सोमवार, 19 जुलाई 2010

प्रिय..........


प्रिय,
अधूरे को ही तो
पूरा किया जाता है
पूर्णता तो स्वयं
स्थान रहित होती है...
पृथ्वी पर मैं
टूटे दिल,
विरह के मारे प्रेमी,
व्यथित हृदयों,
कल्पनायों में
विचरने वालों के
अधूरे सपने ही तो
पूरे करने जाती हूँ।

पर अब तो,
मानव ही बदल गया
न छत्त है, न आँगन
बड़ी-बड़ी अट्टालिकायें
न जा सकूँ, न फैल सकूँ
फिर निराश आशिक भी कहाँ...
इधर दिल टूटा,
नई जगह है जुड़ जाता,
आहें भरने,
मुझ से ठंडक पाने का समय कहाँ...
कल्पनाओं में मुझे बुनने वाले
अब कवि भी कहाँ...
बुद्धि कौशल में उलझे उनके
हृदयों में अब मेरा स्थान कहाँ...

प्रिय,
धरती वासी
तुम पर बसना चाहते हैं,
जिस दिन तुम्हें कष्ट में पाऊँगी,
रक्षा कवच बन जाऊँगी,
साथ निभाने आऊँगी,
पूर्णता पा जाऊँगी,
अभी मुझे धर्म निभाने दो,
कुछ बेचैन रूहों,
अतृप्त आत्मायों को सुख देने दो...!

-मीत

10 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

bahut sundar.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अब तो,
मानव ही बदल गया
न छत्त है, न आँगन
बड़ी-बड़ी अट्टालिकायें
न जा सकूँ, न फैल सकूँ
फिर निराश आशिक भी कहाँ...
इधर दिल टूटा,
नई जगह है जुड़ जाता,
आहें भरने,
मुझ से ठंडक पाने का समय कहाँ..
aur mere paas shabd kahan, sab to purn hai

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!

वाणी गीत ने कहा…

कल्पनाओं में मुझे बुनने वाले
अब कवि भी कहाँ...
बुद्धि कौशल में उलझे उनके
हृदयों में अब मेरा स्थान कहाँ...

ऐसी भी क्या बात है ...
कवि ह्रदय में कविता रहती हमेशा है ..
कभी मौन तो कभी मुखर ...!

हास्यफुहार ने कहा…

क्या कहूं?
इस अभिव्यक्ति के बाद निःशब्द हूं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज के समय से तारतम्य बैठाती सुन्दर रचना

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर्।

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

ahre ko pure krne or pure ko kuch nhin dene kaa yeh flsfaa smaajvaad ka flsfaa he bhut bhut bhut bhut bhut sundr h . akhtar khan akela kota rajsthan

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अब तो,
मानव ही बदल गया
न छत्त है, न आँगन
बड़ी-बड़ी अट्टालिकायें ..

बहुत खूब ... सच में मानव बदल गया है ...

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

bahut sundar rachanaa hai.

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