नियति ,कर्म या भाग्य ईश,
अनगिनत नाम बंधन के।
अनचाहे ही अनुबंधित,
है सारे जीव जगत के ॥
यह धरा स्वर्ग हो जाए,
क्या मानव जी पायेगा ।
पतझड़ में कलिका फूले ,
क्या सम्भव हो पायेगा ॥
पुष्पों को तोड़ पुजारी ,
साधना सफल करता है।
पाषाण ह्रदय का मन भी,
क्या उसे ग्रहण करता है॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
अनगिनत नाम बंधन के।
अनचाहे ही अनुबंधित,
है सारे जीव जगत के ॥
यह धरा स्वर्ग हो जाए,
क्या मानव जी पायेगा ।
पतझड़ में कलिका फूले ,
क्या सम्भव हो पायेगा ॥
पुष्पों को तोड़ पुजारी ,
साधना सफल करता है।
पाषाण ह्रदय का मन भी,
क्या उसे ग्रहण करता है॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
1 टिप्पणी:
bahut achchhi rachna hai
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
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