यूं नियति नटी नर्तित हो....
यूं नियति नटी नर्तित हो,
श्रंखला तोड़ जाती है।सम्बन्धों की मृदु छाया ,
आभास करा जाती है॥ईश्वरता और अमरता ,
कुछ माया की सुन्दरता।शिव सत्य स्वयं बन जाए,
जीवन की गुण ग्राहकता॥जग में पलकों का खुलना,
फिर सपनो की परछाई।आसक्त-
व्यथा का क्रंदन,
कहता जीवन पहुनाई॥-
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल '
राही'
1 टिप्पणी:
बहुत ही अच्छी लगी ये रचना
एक टिप्पणी भेजें