गुरुवार, 10 जून 2010

रात गंवाई जाग कर, दिवस गवायों सोय

सुख, दुख, हर्ष, विषाद को व्यक्त करने का अधिकार सभी को है, परन्तु इनके लिये कुछ शर्तें हैं, कुछ शिष्टाचार हैं। आजकल शादी विवाह एँव अन्य अवसरों पर ‘हर्ष-फायरिंग‘ का बड़ा प्रचलन हैं। यह स्टेटस- सिंबल बन गया है। परन्तु ऐसा क्या हर्ष जो दूसरों के दुख का कारण बने- ‘ई डोलत हैं, मगन हवे, उनके फाटत अंग‘।
एक साथ कई जिलों से इस प्रकार की खबरें आई है अखबार लिखता है हर्ष फायरिंग में शनिवार को फैजाबाद में दो, रविवार को बलारामपुर व हरदोई में एक एक मौते हो चुकी हैं। बेनीगंज क्षेत्र में रात द्वारचार के समय हुई फायरिंग से दुल्हन के भाई की मौत हो गई। घर में कोहराम मच गया। बारात बिना दुल्हन के ही बैरंग वापस लौट गई। अम्बेडकर नगर जिले में द्वारपूजा के दौराल हो रही फायरिंग के बीच गोली से मांगलिक कार्य करा रहे पुरोहित गंभीर रूप से घायल हो गये। भगदड़ मच गई, कन्या पक्ष के लोगों नें बारातियों की जम कर पिटाई की। नशे में घुत राजेश उपाध्याय , फायरिंग के समय नाल ऊपर नहीं उठा सके थे।
यह तो फायरिंग की बात हुई। अन्य बाते- मैरिज हालों में कार्यक्रम हमेशा देर से शूरू होते हैं।, तेज आवाज की म्युजिक, नाच-गानों की उचक-फांद, आतिश-बाजियाँ तथा हंगामें फिर सड़कों पर जुलूस में बारातियों का चलना, लड़के लड़कियों क रोक एण्ड रोल। कुल मिला कर यह कि अपनी खुशी में आस पास की आराम कर रही जनता को देर तक जगाना है। न बच्चे पढ़ाई कर सकते हैं, न मरीजों को आराम मिल सकता है। गुम हो गये। न समाज के समझ के समझदार व्यक्ति कुछ बोलते हैं, न सरकार कोई नियम बनाती है। बड़े आदमी, आम जनता का सुखचैन छीन रहे हैं। कबीर ने जो कुछ भी कहा हो- हम इन बड़े आदमियों के लिये यही कहेंगे-
रात गंवाई जाग कर, दिवस गवायों सोय
-डॉक्टर एस.एम हैदर

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