मानव जाति आदिम बर्बरता से जाने कितनी ऐतिहासिक बाधाओं को पार करते यहां तक आयी है । पंडित नेहरू से हमने सीखा कि यहीं जड़ होकर नहीं रह जाना है । हम बुद्धिसंगत विवेक से ही अपने समय के भयावह दौर से भी लड़ेंगे । न हम अपने इतिहास को अस्वीकार कर सकते हैं न बेहतर भविष्य के सपने देखना बंद कर सकते हैं । यह सभ्यतागत मानवीय दायित्व ही हमें जिंदा रखता है । मुझे लगता है एक विवेकशील मनुष्य होने के लिए राहुल सांकृत्यायन को पढ़ना जरूरी है । जिन्हें पढ़ने की मैं बचपन में सजा पा चुका । रिश्ते में चाचा लगते लेकिन दोस्त अधिक प्रोफेसर जयराम दुबे ही यह किताब ले आये थे बाद के दिनों के मशहूर रेवेन्यू मामलों के वकील रामनगेन्द्र सिंह से । कई बार लगता है अगर मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार रह गयी तो जल्दी ही मुझे 70 पार की इस उम्र में अपने बचपन का दौर देखना ही पड़ जाएगा । हो सकता है राहुल सांकृत्यायन का साहित्य प्रतिबंधित भी कर दिया जाए । हम रामानंद सागर के जरिये रामायण या रामचरित मानस समझने , थरिया , लोटा बजाने और भूखे पेट पर दीया जलाने तक तो आ ही गए । ******** राहुल सांकृत्यायन ( मूल नाम केदार पांडेय ) चिर विद्रोही , महान लेखक, इतिहासविद, पुरातत्ववेत्ता, त्रिपिटकाचार्य के साथ-साथ एशियाई नवजागरण के प्रवर्तक-नायक थे । काशी के बौद्धिक समाज ने उन्हें 'महापंडित' के अलंकार से सम्मानित किया था । क्या हम लोग उन्हें फिर से पढ़ना शुरू करेंगे , इस आतताई दौर को समझने और इससे मुकाबले के लिए । वह आजीवन यायावर रहे । घुमक्कड़ । वह कहते हैं -- ' यह वही कर सकता है जिसमें बहुत भारी मात्रा में हर तरह का साहस है - तो उसे किसी की बात नहीं सुननी चाहिए, न माता के आंसू बहने की परवाह करनी चाहिए, न पिता के भय और उदास होने की, न भूल से विवाह लाई अपनी पत्‍नी के रोने-धोने की फिक्र करनी चाहिए और न किसी तरुणी को अभागे पति के कलपने की । बस शंकराचार्य के शब्‍दों में यही समझना चाहिए - ' निस्‍त्रैगुण्‍ये पथि विचरत: को विधि: को निषेधा: ' और मेरे गुरु कपोतराज के बचन को अपना पथप्रदर्शक बनाना चाहिए - ' सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहां ? जिंदगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहां ? दुनिया में मनुष्‍य-जन्‍म एक ही बार होता है और जवानी भी केवल एक ही बार आती है । साहसी और मनस्वी तरुण-तरुणियों को इस अवसर से हाथ नहीं धोना चाहिए । कमर बाँध लो भावी घुमक्कड़ो ! संसार तुम्हारे स्वागत को तैयार है ।...' ********** राहुल जी का बुद्ध के प्रति आकर्षण की मुख्य वजह ईश्वर के अस्तित्व से इंकार था । उन्होंने कहा - बौद्ध धर्म को दूसरे धर्मों से जो चीज भिन्न बनाती है वो है ईश्वर के अस्तित्व से पूरी तरह इंकार । ईश्वर के आगे-पीछे तो बड़े-बड़े दर्शन खडे़ किए गए, बड़े-बड़े पोथे लिखे गए । दुनिया के सारे धर्म दूसरी बातों में आपस में कट मरें पर ईश्वर, महोवा या अल्लाह के नाम पर सभी सिर नवाए और अक्ल बेच खाने को तैयार हैं । सिर्फ बौद्ध ही ऐसा धर्म है जिसमें ईश्वर के लिए कोई स्थान नहीं है । ईश्वर से मुक्ति पाए बगैर बुद्धि पूरी तरह मुक्त नहीं होती । राहुल जी का यह प्रसिद्ध कथन है - बुद्ध और ईश्वर साथ-साथ नहीं रह सकते । ' प्रत्यक्ष से इतर किसी अदृश्य ताकत को मैं नहीं मानता। ' यही चीज राहुल जी को बुद्ध में सबसे अधिक पसंद थी। *********** नामवर सिंह जी राहुल के विचारधारात्मक नजरिए का मूल्यांकन करते लिखते हैं - ' विचारधारा जिस हद तक काम आए ,इस्तेमाल करो । काम जब न आए ,छोड़ दो । जो बेहतर चीज हो ,उसे ले लो ।’ अपने नजरिए के बारे में इस तरह का अनासक्त भाव उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी और इसे उन्होंने महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं से ग्रहण किया था । राहुलजी के इस नजरिए की धुरी हैं महात्मा बुद्ध । ‘ मेरी जीवन यात्रा ' में राहुल जी ने बुद्ध का एक वचन पालि में उद्धृत किया है- “कुल्लुपमं देसेस्यामि वो भिक्खिवे धम्मं तरणत्थाय नो गृहणत्थाय।।” ( हे भिक्षुओ ! यह धर्म मैं छोटी सी नाव के समान दे रहा हूँ पार उतरने के लिए । पार उतर जाने के बाद,सिर पर रखकर ढोने के लिए नहीं। ) प्रो. जगदीश्वर चतुर्वेदी लिखते हैं -- राहुल सांकृत्यायन ने कट्टर सनातनी ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी सनातन धर्म की रूढ़ियों को अपने ऊपर से उतार फेंका और जो भी तर्कवादी धर्म या तर्कवादी समाजशास्त्र उनके सामने आते गये, उसे ग्रहण करते गये और शनै: शनै: उन धर्मों एवं शास्त्रों के भी मूल तत्वों को अपनाते हुए उनके बाह्य ढाँचे को छोड़ते गये । सनातन धर्म, आर्य समाज और बौद्ध धर्म से साम्यवाद की ओर राहुल जी के सामाजिक चिन्तन का क्रम है, राहुल जी किसी धर्म या विचारधारा के दायरे में बँध नहीं सके । 'मज्झिम निकाय' के सूत्र का हवाला देते हुए राहुल जी ने अपनी 'जीवन यात्रा' में इस तथ्य का स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है- ' बड़े की भाँति मैंने तुम्हें उपदेश दिया है, वह पार उतरने के लिए है, सिर पर ढोये-ढोये फिरने के लिए नहीं - तो मालूम हुआ कि जिस चीज़ को मैं इतने दिनों से ढूँढता रहा हूँ, वह मिल गयी '।

मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

संगीत सोम भाजपा विधायक गौमांस के व्यापारी है - गोपाल यादव

प्रदेश सचिव गोपाल यादव ने संगीत सोम पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि विवादों से घिरे और गौमांस व्यापार के आरोपी सोम सस्ती लोकप्रियता पाने की कोशिश कर रहे हैं। यह न केवल नेता का बल्कि पूरे समाजवादी आंदोलन का अपमान है। सपा सांसद पर भाजपा नेता की टिप्पणी पर प्रदर्शन:इटावा में सपा कार्यकर्ताओं ने की संगीत सोम के खिलाफ FIR की मांग समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सोमवार को इटावा कचहरी में प्रदर्शन किया। भाजपा नेता संगीत सोम द्वारा राज्यसभा सांसद प्रो. रामगोपाल यादव पर की गई कथित अभद्र टिप्पणी के विरोध में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सोमवार को इटावा कचहरी में प्रदर्शन किया। सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर कानूनी कार्रवाई की मांग की। सपा जिलाध्यक्ष प्रदीप शाक्य ने टिप्पणी को निंदनीय और आपत्तिजनक बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि एफआईआर दर्ज न होने पर पार्टी सड़कों पर आंदोलन करेगी। सपा नेताओं ने कहा कि प्रो. रामगोपाल यादव सभी दलों में सम्मानित हैं। उनके खिलाफ की गई टिप्पणी से लाखों कार्यकर्ताओं की भावनाएं आहत हुई हैं। किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए कलेक्ट्रेट में भारी पुलिस बल तैनात किया गया था। कार्यकर्ताओं ने शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें रखीं।

रविवार, 6 अप्रैल 2025

बुंलद उ प्र की बुलंद तस्वीर- शर्मनाक- कानून समाप्त प्रयागराज में सालार मसूद गाजी की दरगाह पर चढ़ गए लोग, फहराया भगवा झंडा

बुंलद उ प्र की बुलंद तस्वीर- शर्मनाक- कानून समाप्त प्रयागराज में सालार मसूद गाजी की दरगाह पर चढ़ गए लोग, फहराया भगवा झंडा प्रयागराज में रामनवमी पर महाराजा सुहेलदेव संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने सालार मसूद गाजी की दरगाह की छत पर चढ़कर भगवा झंडा फहराया। प्रयागराज: पूरे देश भर में रामनवमी पर शोभायात्रा निकाली जा रही है। अयोध्या में रामलला के दर्शन को बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर प्रयागराज में रामनवमी पर महाराजा सुहेलदेव संगठन से जुड़े कार्यकर्ता सालार मसूद गाजी की दरगाह की छत पर चढ़ गए और भगवा झंडे फहराए। उत्तर प्रदेश में रामनवमी पर जगह-जगह शोभायात्रा निकाली जा रही है। प्रयागराज में रविवार शाम करीब 4.20 बजे 20 से ज्यादा युवा बाइक रैली निकालते हुए सिकंदर इलाके में स्थित सालार मसूद गाजी की दरगाह पर पहुंचे। इस बाइक रैली की अगुवाई मनेंद्र प्रताप सिंह ने की। तीन युवक दीवार के सहारे दरगाह की छत पर चढ़ गए और भगवा झंडा लहराया। बता दें कि प्रयागराज प्रशासन ने 24 मार्च को इस दरगाह के गेट पर ताला लगा दिया था। साथ ही मई में लगने वाला सालाना मेला भी रोक दिया गया था।

संघ से सोलह सवाल

*RSS के लोगों से ये 16 प्रश्न आप पूछिये?? *इनके जवाब ये लोग नहीं दे पाएंगे।* *उलटा आप को गाली देंगे या ब्लॉक करके भाग जायेंगे या विरोधियों का फोटोशॉप पोस्ट डालेंगे, पर फिर भी आप ये सवाल करते रहें--* (1) RSS ने आज़ादी की लड़ाई क्यों नहीं लड़ी ? (2)हिन्दू हित की बात करता है और उसकी वेशभूषा विदेशी क्यों है? (3) सुभाषचन्द्र बोस आज़ाद हिन्द सेना का गठन कर रहे थे, तब संघ ने सेना में शामिल होने से हिन्दू युवकों को क्यों रोका? (4) संघ के ‘वीर’ सावरकर अंग्रेजों को ६ माफ़ीनामे देकर जेल से क्यों छूटे, जबकि 436 लोग और थे सेलुलर जेल में। सिर्फ इन्होंने ही क्यों माफ़ीनामे लिखे? ऐसी क्या विपदा आ गई थी? (5) RSS के पहले 1925 में प्रथम अधिवेशन मेंं द्विराष्ट्र सिद्धान्त --हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र का प्रस्ताव क्यों पारित किया गया, जबकि संघ अखंड भारत की बात करता है। (6) 1942 में असहयोग आंदोलन का संघ ने बहिष्कार क्यों किया? और संघ ने इससे सम्बन्धित पत्र ब्रिटिश गवर्नमेंट को क्यों लिखा? अगर ये पत्र न लिखते तो देश 1942 में आज़ाद हो जाता। (7) गांधी जी की हत्या के प्रयास संघ आज़ादी के पूर्व से कर रहा था, क्यों ? गांधी जी पर आज़ादी के पूर्व 5 बार संघियों ने हमले किये, क्यों? (8) संघ प्रमुख केशव बलिराम हेडगेवार ने कहा था कि हिंदुओ को अपनी ताकत का उपयोग अंगेजों के खिलाफ न करते हुए देश में मुस्लिम, क्रिश्चियन और दलितों के खिलाफ करना चाहिए, ऐसा क्यों ? (9) कहते हैं कि दो धार्मिक शक्तियाँ एक-दूसरे के खिलाफ काम करती हैं तो देश टूटने की कगार पर होता है। संघ और मुस्लिम लीग एक दूसरे के विपरीत थीं, इस कारण देश टूटा। संघ तो अखंड भारत की बात करता है, फिर ऐसा क्यों हुआ? (10) RSS हिन्दू हित की बात करती है 1925 से 1947 के बीच ईसाई धर्मान्तरण के खिलाफ कोई आंदोलन क्यों नही चलाया ? (11) 15 अगस्त, 1947 को जब देश आजाद हुआ तब संघ के लोग राष्ट्रध्वज तिरंगे को पैरों तले कुचल रहे थे, तिरंगे को जला रहे थे, क्यों ? (12) संघ के स्वयंसेवक अटल बिहारी वाजपेयी ने क्रान्तिकारी लीलाधर वाजपेयी के खिलाफ क्यों गवाही दी? जिससे उन्हें 2 वर्ष का कारावास हुआ। (13) पिछड़े , दलित, आदिवासी भी संघी हेैं, तो नासिक के काला राम मंदिर में प्रवेश मुद्दे पर डॉ. आंबेडकर ने जो आन्दोलन किया था, उसका विरोध क्यों किया ? (14) संघ द्वारा हिन्दू समाज के हित में किया गया कोई एक कार्य बतायें, जिससे हिन्दू समाज के निम्नवर्ग का तबका लाभान्वित हुआ हो। (15) संघ के लोग अपने आप को राष्ट्रवादी समझते हैं। इन्होंने 1925 से 1947 के बीच वन्देमातरम् का नारा क्यों नहीं लगाया? अंग्रेजों का इतना डर था क्या? (16) संघ / विहिप / और अन्य हिंदूवादी संगठन के प्रमुख दलित, आदिवासी या पिछड़ा वर्ग से क्यों नहीं बने? क्या ये हिन्दू नहीं हैं ? *कृपया इन सवालों के जवाब जरूर पूछियेगा।*. drbn singh.

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

जय भीम, लाल सलाम और इंकलाब जिंदाबाद सिर्फ नारे नहीं हैं - डी राजा

जय भीम, लाल सलाम और इंकलाब जिंदाबाद सिर्फ नारे नहीं हैं - डी राजा वाम एकता को मजबूत करने पर जोर देते हुए वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता डी राजा ने कहा कि पार्टी कांग्रेस इस मुख्य मुद्दे पर विचार करेगी कि वाम की ताकत कैसे बढ़ाई जाए। अपने संबोधन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव राजा ने कहा, ‘‘भाजपा-आरएसएस शासन के तहत वर्ग, जाति और पितृसत्ता का संरचनात्मक उत्पीड़न क्रूर हो गया है, जो पूंजीपति वर्ग के राजनीतिक हथियार के अलावा और कुछ नहीं है। भारत न केवल खराब शासन का सामना कर रहा है, बल्कि शोषण के लिए बनाई गई व्यवस्था के तहत घुट रहा है।’’ उन्होंने कहा कि इस अवसर पर सभी कम्युनिस्ट और वामपंथी ताकतों को ‘कॉरपोरेट-सांप्रदायिक हमले’ के खिलाफ प्रतिरोध खड़ा करने के लिए सैद्धांतिक एकता बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें बेजुबानों की आवाज बनना चाहिए। जय भीम, लाल सलाम और इंकलाब जिंदाबाद सिर्फ नारे नहीं हैं।’’

आरएसएस को वैधता दिए जाने के गुनाहगार-डाँ राममनोहर लोहिया .

आरएसएस को वैधता दिए जाने के गुनाहगार.’ गांधीजी की हत्या के बाद संघ देश में तब तक लगभग अछूत बना रहा जब तक लोहिया ने 1963 मे और जेपी ने 1975 में जनसंघ ( वर्तमान बी जे पी ) से हाथ नही मिलाया..... लेकिन आरएसएस को वैधता देने के लिए सिर्फ एक व्यक्ति की तरफ उंगली उठाना न्यायोचित नहीं है. इसके लिए कई नेता जिम्मेदार हैं, जो आजादी से लेकर आज तक समय समय पर खिलते और मुरझाते रहे. आजादी के बाद आरएसएस ने गांधी के खिलाफ जिस तरह पूरे देश में घृणा का माहौल बनाया उसकी परिणति गांधी हत्या के रूप में हुई. हत्या की जांच में कई तार आरएसएस से जुड़े हुए पाए गए. लेकिन यह भी सही है कि आरएसएस के किसी बड़े नेता को इसके लिए सज़ा नहीं हुई. लेकिन यह भी उतनी ही बड़ी सच्चाई है कि उसके कई नेताओं से पूछताछ हुई और उनकी संदिग्ध गतिविधियों को देखकर ही तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध आयद किया था. इस पूरी बहस में हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि आरएसएस की पहुंच और वैधता वणिक (वैश्य) समाज में शुरू से ही थी. यानि आरएसएस के प्रचारकों को सामाजिक रूप से जगह बनाने में, अपनी बात कहने में भले ही दिक्कत हुई हो लेकिन आर्थिक संसाधनों का संकट उनके सामने कभी नहीं रहा. उस दौर के सामाजिक आंदोलनों और संगठनों में कांग्रेस के बाद सबसे अधिक आर्थिक संसाधन आरएसएस के पास ही था. आरएसएस के पास किस रूप में कितना आर्थिक संसाधन था इसका आंकड़ों के साथ कोई जिक्र इसलिए संभव नहीं है (और आज भी नहीं है) क्योंकि उसके संसाधनों और स्रोत का कोई ऑडिट आदि कभी नहीं हुआ, ना ही ये किसी सरकारी कायदे-कानून के तहत आता है. ना ही उसका कोई एकाउंट है , न ही कोई रजिस्ट्रेशन. आश्चर्य होता है कि इतना बड़ा संगठन जिसका अब तक कोई सरकार के पास रजिस्ट्रेशन तक नहीं ? इसलिए आरएसएस पर जब बात हो तो इस बात को हमेशा केन्द्र में रखा जाना चाहिए कि सामाजिक रूप से उसे किसने, कितनी मदद की? जब कांग्रेस अपने शीर्ष पर थी तो कांग्रेस पार्टी के खिलाफ सबसे पहले डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद की वो जमीन तैयार की थी जहां जनसंघ , वामपंथी और समाजवादी भीतरखाने में तालमेल बिठा रहे थे. यही कारण था कि 1967 के चुनाव में जब सात राज्यों में कांग्रेस पार्टी का पतन हुआ और संयुक्त विधायक दल की सरकार बनी तो उसमें जनसंघ और वामपंथी भी शामिल था. जनसंघ यानि वर्तमान बीजेपी का पूर्ववर्ती संस्करण. यह आरएसएस का ही राजनीतिक उपक्रम था. इसलिए जब देश में आरएसएस को वैधता दिलाने की बात होती है तो डॉ. राम मनोहर लोहिया की भूमिका को नजरअंदाज करना कतई मुनासिब नहीं होगा. लोहिया के बाद दूसरे महत्वपूर्ण नेता जेपी हैं जिन्होंने 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने के बाद संघ के सक्रिय सहयोग के साथ एक राजनीतिक मंच खड़ा किया जिसमें जनसंघ सबसे महत्वपूर्ण था. जब जॉर्ज फर्नान्डीज़ जैसे समाजवादी विचारधारा के नेताओं ने आरएसएस के सांप्रदायिक अतीत पर सवाल उठाया तो जेपी ने मशहूर बयान दियाः ‘अगर संघ सांप्रदायिक है तो जयप्रकाश नारायण को भी सांप्रदायिक मानिए.’ कालांतर मे यही जार्ज जो कभी R S S पर सवाल करते रहे. संघ के गुलाम बन गये. अटल के मंत्रिमंडल के शोभा बन गये . संघ को मुख्यधारा में वैधता दिलाने की कड़ी में तीसरा महत्वपूर्ण नाम जॉर्ज फर्नान्डीज़ का है. जॉर्ज की बड़ी हैसियत थी. मजदूर नेता के रूप में पूरे भारत में उन्हें लोग जानते थे. वे आरएसएस-बीजेपी के शुरू से कट्टर विरोधी थे. लेकिन जब उनकी खुद की राजनीतिक ज़मीन कमजोर हुई और पार्टी पर पकड़ ढीली पड़ने लगी तो सत्ता में बने रहने के लिए उन्होंने बीजेपी से कुछ ‘शर्तों’ पर समझौता कर लिया. यह 90 का दशक था. मंदिर-मस्जिद के माहौल में बीजेपी की छवि पूरी तरह से सांप्रदायिक हो चुकी थी. संघ और बीजेपी आजादी के बाद दूसरे बड़े संकट से जूझ रहे थे. बाबरी मस्जिद गिराने के चलते बीजेपी के दामन पर ऐसा दाग लगा था कि देश में अमन चाहने वाले मान चुके थे कि बीजेपी सचमुच मुसलमानों की विरोधी है. लेकिन जॉर्ज ने इसके बावजूद बीजेपी से राजनीतिक समझौता किया. बीजेपी की सांप्रदायिक पहचान को दरकिनार कर उससे हाथ मिलाने वालों में चौथा बड़ा नाम समाजवादी के खिलाड़ी नीतीश कुमार का है. जिस बीजेपी को 1990 से पहले सांप्रदायिक, मुस्लिम विरोधी माना जाता था, मंडल आयोग की सिफारिशों का विरोध करने के बाद उस पर पिछड़ा व दलित विरोधी ठप्पा भी लग चुका था. माना जाता है कि मंडल की काट में ही बीजेपी संघ ने कमंडल का दांव चला था. बीजेपी उस दौर में खुले तौर पर मंडल आयोग का विरोध नहीं कर पा रही थी लेकिन उके शीर्ष नेतृत्व में पिछड़ा-दलित वर्ग के नेताओं की गैरमौजूदगी इस छवि को पुख्ता करती थी. एक कल्याण सिंह को छोड़कर बीजेपी के नेतृत्व में तब तक एक भी पिछड़ा लीडर शामिल नहीं था. नीतीश कुमार की समता पार्टी ने 1996 में जब बीजेपी के साथ हाथ मिलाया तो इससे बीजेपी की सांप्रदायिक और सवर्णवादी पहचान में थोड़ी कमी आई. इस कड़ी में एक नाम कांशीराम का भी है. बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद कांशीराम ने सपा-बसपा गठबंधन की रूपरेखा तय की. नतीजे में मुलायम सिंह प्रचंड जीत के साथ मुख्यमंत्री बने. यह 1993 की बात है. इसे दलित-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की राजनीति का सबसे मजबूत राजनीतिक सहयोग के रूप में देखा जाने लगा. " मिले मुलायम कांसीराम ...हवा हो गये जय श्रीराम " का नारा याद होगा लेकिन कुछ ही महीनों के बाद जब मायावती के साथ सपा के मतभेद उभरे तो बसपा प्रमुख कांशीराम ने बीजेपी के साथ मिलकर मायावती के नेतृत्व में सरकार बनवाने को अपनी सहमति दी. यहीं से दलितों पिछड़़ों जमीन पर मनभेद के साथ मतभेद हुआ जो आजतक जारी है , जब तक मायावती और मुलायम परिवार का नेतृत्व रहेगा तब तक दलित पिछडों का एक मंच पर आना मुश्किल है, यही संघ बीजेपी की ऊर्जा है. दोनों पर ED, CBI का शिकंजा बरकरार है. मुलायम से मायावती को अलग करना सवर्णों की राजनीति कर रही बीजेपी का यह सबसे कामयाब रणनीतिक कदम था क्योंकि इससे बीजेपी दलितों के बीच यह संदेश देने में सफल रही कि वह उनके खिलाफ नहीं है. इस प्रकार बीजेपी को जातीय आधार पर अछूत मानने वाले दलितों के मन में अब बीजेपी को लेकर इतनी नफरत नहीं रह गई. मायावती के नेतृत्व में बसपा ने बीजेपी के साथ तीन बार गठबंधन किया. हद तो यहां तक हुई कि गुजरात दंगे के ठीक बाद मायावती उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात में नरेन्द्र मोदी का चुनाव प्रचार करने भी गईं. कहने का अर्थ है कि कांशीराम के एक गलत कदम से बीजेपी को कई कदम आगे छलांग लगाने में मदद मिली. बीजेपी ने अपने ऊपर से सांप्रदायिकता और जातिवादी होने का ठप्पा हटा दिया. आश्चर्य तो तब है कि मुसलमानों के नरसंहार के मसीहा मोदी का प्रचार मायावती गुजरात में की, बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाती रही और मुसलमान मायावती को वोट देता रहा. आरएसएस-बीजेपी को समाज में स्वीकृति दिलाने के मामले में बिहार के दो बड़े नेताओं का जिक्र हुए बिना ये सूची अधूरी रह जाएगी. शरद यादव और रामविलास पासवान. वीपी सिंह की सरकार में मंडल आयोग की अनुशंसा लागू होने के बाद इसका पूरा श्रेय सरकार में शामिल शरद यादव और रामविलास पासवान ने आपस में बांटना चाहा. दोनों नेता मंडल आयोग के लागू होने के बाद उस दौर में बीजेपी को सवर्णों की पार्टी के रूप में चिन्हित करते थे. लेकिन जैसे ही उनकी अपनी हैसियत जनता दल में कमजोर हुई, दोनों उसी ‘ब्राह्मणवादी’ बीजेपी से जा मिले. अब बीजेपी उनके लिए पिछड़ों-दलितों का हक़ मारने वाली पार्टी नहीं रही. शरद यादव और रामविलास पासवान का बीजेपी नेतृत्व की छत्रछाया में आ जाना सामाजिक न्याय की धारा की तरफ से यह मान लेना था कि आरएसएस या बीजेपी सचमुच दलित-पिछड़ा विरोधी नहीं है अन्यथा वीपी सिंह के बाद मंडल आयोग के दो सबसे बड़े ‘मसीहा’ कैसे बीजेपी के साथ होते? इस तरह बीजेपी की दलितों और पिछड़ों में स्वीकार्यता गहरी हो गई. ये सभी नेता अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के लिए पहले जनसंघ से मिले, फिर बीजेपी के साथ हाथ मिलाया और आरएसएस को अपनी ज़मीन मजबूत करने में योगदान दिया. वास्तव में राममनोहर लोहिया पहले राजनेता थे जो इस खतरे को सबसे अच्छी तरह जानते थे फिर भी उन्होंने यह गलती की थी. लोहिया पहले समाजवादी नेता थे जो सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए लड़ रहे थे. अगर लोहिया कुछ दिन और जिंदा रहते तो यकीनी तौर पर उन्हें अपनी गलती का पूरा एहसास हुआ होता. हालांकि मरने के पहले उनको एहसास हो चुका था . राममनोहर लोहिया ने वर्षों पहले भारत पाकिस्तान के बंटबारे को लेकर एक किताब लिखी थी- ‘भारत विभाजन के गुनाहगार.’ बिना नाम लिए उन्होंने बताया था कि गुनाहगार कौन हैं. मेरा अनुमान है कि अगर आज लोहिया जिंदा रहते तो शायद उनकी किताब का नाम होता- ‘आरएसएस को वैधता दिए जाने के गुनाहगार.’ जो साफगोई और ईमानदारी डॉ. लोहिया में थी, वे बिना झिझक यह लिखते कि कैसे उन्होंने अकेले आरएसएस को ‘गांधी हत्या’ के पाप से मुक्त किया है. नीतीश कुमार तो आज भी हैं और रामविलास पासवान मरते दम तक बीजेपी के तंबू में घुसे थे ! उनका पुत्र चिराग पांडे आज भी घूम फिरकर उसी तंबू का बंबू उठाने के लिये विवश है... drbn singh.

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

संभल में पूजारी तांत्रिक का धनवर्षा गैग पकडा गया - सैंकड़ों लडकियों का यौन शोषण

लड़कियों के नग्न वीडियो... बेनकाब हुआ धन वर्षा तांत्रिक गिरोह, यूपी से लेकर दिल्ली-राजस्थान तक जुड़े तार संभल पुलिस ने धन वर्षा तांत्रिक गिरोह का भंडाफोड़ किया जिसका नेटवर्क दिल्ली जयपुर वाराणसी और आगरा तक फैला था। अब तक 14 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और एक प्रोफेसर से पूछताछ जारी है। गिरोह लड़कियों के शोषण में लिप्त था और इसमें तीन पुजारी व एक स्टेशन मास्टर भी शामिल थे। पुलिस ने अर्धनग्न वीडियो और वन्य जीव तस्करी के सुराग भी पाए हैं। जांच जारी है। प्रोफेसर और कई बुद्धजीवी भी गिरोह के सदस्य, आडियो रिकार्डिंग से खुले राज दिल्ली और जयपुर के लिए भी आर्टिकल के रूप में होती थी लड़कियों की सप्लाई संवाद सहयोगी, बहजोई। धन वर्षा तांत्रिक गिरोह का नेटवर्क सिर्फ यूपी के आगरा, फिरोजाबाद तक सीमित नहीं था। दिल्ली एनसीआर के निकट मथुरा, दिल्ली और जयपुर में भी उसके तार जुड़े हैं। जिन्हें पुलिस कई काल रिकॉर्डिंग के आधार पर खंगाल रही है। अब तक 14 लोग गिरफ्तार हुए हैं लेकिन पुलिस ने एक प्रोफेसर से भी हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की है, जिसके पास से कई वीडियो और आडियो भी बरामद हुए हैं और इसी के जरिए दिल्ली अन्य राज्यों से कनेक्शन जोड़ा जा रहा है। इस गिरोह में कई बुद्धजीवी लोगों के जुड़े होने की बात सामने आ रही है। पुलिस ने उस परिवारों से संपर्क किया है जो इस गिरोह के झांसे में आए और उन्होंने लड़कियों के डाटा को दिया, उन्हें उपलब्ध कराया, जिनका शोषण किया गया और जिन्हें आर्टिकल के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। गिरोह में तीन पुजारी भी शामिल विदित हो कि इस गिरोह में आगरा के एक स्टेशन मास्टर भी शामिल था जबकि तीन पुजारी शामिल हैं। दो आडियो रिकार्डिंग भी बरामद हुए जिनसे वाराणसी तक संपर्क होने के साक्ष्य मिलते हैं। जिसमें विदेश से वन्य जीव तस्करी का मामला भी सामने आया है। गिरोह के मोबाइल डाटा की जांच में लड़कियों के अर्धनग्न और नग्न अवस्था में वीडियो बरामद हुए थे, जिससे उनके शोषण की पुष्टि हुई। यह गिरोह तंत्र विद्या और अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से लोगों को गुमराह कर लड़कियों का शोषण करता था। पुलिस ने यह पर्दाफाश संभल जिले के धनारी क्षेत्र के एक युवक के द्वारा की गई शिकायत के आधार पर किया था, जिसमें संभल के भी दो लोग शामिल थे। अब पुलिस फिरोजाबाद, आगरा और अन्य जिलों में मिले मोबाइल डाटा के आधार पर प्रभावित लोगों से संपर्क कर रही है। पुलिस के समक्ष यह भी चुनौती है कि जिन परिवारों से पुलिस संपर्क कर रही है, वह कुछ भी बोलने से इन्कार कर रहे हैं और सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल न हो। इसके लिए वह कार्रवाई से इनकार कर रहे हैं। अब तक पुलिस करीब चार परिवारों से संपर्क साथ चुकी है। धन वर्षा तांत्रिक गिरोह में पुलिस की कार्रवाई लगातार जारी है। इस गिरोह से पुजारी और आर्टिकल उपलब्ध कराने वाले लोगों में प्रोफेसर और अन्य बुद्धिजीवी लोग भी शामिल हैं। एक प्रोफेसर से पूछताछ भी की जा रही है। दिल्ली और जयपुर से भी गिरोह की तार जुड़े हैं। पुलिस इसको लेकर भी छापेमारी कर रही है। जल्द ही एक और पर्दाफाश किया जाएगा।

हिंदू महासंघ गोरक्षा दल के अध्यक्ष सहित छह लोगों को रंगदारी मांगने के मामले में गिरफ्तार किया

बदायूं। उसावां में हिंदू महासंघ गोरक्षा दल के अध्यक्ष सहित छह लोगों को रंगदारी मांगने के मामले में गिरफ्तार किया गया है। पीड़ित महिला प्रधान के बेटे से गोशाला की चेकिंग के नाम पर 80 हजार रुपये की मांग की गई... रंगदारी मांगने वाले हिंदू महासंघ गोरक्षा दल के अध्यक्ष सहित छह गिरफ्तार, दो फरार रंगदारी मांगने के मामले में हिंदू महासंघ गोरक्षा दल के अध्यक्ष सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि दो फरार हैं। घटना उसावां थाने के अंतर्गत उदैया नगला क्षेत्र की गोशाला की चेकिंग के नाम पर 80 हजार रुपये की मांग करने की थी। महिला प्रधान के बेटे को गाड़ी में डालकर पांच हजार रुपये वसूल किए गए, जबकि शेष रकम दो घंटे में देने का दबाव बनाया गया। महिला प्रधान की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दजर्ह कर जांच शुरू कर दी है। यह गिरोह गोशालाओं में कमी के नाम पर रंगदारी वसूली करता था और इन पर पहले भी कई मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। गांव उदैया नगला की ग्राम प्रधान सुनहरी देवी ने पुलिस को बताया कि उनके बेटे विमलेश गोशाला की देखरेख करता है। 23 मार्च 2025 को विमलेश गाड़ी से उसावां गया था। तभी उसके मोबाइल पर एक कॉल आई, जिसमें खुद को विश्व हिंदू महासंघ गोरक्षा दल का जिलाध्यक्ष बताते हुए गोशाला की चेकिंग करने की बात कही गई। कॉल के बाद विमलेश तुरंत गोशाला पहुंचा, जहां पहले से मौजूद 8-10 लोगों ने उसे घेर लिया। इन लोगों में बाबी गुप्ता उर्फ विपिन, अनुज गुप्ता पुत्र पूरनलाल गुप्ता, पूरनलाल गुप्ता पुत्र श्रीराम, राहुल भारद्वाज बबलू भारद्वाज, सागर राठौर पुत्र विनोद, भूरे, अनुज यादव पुत्र राकेश यादव और मोहित यादव पुत्र दिनेश यादव शामिल थे। आरोपियों ने गोशाला में गंदगी और गायों की देखभाल न करने का आरोप लगाते हुए धमकी दी कि वे उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराकर जेल भिजवा देंगे। इसके बाद 80 हजार रुपये की मांग की गई। विमलेश के मना करने पर आरोपियों ने उसे जबरदस्ती पकड़कर बोलेरो गाड़ी में डाल लिया और रौता गांव के पास एक दुकान पर ले गए। जहां डर के कारण विमलेश ने तत्काल पांच हजार रुपये दे दिए और बाकी 50 हजार रुपये दो घंटे में देने का झांसा देकर खुद को छुड़ाया। घर पहुंचकर पीड़ित ने पूरी घटना अपनी मां सुनहरी देवी को बताई। इसके बाद भी आरोपियों ने मोबाइल पर कॉल कर पैसों की मांग जारी रखी और क्यूआर कोड भेजकर रकम ट्रांसफर करने का दबाव बनाया। पीड़ित ने इन कॉल्स की रिकॉर्डिंग भी पुलिस को सौंपी है। ग्राम प्रधान सुनहरी देवी की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की। इसके बाद पुलिस ने बाबी गुप्ता उर्फ विपिन, अनुज गुप्ता, पूरनलाल गुप्ता, राहुल भारद्वाज, अनुज यादव और मोहित यादव को गिरफ्तार कर जांच शुरू कर दी है। जबकि सागर राठौर और भूरे फरार हो गए। जिनकी तलाश जारी है। पहले भी इन लोगों पर दर्ज हो चुका है केस बॉबी गुप्ता उर्फ विपिन के खिलाफ पहले भी कई मुकदमें भी दर्ज किए जा चुके हैं। बॉबी दुष्कर्म हाल फिलहाल में जेल जा चुका है, जबकि अनुज यादव पर दलित उत्पीड़न और छेड़छाड़ का आरोप लग चुके हैं। इसके अलावा, दोनों के खिलाफ कई अन्य गंभीर आरोपों के तहत मुकदमे दर्ज हैं। अनुज यादव जो अपने पिता की रायफल लेकर इन लोगों के साथ रहता था, इस मामले में पुलिस की जांच के दायरे में हैं।

धर्म के मामले में दखल क्यों? - गौरव गोगोई

धर्म के मामले में दखल क्यों? - गौरव गोगोई केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया। विधेयक को सदन में पेश करते ही विपक्षी दलों ने विरोध शुरू कर दिया। इस दौरान कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा,'ये संविधान की मूल भावना पर आक्रमण करने वाला बिल है।' लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने किरेन रिजिजू के बयान पर आपत्ति जताते हुए अपनी बात शुरू की। उन्होंने मंत्री के बयान को गुमराह करने वाला बताया। गोगोई ने कहा,'मंत्री ने 2013 में यूपीए सरकार के विषय में जो कहा, वह पूरा का पूरा मिसलीड करने वाला बयान है, झूठ है। इन्होंने जो आरोप लगाए हैं और भ्रम फैलाया है, वो बेबुनियाद है।' भारत का संविधान मार्गदर्शक गोगोई ने आगे कहा,'मेरा सौभाग्य है कि पिछले सदन में मैंने अयोध्या राम मंदिर पर अपनी पार्टी का पक्ष रखा। आज वक्फ बिल पर विपक्ष की तरफ से अपना पक्ष रख रहा हूं। दोनों मामलों में एक ही मार्गदर्शक भारत का संविधान है। हमारा संविधान कहता है कि सभी को सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक न्याय और समानता मिले। यह बिल संविधान के मूल ढांचे पर आक्रमण है। मंत्री किरेन रिजिजू का पूरा भाषण संघीय ढांचे पर आक्रमण है।' भारतीय समाज को बांटना मकसद गौरव गोगोई ने सरकार पर निसाना साधते हुए कहा,'इस सरकार के चार मकसद हैं। संविधान को कमजोर करना, भ्रम फैलाना और अल्पसंख्यकों को बदनाम करना, भारतीय समाज को बांटना और चौथा मकसद अल्पसंख्यकों को डिसएन्फ्रेंचाइज करना। कुछ हफ्ते पहले देश में लोगों ने ईद की शुभकामनाएं दीं। इनकी डबल इंजन सरकार ने लोगों को सड़क पर नमाज नहीं पढ़ने दी।' संशोधनों से बढ़ेंगी समस्याएं और विवाद सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए गोगोई ने कहा,'आज एक विशेष समाज की जमीन पर सरकार की नजर है, कल समाज के दूसरे अल्पसंख्यकों की जमीन पर इनकी नजर जाएगी। मैं यह नहीं कहता कि संशोधन नहीं होना चाहिए। संशोधन ऐसा होना चाहिए कि बिल ताकतवर बने। इनके संशोधनों से समस्याएं और विवाद बढ़ेंगे। ये चाहते हैं कि देश के कोने-कोने में केस चले। ये देश में भाईचारे का वातावरण तोड़ना चाहते हैं। राज्य सरकार के पास नियम बनाने की ताकत गोगोई ने कहा,'बोर्ड राज्य सरकार की अनुमति से कुछ नियम बना सकते हैं। ये पूरी तरह से उसे हटाना चाहते हैं। राज्य सरकार की पावर खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। नियम बनाने की ताकत राज्य सरकार को है। राज्य सरकार सर्वे कमिश्नर के पक्ष में नियम बना सकती है। आप सब हटाना चाहते हैं और कह रहे हैं कि ये संशोधन हैं।' सरकार को देना पड़ रहा धर्म प्रमाण पत्र बिल की वैधता पर प्रश्न उठाते हुए गोगोई ने कहा,'क्या अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने यह विधेयक बनाया है, या किसी और विभाग ने बनाया है? यह विधेयक कहां से आया? आज देश में अल्पसंख्यकों की हालत ऐसी हो गई है कि आज सरकार को उनके धर्म का प्रमाण पत्र देना पड़ेगा। क्या वे दूसरे धर्मों से प्रमाण पत्र मांगेंगे? सरकार धर्म के इस मामले में क्यों दखल दे रही है?'
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