रविवार, 16 अगस्त 2009

जगती की अंगनाई में...


जगती की अंगनाई में,
क्यों धूप बिखर जाती है।
तारों की चूनर ओढे,
क्यों निशा संवर जाती है ?

अभिशाप यहाँ पर क्या है,
वरदान कहूं मैं किसको।
दूजे का दुःख अपना ले,
है समय यहाँ पर किसको॥

रसधार यहाँ पर क्या है ?
विषधर कहेंगे किसको ?
क्षण -क्षण परिवर्तित होता,
संसार कहेंगे किसको ?

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

1 टिप्पणी:

संजीव गौतम ने कहा…

हौसला आफ़ज़ाई के लिये शुक्रिया. माफ़ करियेगा मैं ज़रा विलम्ब से यहां पहुंच पाया. चन्देल साहब की कविता सुन्दर है.
उम्मीद है साम्यवाद के विषय में आपसे अच्छी जानकारी मिलेगी.

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