1962 से पूर्व देश में हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा लग रहा था वहीं तिब्बत में चीन के विरूद्व सीआईए की गतिविधियाँ तेज थी । चीन सरकार द्वारा भारत के शीर्ष नेतृत्व को कई बार अवगत कराया की उसके देश से होकर तिब्बत में सीआईए की गतिविधियाँ हो रही है । तिब्बत में सीआईए अपनी गतिविधियाँ कर चीन के ख़िलाफ़ षड़्यंत्र कर रहा है उसको रोकें । मजबूर होकर चीन ने तिब्बत में सीआईए की गतिविधियों को नष्ट कर दिया । भारत ने सड़क मार्ग से दलाई लामा को लाकर तिब्बत की निर्वासित सरकार हिमांचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थापित की जो आज भी चल रही है । चीन भारत युद्घ का मूल कारण यही था ।
आज अमेरिकन साम्राज्यवाद अपनी आर्थिक मंदी से उबरने के लिए चीन को नष्ट करना चाह रहा है स्वयं उसमें दम नही है कि वह चीन से युद्घ करे इसलिए ग़लत तथ्यों के आधार पर युद्घ की तैयारियों का प्रोपोगंडा कर किसी भी बहाने युद्घ करवा देना चाहता है जिससे हमारा विकास ठप्प हो और हमारी ताकत कम हो और चीन का भी विकार रुक जाए । गली मोहल्लो से लेकर दिल्ली तक सम्रज्य्वादियो के तनखैया लेखक, पत्रकार , कवि अपनी कलम चीन के ख़िलाफ़ तोड़ रहे है अच्छा यह होगा ।हम अपनी आर्थिक विकास डर को बढावें और देश को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में निर्मित करें ।
आज हमारी मुख्य समस्याऐं बेरोजगारी है , महंगाई है, देश में भुखमरी है , कदम-कदम पर भ्रष्टाचार है, खाद्य पदार्थो में मिलावट है, हर्षद मेहता, नरेश जैनों का हमारे पास इलाज नही है । आज जरूरत इस बात की है की हम अपनी समस्यों का बेहतर समाधान खोजें । अमेरिकन साम्राज़्यवादियो के चक्कर में न हम पाकिस्तान से युद्घ करने की इच्छा रखें और न ही चीन से । चीन कोई हव्वा नही है । हमारा अच्छा मित्र भी हो सकता है । भारत, चीन, पाकिस्तान मिलकर एक नई और अच्छी दुनिया का निर्माण भी कर सकते है । लेकिन भारत और पाकिस्तान साम्राज्यवादियों के चक्कर में पड़कर हमेशा आपस में युद्घ की बात ही सोचते है और इस बात का समर्थन दोनों देशों की नासमझ जनता का भी मिलता है । इसलिए चाहे पाकिस्तान हो या चीन हो युद्घ करने की तम्मना नही पालनी चाहिए ।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
आज अमेरिकन साम्राज्यवाद अपनी आर्थिक मंदी से उबरने के लिए चीन को नष्ट करना चाह रहा है स्वयं उसमें दम नही है कि वह चीन से युद्घ करे इसलिए ग़लत तथ्यों के आधार पर युद्घ की तैयारियों का प्रोपोगंडा कर किसी भी बहाने युद्घ करवा देना चाहता है जिससे हमारा विकास ठप्प हो और हमारी ताकत कम हो और चीन का भी विकार रुक जाए । गली मोहल्लो से लेकर दिल्ली तक सम्रज्य्वादियो के तनखैया लेखक, पत्रकार , कवि अपनी कलम चीन के ख़िलाफ़ तोड़ रहे है अच्छा यह होगा ।हम अपनी आर्थिक विकास डर को बढावें और देश को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में निर्मित करें ।
आज हमारी मुख्य समस्याऐं बेरोजगारी है , महंगाई है, देश में भुखमरी है , कदम-कदम पर भ्रष्टाचार है, खाद्य पदार्थो में मिलावट है, हर्षद मेहता, नरेश जैनों का हमारे पास इलाज नही है । आज जरूरत इस बात की है की हम अपनी समस्यों का बेहतर समाधान खोजें । अमेरिकन साम्राज़्यवादियो के चक्कर में न हम पाकिस्तान से युद्घ करने की इच्छा रखें और न ही चीन से । चीन कोई हव्वा नही है । हमारा अच्छा मित्र भी हो सकता है । भारत, चीन, पाकिस्तान मिलकर एक नई और अच्छी दुनिया का निर्माण भी कर सकते है । लेकिन भारत और पाकिस्तान साम्राज्यवादियों के चक्कर में पड़कर हमेशा आपस में युद्घ की बात ही सोचते है और इस बात का समर्थन दोनों देशों की नासमझ जनता का भी मिलता है । इसलिए चाहे पाकिस्तान हो या चीन हो युद्घ करने की तम्मना नही पालनी चाहिए ।
सुमन
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6 टिप्पणियां:
sahee kahaa hai aapne yuddh karane me bhalaai nahee hai
भारत ने सड़क मार्ग से दलाई लामा को लाकर तिब्बत की निर्वासित सरकार हिमांचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थापित की जो आज भी चल रही है । चीन भारत युद्घ का मूल कारण यही था ।
सुमन जी इसका आधार क्या है और भारत ने अपने आज तक के इतिहास में किस देश पर आक्रमण किया है? आप इतना बडा आरोप लगा रहे हैं हिन्दुस्तान पर कृपया साक्ष्य सहित बतायें ताकि हमारी दृष्टि भी साफ हो सके. ये शांति की सारी नसीहतें सिर्फ़ भारत के लिये ही क्यों हैं?
sriman ji
1947 se pehle bharat anahi tha .british hukumat k antargat vibhinn rajy the .1947 k baad cia ki gatividhiyo se oob kar sikkim ko bharat ka rajy bana diya gaya tha purane itihas ko bhi agar aap adhaar manaenge to bhi vibhinn rajao se pehle unke apne rajy hote the jo dusare rajy ko apni prabhuta ko manvaane k liye yudh kiya karte the . mahan ashok jeeva bhar yudh karta raha aur kaling ko jeetane k baad uska hriday parivartan hua tha lekin mahan ashok k rajy ko aap bharat Ganrajy nahi keh sakte hai
श्रीमान जी आप हमेसा ऐसी ही बातें अपने ब्लॉग पर लिखते है या इस से सम्बन्धित लेखपर हमेसा भारत के विरोध में ही आपकी लेखनी चलती है ,अभी चीन ने कश्मीरियों के लिए अलग तरह का विशेस वीजा शुरू किया है उसके बारे में तो आप की कोई चिंता नही दिखायी देती ,तुम जैसे वाम पंथी विचारों के चलते देश हमेसा कमजोर होता है .अगर तुम इस देश को प्रत्यक्ष रूप से समर्थन नही करते हो तो अप्रत्यक्ष रूप से माओवादियों की मदद कर रहे हो ॥
सुमन जी ये तो आपका कोई जवाब नहीं हुआ. आपसे लेख का साक्ष्य देने को कहा था और ऐसा होता था, ऐसा करते थे आदि करने लगे ये क्या बात हुई. आप लोगों की ऐसी ही विचार धारा के कारण हिन्दुस्तान में वामपंथ सफ़ल नहीं हो सका. भारतवर्ष में भले ही तमाम राज्य थे और वे आपस में लडते भी थे लेकिन उनमें से कौन सिकन्दर, तैमूर, बाबर, नादिरशाह, अब्दाली, चंगेज़ ख़ां आदि की तरह ईरान, चीन, मिश्र. अरब. रशिया, बर्मा, लंका आदि पर आक्रमण करने गया? आपने लेख का शीर्षक 'चीन से युद्ध करने की तमन्ना' रखा है. क्या ये सम्भव है. आपके घर पर कोई क़ब्ज़ा करने आ जाय तो आप अपना घर चुपचाप उसके हवाले कर देना तब ऐसे लेख लिखियेगा. उससे पहले आपको कोई नैतिक अधिकार नहीं है. अगर चीन या पाकिस्तान इतने ही प्यारे हैं तो आप वहीं क्यों नहीं बस जाते? बुरा मत मानियेगा लेकिन ये सच है कि देश की आधी से अधिक समस्याएं यहां के तथाकथित वामपंथियों की दी हुई हैं.
श्रीमान जी ,
जिसकी जितनी क्षमता होती थी वह उतनी दूर ही युद्घ करने चला जाता था और अगर इतिहास के पन्नो को ध्यान से देखें तो जलालुद्दीन बाबर से लेकर जितने भी आक्रमणकारी आए है या राज किए है उनको रास्ते आमंत्रण यहाँ के लोगो ने ही उपलब्ध कराया है अगर ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने आप पर राज्य किया है तो उस राज्य को संचालित करने के लिए अति बुद्धजीवी तबके ने उनकी मदद की है मैंने कहीं नही लिखा है कि चीन या कोई देश हमारे देश पर आक्रमण करे और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे लेकिन मैंने यह जरूर लिखा है या मेरी मनसा है कि हम अमेरिकन सम्रज्य्वादियो कि कठपुतली बनकर युद्घ न करें । इतिहास के पन्नो में अगर आप राष्ट्रवाद का चश्मा उतारकर देखेंगे तो पाकिस्तान ने जब भी आप से युद्घ किया तो उसमें अमेरिकन साम्राज्यवाद का ही हाथ था और हम अमेरिकन साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ नही जाते है और न ही इस बात को समझने कि कोशिश करते है युद्घ से हमारी ताकत भी क्षीण होती है यह महसूस करने का सवाल है । राष्ट्रवाद के सम्बन्ध में आचार्य चतुरसेन कि किताब "सोना और खून " भी देखने का कष्ट करें तो काफी कुछ चीजें साफ़ होंगी । इस देश के अन्दर सीआईए और अमेरिका का वामपंथ विरोध का बजट हमेशा इस्तेमाल होता रहा है । उस बजट के कारण कलम घिस्सू लोग वामपंथ के सम्बन्ध में तमाम सारे किस्से और कहानियाँ गढा करते है । पिछले संसदीय चुनाव में किसी भी अखबार में वामपंथ के समर्थन में कोई भी समाचार नही आया था । जिन दलों को सभी लोग व्यक्तिगत जीवन को पानी पी- पी कर कोसा करते है उनकी प्रसंशा में ही सारा इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया लगा रहा । हमारे देश के इजारेदार पूंजीपति टाटा और अम्बानी अमेरिका में ओबामा को चुनाव लड़वाकर अपने देश में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को चुनाव लड़वा रहे थे । मित्र ऐतिहासिक सत्यो कि तरफ़ जरा सा ध्यान देने कि जरूरत है आप को सारे साक्ष्य मिल जायेंगे 1960 के दशक के आस पास का इतिहास जरा सा देखें तो मेरी बात आप को सत्य नजर आएगी । अमेरिकन साम्राज्यवाद आप के देश से होता हुआ तिब्बत में सक्रीय था । चीन ने अपने विरोधी को राईट टाइम किया आप मित्र होकर निर्वासित सरकार चलाना शुरू कर दिए । क्या यही आप कि मित्रता है । आज सूचना का अधिकार है एक सवाल आप पूछ लीजिये कि धरमशाला में उस निर्वासित सरकार का खर्चा कौन उठा रहा है आप को पता चल जाएगा । सबसे बढ़िया बात तो यह है कि उस समय दोस्त दोस्त न रहा तो प्यार कैसे होगा । रही वामपंथ कि बात उसकी वजह से कोई समस्या नही है इतिहास को अगर सही परिदर्श में प्रस्तुत करते है तो आप आरोप लगते है कि हम ग़लत कह रहे है अगर हम इस देश कि मेहनतकश जनता को संघर्षरत करते है तो सूद खोर , मिलावटखोर, जमाखोर, कालाबाजारिये , ओद्योगिक समुच्च भ्रष्टाचारी , वाम पंथ के ख़िलाफ़ कहानिया लिखने का काम करने लगते है हर चीज को सांप्रदायिक द्रष्टिकोण से देखना भी उचित नही होता है आज के वातावरण में हर समस्या जात के अधर पर धर्म के आधार पर देखने का प्रचलन हो गया है यह बंद होना चाहिए तभी आप विकास करेंगे । टिप्पणी बॉक्स में ज्यादा नही लिखा जा सकता है संवाद बनाये रखिये ।संवाद से बहुत सारी स्तिथियाँ व द्रष्टि साफ़ होती है
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