इटावा पुलिस भर्ती में किये गए घोटाले में माननीय उच्च न्यायलय द्वारा बिन्दुवार कराई जा रही जांच में यह प्रकाश में आया है कि अभ्यर्थी ने अपनी उत्तर पुस्तिका में जय हिंद और जय माता दी ही लिखा उसको भी 21 नंबर देकर उत्तरीर्ण घोषित किया था, तो दूसरे अभ्यर्थी ने उत्तर पुस्तिका में अश्लील व आपत्तिजनक बातें लिखकर परीक्षा उत्तरीण कर ली थी। नौकरी में आरक्षण के कोटे को भी दरकिनार कर सिपाहियों की भर्ती की गयी थी। काफी संख्या में अभ्यर्थियों ने फर्जी जांच प्रमाण पत्र लगाये हैं। इस तरह से परीक्षक, परीक्षारती ने मिलकर अपराधिक कृत्य किये। चूंकि उक्त मामले भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों के है इसलिए राज्य, कानून, संविधान किसी को भी दण्डित करने में असमर्थ है। आर्थिक रूप से विपन्न लोगों का अगर मामला होता तो पूरी की पूरी व्यवस्था उन लोगो को दण्डित कर ही मानती।
भारतीय समाज में गोस्वामी तुलसीदास बहुत पहले ही लिख गए हैं कि
सुमन
लो क सं घ र्ष !
समरत को नहीं दोष गोसाईं
की उक्ति आज अपने वीभत्स स्वरूप में लागू होती है यह व्यवस्था पूँजीपतियों, वरिष्ठ नौकरशाहों के हितों के लिए ही काम करती है। इसमें आम आदमी का कोई भी हित संरक्षण नहीं है और न भविष्य में कोई उम्मीद ही नजर आती है।सुमन
लो क सं घ र्ष !
3 टिप्पणियां:
जिस देश का प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही व्यवस्था को सुधारने के लिए थोरी भी मेहनत करने के वजाय मोटी तनख्वाह और जनता के पैसे से मिले सुविधा का उपभोग कर सो रही हो उस देश में यह सब होना तो तय है ...
पर अगर अब इनके दोष ना देखे गए तो ये हितकारी नहीं होगा..
बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!
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