व्याकुल उद्वेलित लहरें,
पूर्णिमा -उदधि आलिंगन ।
आवृति नैराश्य विवशता ,
छायानट का सम्मोहन ॥
जगती तेरा सम्मोहन,
युग-युग की व्यथा पुरानी।
यामिनी सिसकती -काया,
सविता की आस पुरानी।
योवन की मधुशाला में,
बाला है पीने वाले।
चिंतन है यही बताता ,
साथी है खाली प्याले ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
पूर्णिमा -उदधि आलिंगन ।
आवृति नैराश्य विवशता ,
छायानट का सम्मोहन ॥
जगती तेरा सम्मोहन,
युग-युग की व्यथा पुरानी।
यामिनी सिसकती -काया,
सविता की आस पुरानी।
योवन की मधुशाला में,
बाला है पीने वाले।
चिंतन है यही बताता ,
साथी है खाली प्याले ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
2 टिप्पणियां:
व्याकुल उद्वेलित लहरें,
पूर्णिमा -उदधि आलिंगन ।
आवृति नैराश्य विवशता ,
छायानट का सम्मोहन ॥
जगती तेरा सम्मोहन,
युग-युग की व्यथा पुरानी।
यामिनी सिसकती -काया,
सविता की आस पुरानी।
योवन की मधुशाला में,
बाला है पीने वाले।
चिंतन है यही बताता ,
साथी है खाली प्याले ॥
अति सुन्दर भावों शब्दों से सम्मोहन के सत्य को उजागर करती यह कविता विशेष रूप से प्रेरणादायक है.
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com
अच्छी रचना है
----
तख़लीक़-ए-नज़र
एक टिप्पणी भेजें