क्या पतन समझ पायेगा...
मानव का इतिहास यही,
मानस की इतनी गाथा।आँखें खुलते रो लेना ,
फिर झँपने की अभिलाषा ॥जग का क्रम आना-
जाना,
उत्थान पतन की सीमा ।दुःख-
वारिद ,
आंसू -
बूँदें ,
रोदन का गर्जन धीमा ॥उठान न देखा जिसने,
क्या पतन समझ पायेगा।निर्माण नही हो जिसका,
अवसान कहाँ आयेगा ॥डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल '
राही'
1 टिप्पणी:
वाह !
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