वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार (पुरुष)
कहा जाता है कि -" जिस टिप्पणी में दर्शन नहीं वह टिपण्णी कहाँ ?" वह तो मरे हुए कुछ शब्दों की शवयात्रा है . ...!
टिप्पणी तो साधना के तन और मन के पोर-पोर को झंकृत करने की क्षमता रखती है , हहराती-घहराती आकाश की छाती चीरती कुत्सित विचारधाराओं को विचलित कर देती है .
टिप्पणी में तो वह शक्ति होती है कि पराजय के कगार पर पहुंचे योद्धाओं में जीत की ललक जगा देती है .परों की तलाश में भटकती हुयी साधना को माया और राम दोनों के दर्शन करा देती है . यानी टिप्पणी साहित्य के लिए अमृत भी है और विष भी ....इसलिए उसका महत्व साहित्य की तमाम विधाओं से कहीं ज्यादा है .
एक ऐसा कवि जिसकी पहचान हिंदी चिट्ठाजगत में धूमकेतु के सामान है , जिनकी कवितायें हिंदी साहित्य को प्रयाग की पावनता प्रदान करती है , सुर-सरस्वती और संस्कृति की त्रिवेणी में डूबने को मजबूर कर देती है , पाठकों के मन-मस्तिस्क पर सीधे उतर जाने वाले इस युवा कवि का नाम है- हिमांशु
किन्तु ब्लोगोत्सव में उनके द्वारा प्रस्तुत सारगर्भित टिप्पणियों के लिए ब्लोगोत्सव की टीम ने उन्हें वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार (पुरुष) का अलंकरण देते हुए सम्मानित करने का निर्णय लिया है !
टिप्पणी तो साधना के तन और मन के पोर-पोर को झंकृत करने की क्षमता रखती है , हहराती-घहराती आकाश की छाती चीरती कुत्सित विचारधाराओं को विचलित कर देती है .
टिप्पणी में तो वह शक्ति होती है कि पराजय के कगार पर पहुंचे योद्धाओं में जीत की ललक जगा देती है .परों की तलाश में भटकती हुयी साधना को माया और राम दोनों के दर्शन करा देती है . यानी टिप्पणी साहित्य के लिए अमृत भी है और विष भी ....इसलिए उसका महत्व साहित्य की तमाम विधाओं से कहीं ज्यादा है .
एक ऐसा कवि जिसकी पहचान हिंदी चिट्ठाजगत में धूमकेतु के सामान है , जिनकी कवितायें हिंदी साहित्य को प्रयाग की पावनता प्रदान करती है , सुर-सरस्वती और संस्कृति की त्रिवेणी में डूबने को मजबूर कर देती है , पाठकों के मन-मस्तिस्क पर सीधे उतर जाने वाले इस युवा कवि का नाम है- हिमांशु
किन्तु ब्लोगोत्सव में उनके द्वारा प्रस्तुत सारगर्भित टिप्पणियों के लिए ब्लोगोत्सव की टीम ने उन्हें वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार (पुरुष) का अलंकरण देते हुए सम्मानित करने का निर्णय लिया है !
वर्ष की श्रेष्ठ महिला टिप्पणीकार
कहा जाता है कि -" जिस टिप्पणी में दर्शन नहीं वह टिपण्णी कहाँ ?" वह तो मरे हुए कुछ शब्दों की शवयात्रा है . ...!
टिप्पणी तो शब्द-शब्द से दर्शन टपकाती है . टिप्पणी में जीवन दर्शन नहीं हो तो उसकी कोई प्रासंगिकता नहीं होती वह तो निष्प्राण होती है . चूँकि टिप्पणी पत्थरों तक में प्राण-प्रतिष्ठा करती है , इसलिए उसका महत्व साहित्य की तमाम विधाओं से कहीं ज्यादा है .
एक ऐसी गीतकार जो गीत रचती है, गीत बांचती है ...यहाँ तक कि गीत जिसका ओढ़ना-बिछौना है , गीत जिसका स्वप्न है , गीत जिसका खिलौना है....जो अपने नाम के साथ गीत लिखना पसंद ही नहीं करती, अपितु गीत जिसकी प्राण-उर्जा है ऐसा महसूस करती है .
किन्तु आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि ब्लोगोत्सव-२०१० में प्रस्तुत उनकी टिप्पणी इतनी सारगर्भित रही कि उन्हें ब्लोगोत्सव की टीम ने उन्हें वर्ष की श्रेष्ठ महिला टिप्पणीकार का खिताब देते हुए सम्मानित करने का निर्णय लिया है !
जानते हैं कौन हैं वो ?
वो हैं श्रीमती संगीता स्वरुप जी !
suman
5 टिप्पणियां:
बहुत बहुत बधाई ! अनन्त शुभकामनाएं ।
दोनों टिप्पणीकारो को बहुत बहुत बधाई!
संगीता दी, बधाई!! और हिमांशु जी, आपको भी!
बहुत बहुत बधाई sangeeta ji
दोनों टिप्पणीकारो को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |
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