सोमवार, 28 दिसंबर 2009

मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है

हमारा देश करप्शन की कू में चलता है,
जुर्म हर रोज़ नया एक निकलता है।
पुलिस गरीब को जेलों में डाल देती है,
मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है।।

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हर तरफ दहशत है सन्नाटा है,
जुबान के नाम पे कौम को बांटा है।
अपनी अना के खातिर हसने मुद्दत से,
मासूमों को, कमजोरों को काटा है।।

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तुम्हें तो राज हमारे सरों से मिलता है,
हमारे वोट हमारे जरों से मिलता है।
किसान कहके हिकारत से देखने वाले,
तुम्हें अनाज हमारे घरों से मिलता है।।

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तुम्हारे अज़्म में नफरत की बू आती है,
नज़्म व नसक से दूर वहशत की बू आती है।
हाकिमे शहर तेरी तलवार की फलयों से,
किसी मज़लूम के खून की बू आती है।।

- मो0 तारिक नय्यर

5 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

तुम्हें तो राज हमारे सरों से मिलता है,
हमारे वोट हमारे जरों से मिलता है।
किसान कहके हिकारत से देखने वाले,
तुम्हें अनाज हमारे घरों से मिलता है।।


सही कहा. अपनी कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं:
दीवारें मजदूरों की दर-खिड़की सारी सेठ ले गए।
सर बाजू सरदारों के निर्धन को खाली पेट दे गए।।

साम-दाम और दंड चलाके सौदागर जी भेद ले गए।
माल भर लिया गोदामों में रखवालों को गेट दे गए।।

मेरी मिल में काम मिलेगा कहके मेरा वोट ले गए।
गन्ना लेकर सस्ते में अब चीनी महंगे रेट दे गए।।

राज भाटिय़ा ने कहा…

तुम्हें तो राज हमारे सरों से मिलता है,
हमारे वोट हमारे जरों से मिलता है।
किसान कहके हिकारत से देखने वाले,
तुम्हें अनाज हमारे घरों से मिलता है।।
बहुत ही सुंदर रचना, धन्यवाद
आप का कामेंट वाला लिंक तो बहुत ढुढने से मिलता है, कृप्या इसे बडा कर ले , ओर इस का रंग भी थोडा गाडा कर लै. धन्यवाद

Pawan Kumar ने कहा…

हर तरफ दहशत है सन्नाटा है,
जुबान के नाम पे कौम को बांटा है।
अपनी अना के खातिर हसने मुद्दत से,
मासूमों को, कमजोरों को काटा है।।
निश्चित ही मन झकझोरने वाली पोस्ट है आपकी......!
अच्छे सार्थक लेखन की बधाई.

कविता रावत ने कहा…

तुम्हारे अज़्म में नफरत की बू आती है,
नज़्म व नसक से दूर वहशत की बू आती है।
हाकिमे शहर तेरी तलवार की फलयों से,
किसी मज़लूम के खून की बू आती है।।
Saarthak or prasangik rachna ke liye shubhkamnayen...

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

nice

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