अमेरिकन साम्राज्यवाद के चहेते, इस देश और समाज को बांटने के लिए एस.एम.एस भारी संख्या में भेज रहे हैं जिसकी विषयवस्तु यह है
15 सितम्बर को बाबरी मस्जिद प्रकरण पर माननीय उच्च न्यायलय इलाहाबाद खंडपीठ लखनऊ का फैसला आना है। फैसला किसी भी पक्ष में आए इन विघटनकारी आतंकियों का देश और समाज से कोई लेना देना नहीं है। भारतीय जनमानस के एक बहुत बड़े हिस्से के आस्था के प्रतीक श्री राम को यह विघटनकारी तत्व बदनाम कर के राजनीति का मोहरा बना रहे हैं। जनता में तरह-तरह के उकसाने वाले एस.एम.एस लाखों की संख्या में लोगो को भेजे जा रहे हैं। जब साम्राज्यवादियों की पिट्ठू सरकार थी तब यह लोग राम को भूल गए थे और जब सत्ता से बाहर हैं तो राम को राजनीति का मोहरा बनाने पर तुले हुए हैं, ऐसा नहीं है कि जो लोग यह कर रहे हैं वह लोग बहुत भोले-भाले लोग हैं। वह लोग जानबूझ कर षड्यंत्र के तहत भडकावा पूर्ण कार्यवाही करके भारत को कमजोर करना चाहते हैं। बाबरी मस्जिद को इन्ही विघटनकारी ताकतों ने तोड़ कर कई सौ करोड़ परिसम्पतियों को जला दिया था और इनके इन कारनामो से विदेशों में भी रह रहे हिन्दुवों को कष्ट उठाना पड़ा था। आजादी के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इन्ही चेले-चापड़ों ने बाबरी मस्जिद में, पूरे देश में बवाल कराने के लिए मूर्तियाँ रखीं थी।
अगर न्यायलय का फैसला यह आता है कि बाबरी मस्जिद की जमीन मस्जिद की है तो यह लोग दंगा फसाद कराने की कशिश करेंगे और अगर फैसला ये आता है कि उक्त भूमि बाबरी मस्जिद की नहीं है तब इनका शौर्य दिवस, विजय दिवस प्रारंभ होगा कुल मिलाकर यह चाहते हैं कि देश के अन्दर धार्मिक आधार पर एकता की बजाय विघटन पैदा हो। आज इन विघटनकारी तत्वों की पहचान कर उनको अलग थलग करने की है और जो लोग भारतीय महापुरुषों को राजनीति का अखाडा बनाने की कोशिश करते हैं, उनपर शक्ति करने की जरुरत है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
राममंदिर के लिए प्रार्थना कीजिये
15 सितम्बर को कोर्ट का फैसला है
इस मैसेज को आग की तरह फैलाना है
जो हिन्दू राम का नहीं
वो किसी काम का नहीं
जय श्री राम
15 सितम्बर को कोर्ट का फैसला है
इस मैसेज को आग की तरह फैलाना है
जो हिन्दू राम का नहीं
वो किसी काम का नहीं
जय श्री राम
15 सितम्बर को बाबरी मस्जिद प्रकरण पर माननीय उच्च न्यायलय इलाहाबाद खंडपीठ लखनऊ का फैसला आना है। फैसला किसी भी पक्ष में आए इन विघटनकारी आतंकियों का देश और समाज से कोई लेना देना नहीं है। भारतीय जनमानस के एक बहुत बड़े हिस्से के आस्था के प्रतीक श्री राम को यह विघटनकारी तत्व बदनाम कर के राजनीति का मोहरा बना रहे हैं। जनता में तरह-तरह के उकसाने वाले एस.एम.एस लाखों की संख्या में लोगो को भेजे जा रहे हैं। जब साम्राज्यवादियों की पिट्ठू सरकार थी तब यह लोग राम को भूल गए थे और जब सत्ता से बाहर हैं तो राम को राजनीति का मोहरा बनाने पर तुले हुए हैं, ऐसा नहीं है कि जो लोग यह कर रहे हैं वह लोग बहुत भोले-भाले लोग हैं। वह लोग जानबूझ कर षड्यंत्र के तहत भडकावा पूर्ण कार्यवाही करके भारत को कमजोर करना चाहते हैं। बाबरी मस्जिद को इन्ही विघटनकारी ताकतों ने तोड़ कर कई सौ करोड़ परिसम्पतियों को जला दिया था और इनके इन कारनामो से विदेशों में भी रह रहे हिन्दुवों को कष्ट उठाना पड़ा था। आजादी के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इन्ही चेले-चापड़ों ने बाबरी मस्जिद में, पूरे देश में बवाल कराने के लिए मूर्तियाँ रखीं थी।
अगर न्यायलय का फैसला यह आता है कि बाबरी मस्जिद की जमीन मस्जिद की है तो यह लोग दंगा फसाद कराने की कशिश करेंगे और अगर फैसला ये आता है कि उक्त भूमि बाबरी मस्जिद की नहीं है तब इनका शौर्य दिवस, विजय दिवस प्रारंभ होगा कुल मिलाकर यह चाहते हैं कि देश के अन्दर धार्मिक आधार पर एकता की बजाय विघटन पैदा हो। आज इन विघटनकारी तत्वों की पहचान कर उनको अलग थलग करने की है और जो लोग भारतीय महापुरुषों को राजनीति का अखाडा बनाने की कोशिश करते हैं, उनपर शक्ति करने की जरुरत है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
9 टिप्पणियां:
nice appeal
यही कारण है की इन दिनों चप्पे चप्पे पर पुलिस मौजूद है -यह मुद्दा अदालत का था ही नहीं -कितना बड़ा दुर्भाग्य है देश का !
क्षमा करें सुमन जी, मगर जरा आप अपने अन्दर झांक कर देखना, आप भी ठीक वही काम कर रहे है जिस बात का आरोप आपने ऊपर के एस एम् एस भेजने वाले पर लगाए है !
ऐसा नहीं है कि विरोधी खेमा चुप बैठा हो, वह तो उसी दिन से सुरु हो गया था जिस दिन से कोर्ट ने फैसला रिजर्व रखा, यह चिठ्ठा जगत उसका गवाह है ! आप काफी हद तक सही है मगर दिक्कत है निष्पक्ष होकर दोनों तरह बराबर का बैलेंस बनाने की !
गोदियाल जी, आप भी न!
कुछ नहीं समझते हैं :)
गिरिजेश जी ... गोदियाल जी सब समझते हैं ... दिक्कत ये है कि ठीक ठीक समझ लेते हैं :)
कितनी तो nice पोस्ट लिखी है जी, फ़िर भी लोग समझते ही नहीं हैं।
पी सी गोदियाल जी से सहमत हूँ... जो भी कहें, निष्पक्ष होकर कहें. वाही सच्ची पत्रकारिता होगी .
क्षमा के साथ-
ज्योत्स्ना.
ऎसे ही मौके तो होते हैं, खुद पर किए गए एहसानों का बदला चुकाने को :)
एक टिप्पणी भेजें