लो क सं घ र्ष !
लोकसंघर्ष पत्रिका
शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025
गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025
किसान कर्ज माफ करने का आंदोलन
किसान कर्ज माफ करने का आंदोलन 
महाराष्ट्र के नागपुर में कर्ज माफी की मांग को लेकर जारी किसानों के प्रदर्शन पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। जस्टिस रजनीश व्यास ने सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि प्रदर्शन की अनुमति केवल 24 घंटे के लिए दी गई थी। प्रदर्शनकारी आज शाम 6 बजे तक धरना स्थल खाली करें।
प्रदर्शन की अगुआई कर रहे प्रहार जनशक्ति पार्टी के नेता बच्चू कडू ने कहा, हम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए नेशनल हाईवे छोड़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन पुलिस को हमें बताना चाहिए कि वे हमें कहां ले जा रहे हैं और हमारे लिए क्या व्यवस्था कर रहे हैं। किसानों के प्रदर्शन का आज दूसरा दिन था। किसानों ने स्टेट हाईवे को जाम किया था।
उधर सीएम देवेंद्र फडणवीस ने बच्चू कडू से अपील की कि वे किसानों के मुद्दों पर सरकार के साथ चर्चा करें, न कि ऐसे आंदोलन करें जिनसे जनता को असुविधा हो। एक दिन पहले मंगलवार को भी हजारों किसान नागपुर-हैदराबाद हाईवे (NH-44) पर उतर आए थे। उन्होंने करीब 7 घंटे तक हाईवे जाम रखा था।
किसानों की मांग है कि सरकार ने चुनावों के दौरान कर्ज माफी और फसल बोनस का वादा किया था, लेकिन अब तक किसी को राहत नहीं मिली।
मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025
संघ का बढता हुआ प्रभाव आई ए एस गिरफ्तार
संघ का बढता हुआ प्रभाव आई ए एस गिरफ्तार
दिल्ली में तैनात अरुणाचल प्रदेश के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी गिरफ्तार, 19 वर्षीय युवक के सुसाइड नोट में यौन शोषण के गंभीर आरोप
दिल्ली में तैनात अरुणाचल प्रदेश कैडर के IAS अधिकारी तालो पोटोम को सोमवार को गिरफ्तार कर लिया गया। वे दो संदिग्ध आत्महत्याओं के मामले में मुख्य आरोपी हैं, जहां एक 19 वर्षीय युवक के सुसाइड नोट में उन पर यौन शोषण, मानसिक उत्पीड़न और धमकी देने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। यह मामला अरुणाचल प्रदेश में सनसनी फैला रहा है।
दो आत्महत्याओं ने खोला राज
मामला 23 अक्टूबर को तब शुरू हुआ जब पापुम पारे जिले के निवासी 19 वर्षीय गोम्चू येकर ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। येकर दिल्ली सरकार के पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (PWD) में संविदा कर्मचारी के रूप में काम कर रहा था, जिसकी नौकरी उसे पोटोम ने 2021-2025 के दौरान ईटानगर डिप्टी कमिश्नर रहते हुए दिलवाई थी। येकर के परिवार ने बताया कि उसके पास कई सुसाइड नोट बरामद हुए, जिसमें उसने पोटोम और राज्य ग्रामीण कार्य विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर लिकवांग लोवांग पर यौन शोषण, वित्तीय लालच, धोखा और ब्लैकमेल का आरोप लगाया। नोट में येकर ने दावा किया कि शोषण के कारण उसे HIV हो गया था, और अधिकारियों ने उसकी जिंदगी बर्बाद करने की धमकी दी थी।
दर्ज मामले में कई आरोप
येकर के पिता तागोम येकर ने नीरजुली पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आत्महत्या के लिए उकसाने, यौन शोषण, मानसिक उत्पीड़न, आपराधिक धमकी, भ्रष्टाचार और जीवन को खतरे में डालने के आरोप लगाए गए। परिवार ने सुसाइड नोट को 'डाइंग डिक्लेरेशन' मानते हुए फोरेंसिक जांच की मांग की। इसी बीच, येकर की मौत के कुछ घंटों बाद लोवांग ने भी तिराप जिले के खोंसा में खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। पुलिस के अनुसार, लोवांग का नाम भी येकर के नोट में प्रमुखता से आया था। पोस्टमॉर्टम और HIV टेस्ट के नतीजे अभी अटके हुए हैं।
भारतीय राजनिती के नैतिक पतन के जनक डा. लोहिया..और मैदान बिहार प्रदेश ...
भारतीय राजनिती  के नैतिक पतन के जनक डा. लोहिया..और मैदान  बिहार प्रदेश ....
आजाद भारत की राजनिति के नैतिक पतन की शुरूवात भी इसी बिहार से ही हुई थी। जहाँ समाजवादी, जनसंघ जो आज खाल बदलकर वही बीजेपी बन गयी है तथा कम्युनिस्ट जो अपने को जनसंघ विरोधी कहते हैं, जो आज cpi, cpm
cpi ( ml ) के टुकड़ों में बंटकर रह गये हैं , सबने मिलकर कांग्रेस को हटाने के लिये एक मंच पर आकर 1967 में 10  राज्यों में अनैतिक गठबंधन करके संविद सरकार बनाये। बिहार उसमे सबसे ज्यादा अनैतिक सरकार  थी । जिसमे दो घोर विरोधी  विचारधारा की पार्टी जनसंघ और वामपंथी एक मंच पर आकर सरकार मे शामिल हुये. सबसे आश्चर्य एक विधायक वाली पार्टी का विधायक  महामाया प्रसाद सिन्हा मु मंत्री बने । इस सरकार के Architect डा. लोहिया रहे। 
नयी पीढ़ी के लोग इन समाजवादियों और कम्युनिस्टों का चरित्र नही जानते हैं। कांग्रेस को हटाने के लिये ये सब गांधी के हत्यारों से भी हाथ मिलाने में शर्म महसूस नही किये। आज समाजवादियों का एक कुनबा लालू यादव और कम्युनिस्टों का टुकड़ों में बंटा गिरोह कांग्रेस से मिलकर बीजेपी को हटाने का ढोंग कर रहे है और समाजवादियों का दूसरा कुनबा नीतीश के नेतृत्व में अलटी- पलटी का खेल खेल रहे हैं। वस्तविकता जनता को भी पता है कि लालू - नीतीश दोनों एक ही थैली के चट्टे बट्टे है, हम नही तो तुम , तुम नही तो हम। दोनों को न बीजेपी से लेना देना है , न कांग्रेस से । दोनों का लक्ष्य एक है बीजेपी - कांग्रेस को बिहार की सत्ता से दूर रखना। दोनों समाजवाद के खोल मे जाति के गिरोह बंदी के खिलाड़ी हैं। दोनों का आधार पिछड़ी जातियां है। मुसलमान 17% होकर भी दोनों के लिये बंधुआ से ज्यादा नहीं । लालू यादव 14% यादवों के मसीहा है तो नीतीश कुमार 3.50% कुर्मी तथा 18% अति पिछड़ो के खेवनहार । बीजेपी किसी कीमत पर लालू यादव को सत्ता से बाहर रखना चाहती है क्यूंकि लालू यादव बीजेपी के लिये सबसे खतरनाक । वैसे ही लालू यादव बीेजेपी को सत्तापर देखना नहीं चाहते क्यूंकि लालू यादव अपनी दुर्गति के लिये बीजेपी को ही दोष देते हैं। नीतीश को आगे करके बीेजेपी सत्ता मे हिस्सा लेकर अपने को मजबूत करती है और लालू यादव को सत्ता से दूर रखती है। वहीं नीतीश लालू यादव का भय दिखाकर बीजेपी को समर्थन देने को मजबूर करते रहे हैं, नहीं तो 74 सीट पाकर बीजेपी और 80 सीट पाकर लालू सत्ता के लिये तरसते और 43 सीट पाकर नीतीश कालिया नाग के फन पर बैठकर चैन की वंशी बजाते । आज भी बिहार में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं। दिल्ली में एक तड़िप्पार चाणक्य बैठे हैं वे बिहार को महाराष्ट्रा , हरियाना समझकर बिहार में आये हैं , जो चाणक्य जब प्र. मंत्री चुनना हो तो संसदीय दल के सांसदों से प्र.मंत्री का चुनाव नही कराते हैं और पिछले दो बार 2015 -2020 मे विधायक दल से मु.मंत्री नहीं चुने । इस बार जे डी यू के दलालों को मिलाकर नीतीश को महाराष्ट्रा की तरह किनारे लगाने की चाल चल रहे थे। इनको महाराष्ट्रा बिहार में अंतर समझ नहीं आया। एक ही झटके मे नीतीश ने सभी चाणक्यगीरी पिछवाड़े घुसेड़ दिया । पूरी बिहार की बीेजेपी और चिराग , माझी, उपेंदर कुशवाहा नीतीश नीतीश का गायन करने लगे। संघ मौन है , रंगा - बिल्ला को अपनी औकात समझ में आ गयी। कल से नीतीश ने मोदी- शाह के साथ मंच शेयर करने से इंकार कर दिया है।आगे देखते जाईये, " हम नही तो तुम " का विकल्प खुला है। 
अब आईये चलते है १९६७ में...
सुविधा और दलबदल की राजनिती के जनक डा. लोहिया...
सुविधा और दलबदल की राजनीति जिसने 1967 के चुनावों से भारत के राजनीतिक जीवन को त्रस्त कर दिया है और भारतीय लोकतंत्र को आपदा के कगार पर ला दिया है, बिहार के साथ शुरू हुआ । डॉ. लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बिहार में 1967 के चुनाव में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी थी, जिसमें 68 सीटें पायी थीं। जनसंघ और भाकपा को 25-25 मिले। कांग्रेस हालांकि अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनी रही, लेकिन वह स्पष्ट बहुमत हासिल करने में नाकाम रही । इससे डॉ लोहिया को बिहार राज्य में सबसे पहले अपनी एक गैर-कांग्रेसी गठबंधन मंत्रालय के प्रस्ताव को लागू करने की
कार्रवाई की कोशिश करने के लिए प्रोत्साहित किया , जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी और जनसंघ दोनों को भागीदार होना चाहिए था। ऐसी अनैतिक कोशिश को जनसंघ और वामपंथियों द्वारा एकमुश्त अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए था, जिस
जनसंघ ने तो अप्रैल १९६६ में जलंधर में आयोजित अपने पूर्ण सत्र में कम्युनिस्ट पार्टी के साथ किसी भी आकार के रूप में सहयोग के खिलाफ मतदान किया था । यह कम्युनिस्ट पार्टी के लिए भी उतना ही प्रतिकूल था कि फासिस्ट सोच वालों के साथ कैसे दे सकते हैं । लेकिन वामपंथियों में घुसपैठ करने या उन्हें खाने की वस्तु के साथ बिल्कुल अलग और विपरीत दलों के साथ संयुक्त मोर्चों का गठन कम्युनिस्ट पद्धति का एक अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त हिस्सा है जो "साधनों को न्यायोचित ठहराने के सिद्धांत" पर आधारित है। इसके अलावा प्रस्तावित गठबंधन के सरगना एस. एस. पी .के साथ भाकपा के संबंध काफी सौहार्दपूर्ण माने जाते थे और उन्होंने चुनाव में भी सहयोग किया था। लेकिन जहां तक जनसंघ का सवाल था, एस.एस.पी .के लिए भी उसका कोई प्यार खतम नहीं हुआ था ( प्रीत पुरातन लखई न कोई .. वाली स्थिति ) । इसने एस.एस.पी . को कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशित क्षय और विघटन से उत्पन्न वैक्यूम को भरने की दौड़ में अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानता था । इसलिए जब यह घोषणा की गई कि बिहार जनसंघ प्रस्तावित गठबंधन में शामिल होगा तो सभी डेमोक्रेट्स के लिए यह दुखद आश्चर्य की बात थी . यह जानकर और ज्यादा हैरानी जनसंघ के उस समय के अध्यक्ष को हुई कि इस निर्णय को आरएसएस आलाकमान का आशीर्वाद भी मिला है । 
बिहार मे हरी झंडी मिलते ही पंजाब, उ. प्र. और हरियाना, मध्य प्रदेश में गठबंधन सरकार का रास्ता खुल गया। लेकिन कम्यनिस्टों के साथ मिलने पर भी उ.प्र. , म. प्रदेश, हरियाना और पंजाब मे विरोधियों की सरकार नहीं बन पा रही थी तो इसका उपाय कांग्रेस पार्टी में जयचंद खोजकर किया गया। उ.प्र. से चौ. चरन सिंह, मध्य प्रदेश से जी. यन .सिंह और हरियाना से राव वीरेंद्र सिंह, बंगाल मे अजय मुखर्जी जय चंद मिले और जाहिर है सभी जयचंद मुख्य मंत्री बन गये , महान लोहिया के कृपा से। लोहिया की नेहरू, इंदिरा के घृणा का परिणाम भारतीय राजनिति के लिये बड़ा भयावह साबित हुआ। आज की दिल्ली की सरकार और बिहार की नीतीश की सरकार उसी लोहिया के महानता का परिणाम है। इस पंचमेल गठबंधन सरकार का आधार कोई वैचारिक धरातल तो था नहीं, यह ईर्ष्यां , द्वेष , घृणा, रूपया और कुर्सी के लोभ का परिणाम था। अत: बहुत ही जल्दी इसके आंतरिक अंतर्विरोध सामने आने लगे और एक एक करके सभी सरकारे गिरने लगी। गठबंधन सरकार की सफलता की जो भी कंडीशन थी उसे कभी भी पूरा नहीं किया गया और गठबंधन के विभिन्न विचार के दल एक दूसरे की टांग खीचने का कोई मौका जाया नही करते थे। सबको पता था कि मध्यावती चुनाव कभी भी हो सकते थे, अत: सभी अपने को मजबूत और दूसरे को कमजोर करने का कोई मौका हाथ से जाने नही देते थे। सरकार गिरने पर जब मध्यावती चुनाव हुआ तो सबसे ज्यादा नुकसान जनसंघ का हुआ , सभी जगह उसकी सीटे घट गयी, उदाहरण के तौर पर U.P. में जनसंघ कि ९८ सीटें थी , चौ. चरन सिंह १६ विधायक लेकर आये थे , चुनाव में वे भारतीय क्रांति दल बनाकर लड़े । जनसंघ ९८ से ४७ पर सिमट गयी और चौ. चरन सिंह ९९ पाकर मुख्य विरोधी दल बन गये। इस प्रकार लोहिया सुविधा की राजनिति और दल बदल के गेम के जनक बन गये और चौ. चरन सिंह उसके महान खिलाड़ी बनकर प्रधान मंत्री की कुर्सी तक उसी रास्ते से प्राप्त किया। नयी पीढ़ी को इन महान लोगों के बारे में कुछ पता नहीं .....
drbn singh.
मेरठ में बुल्डोजर बाबा का आशीर्वाद व्यापारियों को मिला तो हंसने की बजाय रो रहे हैं। यही हाल बाराबंकी में व्यापारी नीरज जैन की आत्महत्या के बाद कोई कार्रवाई न होने पर अपना मुंह पीट रहे हैं व्यापारी नेता।
मेरठ में बुल्डोजर बाबा का आशीर्वाद व्यापारियों को मिला तो हंसने की बजाय रो रहे हैं। यही हाल बाराबंकी में व्यापारी नीरज जैन की आत्महत्या के बाद कोई कार्रवाई न होने पर अपना मुंह पीट रहे हैं व्यापारी नेता। 
सोमवार, 27 अक्टूबर 2025
अज़ीज़ बर्नी की कलम से हिंदूवादी सरकार और तालिबानी फरमान,,,
हिंदूवादी सरकार और तालिबानी फरमान,,,
ये तो तारीखी हक़ीक़त है कि हिंदुस्तान पर मुगलों ने हुकूमत की, तब भी हिंदुस्तान में हिंदुओं की अक्सरियत थी और जब अंग्रेजों ने हिंदुस्तान पर हुकूमत की तब भी हिंदुस्तान में हिंदुओं की अक्सरियत थी और सैकड़ों साल तक चलने वाली इन हुकूमतों में सिर्फ़ कुछ हज़ार ही मुग़ल या अंग्रेज़ हुक्मरान थे जबकि  उनके निज़ाम को अमल में लाने वाले अहलकार ज़्यादा तर हिन्दू थे। मैं इस वक़्त इस तफसील में नहीं जाना चाहता, कि उस वक़्त क्यों हिंदू अक्सरियत ने अंग्रेजों की गुलामी कुबूल करते हुए हिन्दुस्तानियों पर ज़ुल्म किए। यानी हिंदुओं ने उस वक़्त के हुक्मरानों के हुक्म पर अमल करते हुए हिंदुओं पर ज़ुल्म किए और इनमें जालियांवाला बाग का ज़ुल्म भी शामिल है जिसमें बेशक गोली चलाने का हुक्म देने वाला जनरल डायर अंग्रेज था लेकिन गोली चलाने वाले अंग्रेज़ नहीं थे।
बेशक ये अंग्रेजों की हुकूमत का दौर था। लेकिन आज,,,
हिंदुस्तान आज़ाद है और ये 2014 के बाद वाली सरकार है,,, ये कांग्रेस या सेक्युलर वादियों की सरकार नहीं है। ये 1947 के बाद वाली  पंडित नेहरू की सरकार नहीं है।जो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए हिंदुत्व पर अमल नहीं करती थी,,, ये भी कहा जाता रहा कि 1947 में मिली आज़ादी संपूर्ण आज़ादी नहीं थी,,, बक़िम चन्द्र के आनंद मठ की राह पर चलने वाली सरकार नहीं थी हिन्दुओं की अक्सरियत वाले देश में हिंदुत्व की सरकार नहीं थी,,,
लेकिन 
लेकिन 
2014 के बाद वाली सरकार जो आज 2025 में भी जारी है ये कट्टर हिंदुत्व वादी सरकार है जो पिछले 11 साल में क़दम क़दम पर देश की जनता को ये अहसास दिलाती रही कि हम हिंदू हित को सर्वोपरी रखते हैं। यहां तक कि, अपने अमल से मुसलमानों को दूसरे दर्जे का शहरी होने का अहसास दिलाया जाता रहा और मुसलमानों की बात करने वाली तमाम सेक्युलर पार्टियों को मुस्लिम हितैषी और हिन्दू विरोधी प्रचारित किया जाता रहा राहुल गांधी को सीधे निशाने पर रखा जाता रहा मुलायम सिंह यादव को कोसा जाता रहा,,,
फिर आज जबकि,,,
ना कांग्रेस की हुकूमत है ना सेक्युलर वादियों की,,, ये वो हुकूमत है जिसके निशाने पर हमेशा मुग़ल शासक औरंगजेब और दीगर मुस्लिम हुक्मरान रहे। अफगानिस्तान से आकर भारत पर हुक्मरानी करने वाले मुग़ल शासक रहे,,,
ये तो इतिहास की बातें हैं बीते हुए कल की बातें हैं जिनका ज़िक्र कर कर के आज की हुकूमत हिंदुत्वा का ढोल पीटती रही और हिन्दुओं का ध्रुवीकरण करती रही उन्हें वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करती रही, सरकार बनाती रही इसी वजह से मुग़ल हुक्मरान अफगानिस्तान से आए मुग़ल हुक्मरान और मुसलमान निशाने पर रहे,,,
वो आज अफगानिस्तान से आए एक मुसलमान, एक तालिबानी मुसलमान के फ़रमान को मानने के लिए मजबूर क्यों हुई,,,
 ये गुलामी का दौर नहीं है,,, 
ये मुगलों की हुकूमत नहीं है,,,
 ये काबुल से आकर हुकूमत करने वालों की सरकार नहीं है,,,
 ये मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चलने वाले सेक्युलर वादियों की सरकार नहीं है,,,
ये स्त्रियों को सम्मान देने के स्लोगन देने वाली सरकार है,,, 
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार है,,, उसने हिंदुस्तान की पढ़ी लिखी महिला पत्रकारों के बहिष्कार, प्रेस कॉन्फ्रेंस में ना आने देने के तालिबानी फरमान को क्यों मान लिया,,,
बिहार के चुनाव में हर स्तर पर महिलाओं को आकर्षित करने वाले नारे दिए दिए गए, आर्थिक लाभ दिए गए उनके मान सम्मान की बात की गई, फिर दिल्ली में महिला पत्रकारों का बहिष्कार क्यों स्वीकार किया गया,,,
 ये एक अहम मुद्दा है जिसका असर बिहार के चुनाव में हो सकता है।
इतिहास इस बात का गवाह रहेगा कि आज हिंदुत्व की सरकार में काबुल से आने वाला एक अफ़गानी,एक तालिबानी हिंदुस्तान की गुलामी के दौर में नहीं आज़ादी के बाद सबसे शक्तिशाली हिंदूवादी सरकार में अपना हुक्म चलाने में कामयाब कैसे हुआ,,,
 बस इतनी सी बात कहने केलिए मुझे ये चंद लाइनें लिखनी पड़ीं कि अब अब आप मुगलकालीन इतिहास की बात ना करें आज के इतिहास की बात करें,,,जिसमें एक अफ़गानी मुसलमान ने हिंदुस्तान की धरती पर अपना फरमान जारी किया और हिंदुस्तान की सरकार ने उसे क़ुबूल किया,,,,,, समाप्त।
अज़ीज़ बर्नी
सीपीआई(एम) ने पीएम-श्री विवाद पर सीपीआई को शांति प्रस्ताव दिया
सीपीआई(एम) ने पीएम-श्री विवाद पर सीपीआई को शांति प्रस्ताव दिया
विवादास्पद केंद्र-राज्य समझौते को अधिकृत करने वाले सामान्य शिक्षा मंत्री वी शिवनकुट्टी ने सीपीआई के राज्य सचिव बिनॉय विश्वम से मुलाकात की
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)  ने शनिवार को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को शांति प्रस्ताव दिया, क्योंकि सीपीआई ने सरकार पर आरोप लगाया था कि उसने स्कूली शिक्षा के लिए पीएम-श्री योजना के संघीय आवंटन को सुरक्षित करने के लिए कैबिनेट या वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के परामर्श के बिना केंद्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर “मनमाने ढंग से” हस्ताक्षर किए हैं।
विवादास्पद केंद्र-राज्य समझौते को मंज़ूरी देने वाले सामान्य शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने तिरुवनंतपुरम के एमएन स्मारकम स्थित पार्टी मुख्यालय में भाकपा के राज्य सचिव बिनॉय विश्वम से मुलाकात कर मामले को स्पष्ट किया। बाद में उन्होंने पत्रकारों को बताया कि बातचीत सौहार्दपूर्ण रही और इससे स्थिति स्पष्ट हुई।
सीपीआई के राज्य सचिव बिनॉय विश्वम ने समझौते पर “गुप्त रूप से” हस्ताक्षर करने के लिए सरकार की सार्वजनिक रूप से आलोचना करके गठबंधन संबंधों में एक तनावपूर्ण दौर शुरू कर दिया, उन्होंने कहा कि इस समझौते ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा स्कूली शिक्षा के भगवाकरण के कपटपूर्ण प्रयास के खिलाफ वामपंथियों के राष्ट्रीय प्रतिरोध को कमजोर कर दिया है।
श्री विश्वम ने कहा कि केरल ने केंद्र के झांसे में आकर पीएम-श्री निधि जारी करने को “आरएसएस-प्रेरित” नई शिक्षा नीति  के अनुपालन से जोड़ दिया है।
श्री विश्वम ने एलडीएफ संयोजक टी.पी. रामकृष्णन और अन्य सहयोगियों को एक विरोध पत्र भेजा, जिसमें “गठबंधन की मर्यादा और कैबिनेट की सामूहिक जिम्मेदारी के उल्लंघन” पर सीपीआई की गहरी पीड़ा व्यक्त की गई।
सीपीआई(एम) का रुख
पूर्व कानून मंत्री और सीपीआई (एम) नेता ने पलक्कड़ में संवाददाताओं को बताया कि मंत्रिमंडल ने सीपीआई की सहमति से केरल को स्वास्थ्य, कृषि और उच्च शिक्षा क्षेत्रों में केंद्र द्वारा दिए जाने वाले संघीय अनुदान को सुरक्षित करने के लिए तुलनीय समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं।
उन्होंने कहा कि केंद्र-राज्य संबंधों में एक हद तक लचीलापन ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि केरल ने स्वास्थ्य, उच्च शिक्षा और कृषि के लिए केंद्रीय अनुदान स्वीकार कर लिया, बिना किसी ऐसी शर्त पर सहमत हुए जिसके बारे में राज्य का मानना था कि वह आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाएगा या संघवाद को कमज़ोर करेगा। 
श्री बालन ने बताया कि केंद्र सरकार ने ज़ोर देकर कहा था कि राज्य सरकार संघीय सरकार द्वारा वित्त पोषित अस्पतालों में प्रधानमंत्री की तस्वीर और केंद्र सरकार का प्रतीक चिन्ह लगाए। उन्होंने कहा, "हम प्रधानमंत्री की तस्वीर की बजाय केंद्र सरकार का प्रतीक चिन्ह लगाने पर सहमत हुए और फिर भी हमें धनराशि मिल गई।"
एनसीईआरटी की चाल
राज्य हमेशा एनईपी का विरोध नहीं कर सकता: मंत्री
श्री बालन ने कहा कि इसी तरह, केरल ने इतिहास की पाठ्यपुस्तकों से गांधी हत्याकांड और मुगल शासन को हटाकर शिक्षा के भगवाकरण की एनसीईआरटी की चाल को नाकाम कर दिया। उन्होंने आगे कहा, "केरल ने नई पाठ्यपुस्तकें प्रकाशित कीं, जिनमें हटाए गए अध्यायों को बरकरार रखा गया।" 
श्री बालन ने कहा कि श्री शिवनकुट्टी ने एलडीएफ की राजनीतिक और वैचारिक लाइन से समझौता किए बिना संघीय वित्त पोषण प्राप्त करने में कैबिनेट के स्थापित तरीके का पालन किया है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हस्ताक्षर करना एक रणनीतिक निर्णय है: मंत्री
श्री शिवनकुट्टी ने राज्य के 40 लाख छात्रों के हितों की रक्षा की। उन्होंने कहा, "केरल को कक्षाओं के आधुनिकीकरण, ज़रूरतमंद छात्रों को एकमुश्त अनुदान वितरित करने, लगभग 7000 शिक्षकों को वेतन देने, कंप्यूटर और अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं सहित नवीनतम शिक्षण सहायक सामग्री खरीदने के लिए बड़े पैमाने पर संघीय आवंटन, अनुमानित 1,446 करोड़ रुपये, की आवश्यकता है।" 
श्री बालन ने कहा कि एलडीएफ में एमओयू अंतिम निर्णय नहीं है। उन्होंने आगे कहा, "एलडीएफ इस मामले पर विस्तार से चर्चा करेगा, सहयोगियों की चिंताओं का समाधान करेगा और आगे बढ़ने से पहले आम सहमति पर पहुँचेगा।" 
रविवार, 26 अक्टूबर 2025
गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025
उडीसा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सचिव भगवती चरण पाणिगराही
उडीसा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सचिव भगवती चरण पाणिगराही
भगवती चरण पाणिग्रही जन्म 1 फ़रवरी 1908 - मृत्यु 23 अक्टूबर 1943
 भारतीय ओडिया लेखक और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी/शहीद थे।  वे उड़ीसा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सचिव थे । 1943 में ब्रिटिश भारत पुलिस की गिरफ़्तारी के दौरान रहस्यमय तरीके से उनकी हत्या होने से पहले उन्होंने लगभग एक दर्जन लघु कथाएँ लिखी थीं। वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निकट सहयोगी थे। 
भगवती चरण अपनी युवावस्था और राजनीतिक जीवन की शुरुआत में महात्मा गांधी की राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित थे। बाद में वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए । पाणिग्रही ने गुरु चरण पटनायक और कॉमरेड प्राणनाथ पटनायक के साथ मिलकर 1 अप्रैल 1936 को ओडिशा कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया । पाणिग्रही पार्टी के पहले राज्य सचिव थे। 
अमेरिका में फूड डिलीवरी करके गुजारा कर रहे सरकारी कर्मचारी:22 दिन से सैलरी नहीं
अमेरिका में फूड डिलीवरी करके गुजारा कर रहे सरकारी कर्मचारी:22 दिन से सैलरी नहीं
अमेरिका में कई सरकारी कर्मचारियों को अब फूड डिलीवरी या अस्थायी नौकरियों कर गुजारा करना पड़ रहा है। वे रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने और ईएमआई भरने के लिए ऐसा कर रहे हैं। दरअसल, देश में लगे शटडाउन की वजह से 7.5 लाख सरकारी कर्मचारियों की सैलरी रुकी हुई है।
अमेरिका में 1 अक्टूबर से शुरू हुआ सरकारी शटडाउन अब 22वें दिन में पहुंच गया है। संसद के ऊपरी सदन सीनेट में 20 अक्टूबर को फंडिंग बिल पर 11वीं बार वोटिंग हुई, लेकिन राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रस्ताव को फिर से खारिज कर दिया गया। ऐसे में यह अमेरिकी इतिहास का दूसरा सबसे लंबा शटडाउन बन गया है।
अमेरिका का फिस्कल ईयर यानी खर्च का साल 1 अक्टूबर से शुरू होता है। यह एक तरह से सरकार का आर्थिक साल होता है, जिसमें वह अपना पैसा खर्च करने और बजट बनाने की योजना बनाती है।
इस दौरान सरकार तय करती है कि कहां पैसा लगाना है, जैसे सेना, स्वास्थ्य या शिक्षा में। अगर इस तारीख तक नया बजट पास नहीं होता, तो सरकारी कामकाज बंद हो जाता है। इसे शटडाउन कहते हैं।
अमेरिका के दोनों प्रमुख दल डेमोक्रेट और रिपब्लिकन में ओबामा हेल्थ केयर सब्सिडी प्रोग्राम को लेकर ठनी हुई गई है। डेमोक्रेट्स चाहते थे कि हेल्थ केयर (स्वास्थ्य बीमा) की सब्सिडी बढ़ाई जाए।
रिपब्लिकन को डर है कि अगर सब्सिडी बढ़ाई गई तो सरकार को खर्च करने के लिए और पैसे की जरूरत पड़ेगी, जिससे बाकी सरकारी काम प्रभावित होंगे।
शटडाउन का सबसे बुरा असर हवाई क्षेत्र पर
CNN के मुताबिक शटडाउन का सबसे बुरा असर एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों पर पड़ रहा है। इन्हें जरूरी कर्मचारी माना जाता है, इसलिए 1 अक्टूबर को शटडाउन शुरू होने के बावजूद उन्हें लगातार काम करना पड़ रहा है, लेकिन उन्हें वेतन नहीं मिल रहा है।
वेतन रुकने के कारण हजारों कंट्रोलर अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। स्थिति इतनी खराब है कि कई कंट्रोलर अपनी नियमित शिफ्ट खत्म करने के बाद दूसरी नौकरी करने को मजबूर हैं। वे गुजारा करने के लिए Uber चला रहे हैं, खाना डिलीवर कर रहे हैं, या रेस्टोरेंट में काम कर रहे हैं।
नेशनल एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स एसोसिएशन (NATCA) के अध्यक्ष निक डेनियल्स ने कहा कि हालात गंभीर हो गए हैं। उन्होंने कहा कि
22 दिन के शटडाउन का असर
कर्मचारियों पर: करीब 7.5 लाख सरकारी कर्मचारी बिना सैलरी के छुट्टी पर हैं। सेना, पुलिस, बॉर्डर सिक्योरिटी और एयर ट्रैफिक कंट्रोलर जैसे जरूरी कर्मचारियों को बिना सैलरी काम करना पड़ रहा है।
हवाई यात्रा और फूड प्रोग्राम: उड़ानें देरी से चल रही हैं और लोअर इनकम वाले परिवारों को फूड सहायता न मिलने का खतरा बढ़ रहा है।
टूरिज्म पर असर: स्मिथसोनियन म्यूजियम बंद हैं। ट्रम्प ने कहा कि इन्हें शायद खोल देना चाहिए।
एटमी हथियार एजेंसी: नेशनल न्यूक्लियर सिक्योरिटी एजेंसी ने 1,400 कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजा है। एनर्जी सेक्रेटरी क्रिस राइट ने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है, इससे परमाणु हथियारों की सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।
अमेरिका में शटडाउन के चर्चित मामले
2013 में अमेरिका के साथ 8,891 किमी लंबी कनाडा सीमा की देखभाल करने वाला सिर्फ 1 शख्स था। उस पर ही पूरे बॉर्डर इलाके की साफ-सफाई की जिम्मेदारी थी। बाकी सारे कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया था।
अमेरिका के सवा लाख सैनिक (ज्यादातर पहले और दूसरे विश्वयुद्ध) दूसरे देशों में मारे गए हैं। ये दुनियाभर के 24 कब्रिस्तानों में दफन हैं। इनमें से 20 यूरोप में हैं। इनकी देखभाल का खर्च अमेरिकी सरकार उठाती है। 2013 में शटडाउन होने पर ये सारे कब्रिस्तान बंद कर दिए गए थे।
2018 के शटडाउन में वेतन नहीं मिलने की वजह से कई कर्मचारी एयरपोर्ट पर काम करने नहीं जा रहे थे जिस वजह से कई उड़ानें रद्द कर दी गईं।
2018 के शटडाउन में FBI डायरेक्टर ने चेतावनी दी कि उनके पास पैसे खत्म हो चुके हैं, जिस वजह से उनके काम में दिक्कतें आ रही हैं।
ट्रम्प को शटडाउन लगने से फायदा या नुकसान
शटडाउन के दौरान, ट्रम्प प्रशासन ऑफिस ऑफ मैनेजमेंट एंड बजट (OMB) के जरिए जरूरी और गैर-जरूरी सेवाओं का फैसला कर सकता है।
इससे वे डेमोक्रेट समर्थित प्रोग्राम्स जैसे शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य सब्सिडी को गैर-जरूरी कर सकते हैं, जबकि डिफेंस और इमिग्रेशन को जरूरी का दर्जा दे सकते हैं। ट्रम्प ने खुद कहा है शटडाउन से कई अच्छी चीजें होंगी।
शटडाउन के चलते बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी से निकाला जा सकता है। 2025 में पहले ही संघीय नौकरियों में 3 लाख की कटौती का जा चुकी है। यह ट्रम्प की नीति का हिस्सा है।
ट्रम्प इसे डेमोक्रेट्स पर दोष डालने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। व्हाइट हाउस ने फेडरल एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे डेमोक्रेट्स को जिम्मेदार ठहराएं, जो नैतिकता कानूनों का उल्लंघन हो सकता है।
बुधवार, 22 अक्टूबर 2025
भारतीय जनता पार्टी के नेता ने व्यापारी की नाक सडक पर रगड़वाई भारतीय जनता पार्टी का गुलाम मतदाता है व्यापारी
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पार्किंग विवाद बनी अपमानजनक घटना
यह पूरा मामला मेरठ शहर के तेजगढ़ी चौराहे पर बनी कीर्ति पैलेस चौकी क्षेत्र का है। व्यापारी सत्यम रस्तोगी ने बताया कि पार्किंग को लेकर मामूली विवाद हुआ था। उन्होंने कहा मेरी कोई गलती नहीं थी। ना ही किसी से कोई निजी दुश्मनी है। व्यापारी आदमी हूं, झगड़ों से दूर रहता हूं। उसने माफी मांगने को कहा तो मैंने मांग ली। वीडियो में साफ दिख रहा है कि विकुल चपराणा अपने समर्थकों के साथ व्यापारी को सड़क पर झुकाकर नाक रगड़ने के लिए मजबूर कर रहे हैं। पास में पुलिसकर्मी खड़े होकर तमाशा देखते ओर वीडियो बनाते नजर आए।
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