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सोमवार, 10 मई 2010

मंदिरों की शिलाओं में खोजो नहीं- राम शवरी के बेरों में मिल जायेंगे


दीन दुखियो के डेरों में मिल जायेंगे।
प्रेम के सात फेरो मिल जायेंगे।
मंदिरों की शिलाओं में खोजो नहीं-
राम शवरी के बेरों में मिल जायेंगे॥

वो धनुष की सिशओं में मिल जायेंगे।
नन्दी वन के अभावो में मिल जायेंगे।
प्रेम पन मातु सीता सा होवे अगर-
राम वन की लताओं में मिल जायेंगे॥

सींक के वाण में राम मिल जायेंगे।
जल कठौते में भी राम मिल जायेंगे।
ये शिला जैसा तन-मन से चाहे अगर-
पाँव की धूल में राम मिल जायेंगे॥

वो जटायु के क्रंदन में मिल जायेंगे।
या विभीषण के वंदन में मिल जायेंगे।
भक्त की लालसा हो दरस की अगर
राम तुलसी के चन्दन में मिल जायेंगे॥

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009

मानव मानवता चाहे...


निर्झर सरिता ओ सागर,
का महामिलन अति उत्तम।
मानव मानवता चाहे,
अति कोमल स्पर्श लघुत्तम ॥

समरसता अविरल धारा,
चेतनता स्वयं विलसती।
अति पाप, ताप, हर लेती ,
जीवन्त राग में ढलती ॥

मैं-मेरा औ तू-तेरा,
होवे हम और हमारा ।
आनंद स्वस्तिमय सुंदर,
समरस लघु जीवन सारा ॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

सोमवार, 28 सितंबर 2009

चिर मौन हो गई भाषा...


द्वयता से क्षिति का रज कण ,
अभिशप्त ग्रहण दिनकर सा
कोरे षृष्टों पर कालिख ,
ज्यों अंकित कलंक हिमकर सा

सम्पूर्ण शून्य को विषमय,
करता है अहम् मनुज का
दर्शन सतरंगी कुण्ठित,
निष्पादन भाव दनुज का


सरिता आँचल में झरने,
अम्बुधि संगम लघु आशा
जीवन, जीवन- घन संचित,
चिर मौन हो गई भाषा

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

रविवार, 27 सितंबर 2009

मोहित असुरो को कर ले...


अरी ! युक्ति तू शाश्वत ,
मोहिनी रूप फिर धर ले
अमृत देवो को देकर,
मोहित असुरो को कर ले

बुद्धि कभी, चातुर्य कभी,
विधि तू कौशल्य निपुणता
युग-तपन शांत करने को,
है कैसी आज विवशता

कल्याणी शक्ति अमर ते ,
निज आशा वि्स्तृत कर दो,
वातायन स्वस्ति विखेरे ,
महिमामय करुणा वर दो

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

शनिवार, 26 सितंबर 2009

विधि के विधान की कारा


तोड़ना नही सम्भव है,
विधि के विधान की कारा
अपराजेय शक्ति है कलि की,
पाकर अवलंब तुम्हारा

श्रृंखला कठिन नियमो की,
विधना भी मुक्त नही है
वरदान कवच से धरणी ,
अभिशापित है यक्त नही है

हो अजेय शक्ति नतमस्तक ,
पौरुष बल ग्राह्य नही है
तप संयम मुक्ति विजय श्री ,
रोदन ही भाग्य नही है

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

अभिलाषा के आँचल में...


अभिलाषा के आँचल में ,
भंडार तृप्ति का भर दो
मन-मीन नीर ताल में,
पंकिल हो यह वर दो

रतिधरा छितिज वर मिलना ,
आवश्यक सा लगता है
या प्रलय प्रकम्पित संसृति,
स्वर सुना सुना लगता है

ज्वाला का शीतल होना,
है व्यर्थ आस चिंतन की
शीतलता ज्वालमयी हो,
कटु आशा परिवर्तन की

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

बुधवार, 23 सितंबर 2009

या आंखों को दे दो भाषा....


सागर को संयम दे दो,
या पूरी कर दो आशा
भाषा को आँखें दे दो,
या आंखों को दे दो भाषा

तम तोम बहुत गहरा है,
उसमें कोमलता भर दो
या फिर प्रकाश कर में,
थोडी श्यामलता भर दो

अति दीन हीन सी काया,
संबंधो की होती जाए
काया को कंचन कर दो,
परिरम्भ लुटाती जाए

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

शनिवार, 19 सितंबर 2009

तृष्णा विराट आनंदित


तृष्णा विराट आनंदित,
है नील व्योम सी फैली
मादक मोहक चिर संगिनी,
ज्यों तामस वृत्ति विषैली

वह जननि पाप पुञ्जों की,
फेनिल मणियों की माला
उन्मत भ्रमित चंचल,
पाकर अंचल की हाला

छवि मधुर करे उन्मादित ,
सम्हालूँगा कहता जाए
तम के अनंत सागर में,
मन डूबा सा उतराए

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

सुन मानस स्वर का क्रंदन....


नव पिंगल पराग शतदल,
आशा विराग अभिनन्दन।
नीरवते कारा तोड़ो,
सुन मानस स्वर का क्रंदन॥

माया दिनकर आच्छादित,
अन्तस अवशेष तपोवन।
मानो निर्धन काया का ,
अनुसरण अधीर प्रलोभन॥

ये उल्लास मौन आसक्ति
भ्रम जीवन दीन अधीर।
सुख वैभव प्रकृति त्यागे,
मन चाहे कृतिमय नीर॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

रविवार, 13 सितंबर 2009

क्या मिलन विरह में अन्तर


क्या मिलन विरह में अन्तर,
सम्भव जान पड़ते हैं
निद्रा संगिनी होती तो,
सपने जगते रहते हैं

जीवन का सस्वर होना,
विधि का वरदान नही है
आरोह पतन की सीमा,
इतना जग नाम नही है

मिट्टी से मिट्टी का तन,
मिट्टी में मिट्टी का तन
हिमबिंदु निशा अवगुण्ठन,
ज्योतित क्षण भर का जीवन

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

क्या पतन समझ पायेगा...




मानव का इतिहास यही,
मानस की इतनी गाथा
आँखें खुलते रो लेना ,
फिर झँपने की अभिलाषा

जग का क्रम आना-जाना,
उत्थान पतन की सीमा
दुःख-वारिद , आंसू - बूँदें ,
रोदन का गर्जन धीमा

उठान देखा जिसने,
क्या पतन समझ पायेगा
निर्माण नही हो जिसका,
अवसान कहाँ आयेगा

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

या सुंदर केवल आशा...



आशा का सम्बल सुंदर,
या सुंदर केवल आशा
विभ्रमित विश्व में पल-पल ,
लघु जीवन की प्रत्याशा

रंग मंच का मर्म कर्म है,
कहीं यवनिका पतन नही
अभिनय है सीमा रेखा,
कहीं विमोहित नयन नही

सत् भी विश्व असत भी है,
पाप पुण्य ही हेतु बना
कर्म मुक्ति पाथेय यहाँ,
स्वर्ग नर्क का सेतु बना

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

बुधवार, 2 सितंबर 2009

यह रीती-नीति जगपति की...


निर्मम नर्तन है गति का ,
है व्यर्थ आस ऋतुपति की
छलना भी मोहमयी है,
यह रीती-नीति जगपति की

आंसू का क्रम ही क्रम है,
यह सत्य शेष सब भ्रम है
वेदना बनी चिर संगिनी,
सुख का तो चलता क्रम है

उद्वेलित जीवन मग में,
बढ़ चलना धीरे-धीरे
प्रणय, मधुर, मुस्कान, मिलन,
भर लेना मोती-हीरे

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

सोमवार, 31 अगस्त 2009

जीवन है केवल छाया


जीवन सरिता का पानी ,
लहरों की आँख मिचौनी
मेघों का मतवालापन ,
बरखा की मौन कहानी

गल बाहीं डाले कलियाँ,
है लता कुंज में हँसती
चलना,जलना , जीवन है
आहात स्वर में हँस कहती

संसार समर में कोई,
अपना ही है पराया
सम्बन्ध ज्योति के छल में,
जीवन है केवल छाया

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

रविवार, 30 अगस्त 2009

यूं नियति नटी नर्तित हो....


यूं नियति नटी नर्तित हो,
श्रंखला तोड़ जाती है
सम्बन्धों की मृदु छाया ,
आभास करा जाती है

ईश्वरता और अमरता ,
कुछ माया की सुन्दरता
शिव सत्य स्वयं बन जाए,
जीवन की गुण ग्राहकता

जग में पलकों का खुलना,
फिर सपनो की परछाई
आसक्त-व्यथा का क्रंदन,
कहता जीवन पहुनाई

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

शनिवार, 29 अगस्त 2009

छायानट का सम्मोहन...


व्याकुल उद्वेलित लहरें,
पूर्णिमा -उदधि आलिंगन
आवृति नैराश्य विवशता ,
छायानट का सम्मोहन

जगती तेरा सम्मोहन,
युग-युग की व्यथा पुरानी।
यामिनी सिसकती -काया,
सविता की आस पुरानी।

योवन की मधुशाला में,
बाला है पीने वाले।
चिंतन है यही बताता ,
साथी है खाली प्याले

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

कलिकाल तमस का प्रहरी...



मानवता , करुणा, आशा,
विश्वाश, भक्ति , अभिलाषा
अनुरक्ति, दया, सज्जनता,
चेरी है शान्ति , पिपासा

कलिकाल तमस का प्रहरी,
नित गहराता जाता है
मानव सदगुण को प्रतिपल,
कुछ क्षीण बना जाता है

आहुति का भाग्य अनल है,
है पूर्ण स्वयं जलने में
परहित उत्सर्ग अकिंचन,
अप्रति हटी गति जलने में

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

गुरुवार, 27 अगस्त 2009

आहत है रवि शशि उडगन


है स्वतन्त्र जीव जगती का ,
बस स्वारथ से अनुशासित।
शाश्वत है सत्य यही है,
जीवन इससे अनुप्राणित

आहत है सभी दिशायें,
आहत धरती, जल, प्लावन
है व्योम इसी से आहत,
आहत है रवि शशि उडगन

शिशु अश्रु बेंचती है यह ,
ममता , विनाशती बंधन।
निर्धन का सब हर लेती,
करती अर्थी पर नर्तन

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

बुधवार, 26 अगस्त 2009

लघुतम जीवन का अर्पण...


इसके विशाल पैरो में
मानव का आत्म समर्पण।
भावना विनाशी का क्रंदन
लघुतम जीवन का अर्पण ॥

घर काल जयी आडम्बर,
इस नील निलय के नीचे ।
भव विभव पराभव संचित,
लालसा कसक को भींचे ॥

निज का यह भ्रम विस्तृत है ,
है जन्म मरण के ऊपर।
यह महा शक्ति बांधे है,
युग कल्प और मनवंतर ॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

लालच की रक्तिम आँखें...


लालच की रक्तिम आँखें ,
भृकुटी छल बल से गहरी
असत रंगे दोनों कपोल ,
असी-काम पार्श्व में प्रहरी

मन में मालिन्य भरा है ,
'स्व' तक संसार है सीमित
संसृति विकास अवरोधी ,
कलि कलुष असार असीमित

सव रस छलना आँचल में ,
कल्पना तीत सम्मोहन
सम्बन्ध तिरोहित होते ,
क्रूरता करे आरोहन

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"
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