लघु स्मृति की प्राचीरों ने,
कारा निर्मित कर डाला ।
बिठला छवि रम्य अलौकिक
प्रहरी मुझको कर डाला ॥
पाटल-सुगंधी उपवन में,
ज्यों चपला चमके घन में।
वह चपल चंचला मूरत
विस्थापित है अब मन में॥
परिधान बीच सुषमा सी,
संध्या अम्बर के टुकड़े ।
छुटपुट तारों की रेखा
हो लाल-नील में जकडे॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
3 टिप्पणियां:
सुन्दर अभिव्यक्ति व रचना
abhivyakipurn rachana
बहुत सुन्दर!!
एक टिप्पणी भेजें