शनिवार, 29 अगस्त 2009

छायानट का सम्मोहन...


व्याकुल उद्वेलित लहरें,
पूर्णिमा -उदधि आलिंगन
आवृति नैराश्य विवशता ,
छायानट का सम्मोहन

जगती तेरा सम्मोहन,
युग-युग की व्यथा पुरानी।
यामिनी सिसकती -काया,
सविता की आस पुरानी।

योवन की मधुशाला में,
बाला है पीने वाले।
चिंतन है यही बताता ,
साथी है खाली प्याले

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

2 टिप्‍पणियां:

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

व्याकुल उद्वेलित लहरें,
पूर्णिमा -उदधि आलिंगन ।
आवृति नैराश्य विवशता ,
छायानट का सम्मोहन ॥

जगती तेरा सम्मोहन,
युग-युग की व्यथा पुरानी।
यामिनी सिसकती -काया,
सविता की आस पुरानी।

योवन की मधुशाला में,
बाला है पीने वाले।
चिंतन है यही बताता ,
साथी है खाली प्याले ॥

अति सुन्दर भावों शब्दों से सम्मोहन के सत्य को उजागर करती यह कविता विशेष रूप से प्रेरणादायक है.
हार्दिक आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com

Vinay ने कहा…

अच्छी रचना है
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तख़लीक़-ए-नज़र

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