शशि मुख लहराती लट भी,
कुछ ऐसा दृश्य दिखाए।
माद्क सुगन्धि भर रजनी,
अब चेतन सी लहराए॥
मन को उव्देलित करता,
तेरे माथे का चन्दन।
तिल-तिल जलना बतलाता
तेरे अधरों का कम्पन ॥
पूनम चंदा मुख मंडल,
अम्बर गंगा सी चुनर।
विद्रुम अधरों पर अलकें,
रजनी में चपला चादर॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
1 टिप्पणी:
मन को उव्देलित करता,
तेरे माथे का चन्दन।
तिल-तिल जलना बतलाता
तेरे अधरों का कम्पन ॥
kavita ke samast saundarya ko ek saath
darshaati kavita k liye aapko
baarambaar badhaai !
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