सोमवार, 20 अप्रैल 2009

आतंकवाद से रक्षा बनाम सम्प्रदायिक राजनीति-1

हमारे देश हिंदुस्तान का नाम 1947 में एक बड़े सपने के साथ हुआ था, उस सपने के साथ जो हमारे संविधान में निहित है। यह सपना था एक ऐसे देश का जहाँ हर कोई व्यक्ति या वर्ग किसी दूसरे व्यक्ति या वर्ग की मिलकियत में जीने को मजबूर न हो। हमारे देश की खासियत है धर्मों , जीवनशैलियों और विश्वासों की विविधता और आपसी मेल-जोल व सहनशीलता । ऐसा नही है की हमारे यहाँ कभी विभिन्न जातियों या धर्मो के लोगो में टकराव न हुए हो लेकिन जीत हमेशा उन्ही की हुई है जो अपने से फर्क लोगो को इज्जत करते हुए आपसी मुहब्बत के साथ जीने की हिमायत करते रहे।
आज़ादी के बाद के हिन्दोस्तान में जहाँ पूरा देश अशिक्षा , गरीबी,अन्धविश्वाश और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझ रहा था, वहीं कुछ आम आवाम की इन तकलीफों से बेखबर उन्हें जात या धर्म के आधार पर लड़ने की फिराक में थे । गाँधी जी के हत्यारे सरहदों के बटवारे के बाद जनता के दिलो के बटवारे में तन मन धन से लगे रहे । गरीबी गैर बराबरी और भूख से जूझती जनता को एकजुट होकर इन समस्याओं से निपटने देने की बजाय इन लोगो ने लगातार उनकी जातीय और धार्मिक पहचानो को तीखा करने और उनके दिलो में दूसरी जात या धर्म के लोगो के लिए तरह-तरह से नफरत पैदा करने का काम किया । इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करना , झूठे इतिहास की रचना करना हिंसक जातीय धार्मिक गौरव को बच्चो के दिलो में जगाना और साझी, विरासत को पूरी तरह नकारना इन लोगो की कार्यशैली के हिस्से रहे है । सभी धर्मो और जातियों में ऐसे स्वयंभू नेता तेजी से उभर कर आए जिन्होंने आवाम की आम जिंदगी के कठिनाईओं को दरकिनार करके उनकी जातीय धार्मिक असमिताओं को हिंसक रूप से पैना किया और उनके दिलो में यह जहर भरा किया उनकी सभी मुसीबतो की जड़ उनसे फर्क जाती धर्म के लोग है । कोशिश यह की धार्मिक उन्माद सभी दूसरी चिन्ताओ को पीछे छोड़ दे और जनता भूख गरीबी जैसी समस्याओं से एकजुट ताकत से न लड़ सके । सत्ता की कुर्सी पर पहुचने और वहां टिके रहने के लिए भी जनता को विभाजित रखना और उन्हें धार्मिक जातीय टकराव में उलझाया जाना जरूरी था वरना जनता यह सवाल पूछना नही भूलती की भूख अशिक्षा गरीबी बीमारी और हिंसा जिनसे सभी जातियों और धर्मो के लोग परेशान है से निपटने के लिए सत्ता पर बैठे लोगो ने क्या किया सत्ता पे काबिज होने की इस जनविरोधी आपा -धापी के साथ धार्मिक नेताओं की सांठ -गांठ ने जनता की समझ और संघर्ष को कमजोर बनाने का काम तो किया ही साथ ही उन धार्मिक बहुसंख्यावादी संगठनो को भी मजबूत किया जो एक लंबे अर्से से हिन्दोस्तान को हिंदू राष्ट्र के रूप में देखना चाह रहे थे और किसी भी दूसरे धर्म को इस देश में जिन्दा रखने की उनकी सरत थी या तो उसका हिन्दुकरण या फिर हिंदू धर्म की आधीनता इस अर्थ में वह मुस्लिम विरोधी होते हुए भी इस्लामिक देशो को आदर्श मानकर उनका अनुकरण करते रहे अल्पसंख्यको के तथाकथित नेताओं की आत्मकेंद्रित और धर्मकेंद्रित राजनीति ने बहुसंख्यकवादी राजनीति को चुनौती देने के बजाय वास्तव में मदद ही दी की राजनीति में तेजी से बढती द्दृष्टिविहिनता, विवेकहीनता ,अपराधीकरण में संवैधानिक मूल्यों के प्रति राज्य की जिम्मेदारी को इतना कमजोर किया की इन मूल्यों के सीधे और मुखर उल्लंघन को भी राज्य ने नियंत्रित नही किया आम जनता के लगातार टूटते भरोसे और सुकून के बीच तमाम वो ताकतें जनता का हितैषी होने का चालिया रूप रखकर सक्रिय हुई जो पहले से ही संविधान विरोधी मूल्यों के लिए काम कर रही थी ,जैसे हिंदू राष्ट्रवाद का सपना देखने वाले संगठन ।
क्रमस :
रूप रेखा वर्मा
लेखिका लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति है ।
आतंकवाद का सच में प्रकाशित ॥

3 टिप्‍पणियां:

निशाचर ने कहा…

रेखा जी, जिस जातीय गौरव के विषय में आपने मिथ्याभिमान का दोषारोपण किया है आप स्वयं भी उसी नस्ल का हिस्सा हैं. ऐसा कहकर क्या आप अपने पुरखों के संघर्ष और जिजीविषा को अपमानित नहीं कर रही हैं.

"इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करना , झूठे इतिहास की रचना करना हिंसक जातीय धार्मिक गौरव को बच्चो के दिलो में जगाना और साझी, विरासत को पूरी तरह नकारना इन लोगो की कार्यशैली के हिस्से रहे है "

इतिहास लेखन का महत्त्वपूर्ण कार्य सदा से ही आप जैसे वामपंथी मनीषियों के पास रहा है. क्या आपने इतिहास में किसी भी हिन्दू महापुरुष, योद्धा,विजेता को जीवित रहने दिया है. हेमचन्द्र विक्रमादित्य, जयपाल, बन्दा बैरागी, गुरु गोबिंद सिंह, गुरु तेगबहादुर और यहाँ तक कि छत्रपति शिवाजी का भी आपके वामपंथी इतिहासलेखकों ने अपनी पुस्तकों में जिस प्रकार उल्लेख किया है वह स्वयं में ही उनकी कृतघ्न और दूषित मानसिकता का परिचायक है. साझी विरासत का पाठ पढाने से पहले एक बार कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे मदरसों में भी हो आईये. आपको पता लग जायेगा कि साझी विरासत के दूध में निम्बू कौन निचोड़ रहा है.

दुनिया में इस्लामिक राष्ट्र हो सकते हैं, इसाई राष्ट्र हो सकते हैं परन्तु हिन्दू राष्ट्र की कल्पना मात्र से आप लोगो को मियादी बुखार चढ़ जाता है. मैं नहीं जानता कि कौन सा लालच आपको देशद्रोहियों के साथ खडा होने को बाध्य करता है परन्तु शायद इस बात का अहसास तो आपको भी होगा कि आप किसी देश की बहुसंख्यक जनसख्या के इतिहास, जातीय अभिमान और राष्ट्र गौरव को गाली देकर भी जीवित रह जाती हैं तो निश्चित ही वह हिन्दू बहुल देश अर्थात भारत ही हो सकता है. क्या हिन्दू धर्म के विषय में इससे ज्यादा कुछ कहने की आवश्यकता है??

आपकी "शर्मनिरपेक्षता" आपको मुबारक!!

अनुनाद सिंह ने कहा…

"हमारे देश हिंदुस्तान का नाम 1947 में एक बड़े सपने के साथ हुआ था, उस सपने के साथ जो हमारे संविधान में निहित है।"

इस वाक्य का क्या अर्थ है?
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आपमें जरा भी इमानदारी होती तो यों लिखतीं-
"भारत की आजादी एक हादसा भी थी। आजाद होते ही भारत इस्लामी कट्टरपन की भेंचढ़ गया ...."

जय पुष्‍प ने कहा…

आपकी बातें सही हैं। लोगों की असली समस्‍याओं से उनका ध्‍यान भटकाने में राष्‍ट्रीयता, धर्म, नस्‍ल जैसी चीजें बेहद कारगर सिद्ध होती हैं। धर्म ने हमेशा ही शासक वर्गों का साथ दिया है और एक बेहद छोटे समय के अलावा धर्म की भूमिका कभी प्रगतिशील नहीं रही। लोगों को अज्ञान के अंधेरे में रखना, उनका दिमाग कुंद कर देना, उनकी सोचने समझने की शक्ति नष्‍ट कर देना, उन्‍हें तर्क पर क के बजाय उन्‍मादी बना देना और यह सब करते हुए शासक वर्गों के राज की सुरक्षा करना यही धर्म की प्रासंगिकता रही है। इतिहास का निर्माण जनता करती है सिर्फ कुछ एक वीर अपने पराक्रम से इतिहास नहीं बनाते। आज तो बल्कि बहुत जरूरत है कि इतिहास को उसके सही अर्थों में लिखा जाये और जनता को उसकी वास्‍तविक ताकत से परिचित कराया जाये। बजाय इसके कि उसे उन्‍माद की खुराक दी जाये।
आपका प्रयास सराहनीय है।

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