बुधवार, 29 अप्रैल 2009
गजल हो गई..
है लहर जानती तल की गहराइयाँ ।
आदमी का वजन उस की परछाईयाँ ।
आंसुओ की किताबो में पढ़ लीजिये -
जिंदगी की कसक और रुसवाईयाँ ॥
छोड़ अमृत गरल की किसे प्यास है
कल से अनजान लोभ का दास है।
आदमी राम- रहमान कोई भी हो -
चार काँधा, कफ़न आखिरी आस है॥
प्रीत परवान चढ़ जाय तो गीत है ।
यदि आँखों से वह जाय तो गीत है ।
मन में बरमाल की कामनाएं लिए -
फूल अर्थी पे चढ़ जाए तो गीत है॥
मेरे नैनो की बदरी सजल हो गई ।
मन के आकाश में सुधि विकल हो गई ।
देख कर खोदना उंगलियों से जमीं -
झुक के पलके उठी तो गजल हो गई ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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5 टिप्पणियां:
छोड़ अमृत गरल की किसे प्यास है
कल से अनजान लोभ का दास है।
आदमी राम- रहमान कोई भी हो -
चार काँधा, कफ़न आखिरी आस है॥
सुन्दर प्रस्तुति। कहते हैं कि-
मैं भी गुस्ताखी करूँगा जिन्दगी में एक बार।
यार सब पैदल चलेंगे मैं जनाजे पर सवार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ख़ूबसूरत ख़्यालात
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तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
मेरे नैनो की बदरी सजल हो गई ।
मन के आकाश में सुधि विकल हो गई ।
देख कर खोदना उंगलियों से जमीं -
झुक के पलके उठी तो गजल हो गई ॥
bahut hi sundar................
बेहद सुन्दर रचना!! बधाई!
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