बुधवार, 8 अप्रैल 2009

जिजीविषा

बदल लिया है
महिषासुर ने रूप
दशानन भेष बदल कर
टहल रहा है ।
यह पशुत्व का वातावरण
और आसुरी कारा
सोने का माया मृग बन
जग को निगल रहा है ।
सिया ,गार्गी, अपाला समाहित है ,
दहेज़ के सुरसा -मुख में,
जंगल का कानून
शहर का धर्म बन रहा है।
हर घर में आग लगी है,
जनजीवन सुलग रहा है।
पानी सा
सडको पर कितना खून बह रहा है।
राजा के घर से
निकला है माल लूट का,
हर हांडी में घोटालों की खिचडी पक रही है।
जनता के रक्षक
भक्षक बने हुए है,
हाय वतन में कैसी आंधी चल रही है।
तकलीफों के महा समंदर
में डूबा है।
भारत का इंसान
हाय कैसे जी रहा है।
किन चट्टानी विश्वासों का
पल्ला थामे
अन्यायी राहों के
कांटों पर चल रहा है
भरोसा है उसे
कि राम फिर से आयेंगे
दशानन कितने ही सर उगा ले,
उसे मार कर मुक्ति दिलायंगे।
आंसू से भीगी आँखे
दर्शन कर रही हैं
मिट्टी की मूरत में माँ का,
यह ममता ही
उसकी जिजीविषा को
शक्ति दे रही है
आकुल मन उसका
हो जाता शांत,
फिर उसी चक्र में
बार बार
मन की पांतें
गति कर रही है।

.................................अनूप गोयल,बाराबंकी

5 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गहरी और भावुक सोच से लिखी रचना

श्यामल सुमन ने कहा…

कहते हैं कि -

ये तुमसे िसने कहा था कि मर गया रावण।
मारे देश में अब भी जनाब जिन्दा है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

good, narayan narayan

LUCKY ने कहा…

bahut badhiya samayik kavita hai. badhai aapko

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है . मेरा भी साईट देखे और टिप्पणी दे

Share |