रविवार, 15 अगस्त 2010

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है

गाँधी के सपनो का यह भारत, यही स्वराज्य का मूल मन्त्र है
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है

तिरसठ बरसों बाद आज भी, गाँवों की तस्वीर वही है
दैन्य निराशा और दबंग की, अब भी जागीर वही है
पड़ी हुई आज पांवों में अब भी वही गुलामी की जंजीरें
आज भी वही घिसई बुद्धू के झोपड़ियों की तस्वीरें
प्रजातंत्र यह नहीं शोषकोंसामंतो का राजतन्त्र है
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है

विधवा, वृद्ध, अपंग महिलाएं घर-घर जाकर भीख मांगती
चूल्हा, चौका, बर्तन करके किसी तरह लाज ढ़ाँपती
भूख मिटाने के खातिर झुग्गी- झोपड़ियों की बालाएं
जिस्मों का सौदा करती, ईमान बेचती ललनाएं
हंसी उड़ाते तुम जनता की कहते हो यह प्रजातंत्र है
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है

नेता अधिकारी हड़प रहे मजदूर किसानो का हिस्सा
आज भी वही प्रेमचंद के सवा सेर गेंहू का किस्सा
धूर्त महाजन सूदखोर मिल कर जनता को लूट रहे,
क्या खाएं, क्या ब्याज चुकाएं, उन्हें पसीने छूट रहे
मनमोहन प्योर आँखें खोलो देखो कैसा लूट तंत्र है
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है


निर्दयी निरंकुश पुलिस जब जहाँ जिसकी चाहे हत्या कर दे
हत्यारों की सहयोगी बन हत्या को आत्महत्या कह दे
निर्दोषों को मार गिराए जितने चाहे तमगे ले ले
मंत्रियों की गिनती ही क्या न्यायलय से पंगे ले ले
कार्यपालिका न्यायपालिका पर भी भारी पुलिसतंत्र है
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है


असहायों अल्पसंख्यकों के सीने पर कहीं गोलियां चलती॥
गिरिजाघर कहीं मस्जिदें जलती, कहीं मकान दुकानें जलती।
गुंडे, पुलिस, राजनेता आतंक मचाएं आग लगायें।
स्वयं, प्रदेश के राज्य मंत्री जनता की हत्या करवाएं
जिसकी लाठी भैंस उसी की, लगता है यह लठ्ठ तंत्र है
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है

महँगाई की मारी जनता क्या खाए, सर कहाँ छिपाए।
भूखे बच्चों को देख बिलखता जाकर कहाँ डूब मर जाए॥
संवेदन शून्य सरकारें सब नीरो की वंशी बजा रहीं
जनता को निगल रही महँगाई देख तनिक लजा रहीं॥
इसी विकास पर तुम्हें गर्व है यही तुम्हारा अर्थ तंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है

फुटपाथों कचेहरियों में सर्दी गर्मी में पालिश करते।
नन्हे अबोध मुरझाये चेहरे तुम अंधों को नहीं दीखते॥
भूख कुपोषण बीमारी से यहाँ करोडो बच्चे मरते॥
तुमको लाज नहीं आती निशदिन छप्पन भोग भोगते॥
गांधीवादी अभिनेताओं बतलाओ यह प्रजा तंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है

संघर्ष करे जो न्याय के लिए उसको तुम विद्रोही कह दो
स्वाधिकार के लिए लड़े जो उसको देश द्रोही कह दो
क्या इसी स्वतंत्रता के खातिर लाखों ने प्राण गंवाए
जेलों में चक्की पीसी, अपमान सहे, सर्वस्व लुटाये
स्वदेश वासियों को छलना ही क्या प्रजा तंत्र है
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है

भोपाल वासियों की लाशों पर अब तक रोटी रहे सेंकते
घुट-घुट कर मरते गैस पीड़ितों को तुम टुकड़े रहे फेंकते
हत्यारे एंडरसन को सम्मान सहित स्वदेश भिजवाये
लाखों हुए अपंग, हजारों मरे तनिक तुम नहीं लजाये
साम्राज्यवादियों के दासों क्या यही तुम्हारा न्यायतंत्र है
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है




-मोहम्मद जमील शास्त्री

7 टिप्‍पणियां:

شہروز ने कहा…

अंग्रेजों से प्राप्त मुक्ति-पर्व ..मुबारक हो!

समय हो तो एक नज़र यहाँ भी:

आज शहीदों ने तुमको अहले वतन ललकारा : अज़ीमउल्लाह ख़ान जिन्होंने पहला झंडा गीत लिखा http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_14.html

हास्यफुहार ने कहा…

आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

15 अगस्त 1947 आजादी का आरंभ था, फिर कितने पग चले? कितने और चलने हैं?

निर्मला कपिला ने कहा…

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

विनोद पाराशर ने कहा…

सुंमन जी,आज के हालातों की सच्ची तस्वीर रचना में दिखाई देती हॆ.स्वतंत्रता दिवस की 63वीं सालगिरह सिर्फ कुछ लोगों के लिए हो सकती हॆ.समाज के जिस वर्ग के हालातों में कोई बदलाव ही नहीं आया,उनके लिए कॆसा स्वतंत्रता-दिवस?ऒर कॆसी-शुभकामनाएँ?.कुछ सवाल अब भी ऎसे मॊजूद हॆं-जिनका उत्तर अभी तक भी नहीं खोज पाय़े हॆं.ऎसा ही एक सवाल अपनी राज-भाषा’हिंदी’ का हॆ.कहने के लिए हमारी राज-भाषा’हिंदी’ हॆं,लेकिन अभी तक ज्यादातर सरकारी काम-काज ’अंग्रेजी’ में हो रहा हॆ. आखिर कब तक हम भारतीय आपस में संवाद के लिए,एक विदेशी भाषा का सहारा लेते रहेंगें? इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए-’राजभाषा विकास मंच’बनाया गया हॆ.कभी इधर भी आईये.
http://www.rajbhashavikasmanch.blogspot.com

Urmi ने कहा…

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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !

ज्योति सिंह ने कहा…

विधवा, वृद्ध, अपंग महिलाएं घर-घर जाकर भीख मांगती।
चूल्हा, चौका, बर्तन करके किसी तरह लाज ढ़ाँपती॥
भूख मिटाने के खातिर झुग्गी- झोपड़ियों की बालाएं।
जिस्मों का सौदा करती, ईमान बेचती ललनाएं॥
हंसी उड़ाते तुम जनता की कहते हो यह प्रजातंत्र है।
सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥bahut hi saarthak rachna ,paristhiti ka muyana karti hui ,badhai sweekaare aazadi ke shubh avasar par .jai hind .

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