15 अगस्त 1947 को आजाद होने के बाद हमने साम्राज्यवादी शक्तियों की गुलामी करनी बंद नहीं की। राष्ट्रमंडल देशों की सदस्यता हमने ली और हम साम्राज्यवादी नीतियों व शक्तियों के प्रचार के वाहक समाज में बन गए। हम जनरल डायर से लेकर तमाम सारे नरसंहारो को भूल गए। इस देश की आजादी की लड़ाई में लाखों लोगो की कुर्बानियां हमको याद नहीं रहीं। राजा-रानी की पालकियां ढ़ोना हमने अभी बंद नहीं किया। हम आज भी बे मजूरी के उनकी पालकी ढ़ोने का काम कर रहे हैं। दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन हम कर रहे हैं । करोडो रुपये खर्च कर रहे हैं और इंग्लैंड की महारानी ने हमें गुलामी की याद दिलाने के लिए क्वींस बैटन प्रदान की है। जो पूरे राष्ट्रमंडल में घुमाने के बाद भारत में घुमाया जा रहा है। जगह-जगह शासन और प्रशासन द्वारा प्रायोजित स्वागत समारोह हो रहे हैं। अगर उसमें भाग लेने वाले नौजवानों व जनता को ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा किये गए अत्याचारों की याद दिला दी जाए तो क्वींस बैटन की यात्रा देश भर में घूम नहीं सकती है। हमारा मीडिया हमारा शासन-प्रशासन चापलूसी में क्वींस बीतें को नए-नए शब्दों से विभूषित कर रहा है, महिमामंडित कर रहा है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में क्वींस बैटन पहुँचते-पहुँचते असली और नकली का विवाद भी शुरू हो गया। लखनऊ में सरकारी कार्यक्रम समाप्त होने के बाद क्वींस बैटन के कुछ आयोजक गण निर्धारित कार्यक्रम से अलग हटकर सुब्रत राय सहारा के यहाँ पहुँच गए। यहाँ पर सहारा इंडिया ने अलग से कार्यक्रम किया। कुछ आयोजक लखनऊ से रायबरेली चले गए। अब लखनऊ जिला प्रशासन के अधिकारीगण तरह-तरह के बयान देकर और एक नया विवाद पैदा कर रहे हैं कि सहारा इंडिया के ऑफिस में गयी बैटन नकली है और वहां हुए घटना क्रम की जांच कराई जाएगी।
अब सवाल यह उठता है कि इस तरह के कार्य हम अपनी गुलाम मानसिकता के कारण करते रहते हैं और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति अपनी सलामी देते रहते हैं क्या ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने जनता को गुलाम बनाने का कार्य बंद कर दिया है ? हम मुफ्त में क्वींस बैटन लेकर साम्राज्यवाद का प्रचार कर रहे हैं।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
1 टिप्पणी:
नाइस !!!
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