सौ में सत्तर आदमी 
फिलहाल जब नाशाद है
दिल पे रखकर हाथ कहिये
देश क्या आजाद है। सौ में सत्तर ...
         कोठियों से मुल्क के
         मेयार को मत आंकिये
         असली हिंदुस्तान तो
         फुटपाथ पर आबाद है । सौ में सत्तर आदमी ....
सत्ताधारी लड़ पड़े है
आज कुत्तों की तरह
सूखी रोटी देखकर
हम मुफ्लिसों के  हाथ mein ! सौ में सत्तर आदमी ...
जो मिटा पाया  न अब तक
भूख के अवसाद को
दफन कर दो आज उस
मफ्लूश पूंजीवाद को । सौ में सत्तर आदमी...
                बुढा बरगद साक्षी है
                गावं की चौपाल पर
                रमसुदी की झोपडी भी
                ढह गई चौपाल में । सौ में सत्तर आदमी...
जिस शहर  के मुन्तजिम
अंधे हों जलवामाह के
उस शहर में रोशनी की
बात बेबुनियाद है । सौ में सत्तर आदमी...
जो उलझ कर रह गई है
फाइलों  के जाल में
रोशनी वो गांव तक
पहुँचेगी कितने साल में । सौ में सत्तर आदमी...
---------------अदम गोंडवी
 
 
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