बुधवार, 28 जुलाई 2010

शिखर पर हूँ'' ........

शिखर पर हूँ'' ........
घाटियों में खोजिए मत
मैं शिखर पर हूँ'
धुएँ की
पगडंडियों को
बहुत पीछे छोड़ आयी हूँ
रोशनी के राजपथ पर
गीत का रथ मोड़
आयी हूँ,
मैं नहीं भटकी
रही चलती निरंतर हूँ।

लाल-
पीली उठीं लपटें
लग रही है आग जंगल में
आरियाँ उगने लगी हैं
आम, बरगद, और
पीपल में
मैं झुलसती रेत पर
रसवंत निर्झर हूँ....

साँझ ढलते
पश्चिमी नभ के
जलधि में डूब जाऊँगी,
सूर्य हूँ मैं जुगनुओं की'
चित्र----लिपि----में
जगमगावुगी,
अनकही अभिव्यक्ति का मैं

स्वर अनश्वर हूँ''!
meet

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा अभिव्यक्ति.

Anand ने कहा…

स्वर अनश्वर हूँ''!

aaj aise hi swar ki to aavashayakta hai...

aapki aawaaz aur buland ho...

Anand ने कहा…

http://kavyalok.com

राम त्यागी ने कहा…

शिखर हूँ ...सदैव ऐसा ही आत्मविश्वास रहे !!

हास्यफुहार ने कहा…

बहुत अच्छी रचना।

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