देर आयद दुरुस्त आये। लगभग पाँच बरस बाद ही सही पर क़ातिलों तक कानून के हाथ पहुँचे तो। सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक देने के बाद ही कानून ने हिल-डुल की। वरना गुजरात में नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार और उनके इशारे पर चलने वाली गुजरात पुलिस ने तो मामले को रफा-दफा ही कर दिया था।
पुलिस ने कथित गैंगस्टर सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी कौसर बी और प्रजापति तुलसी को 26 नवम्बर 2005 को गुजरात में एक बस अड्डे से अगवा कर लिया था। इसके बाद सोहराबुद्दीन की हत्या कर दी गई थी। उन दिनों राजस्थान में भी भाजपा की सरकार थी। सोहराबुद्दीन की बीबी कौसर बी का भी बाद में कथित तौर पर कत्ल कर दिया गया था, हालाँकि उनका शव बरामद नहीं किया गया। जब पुलिस ही इन कत्लोें को अंजाम दे रही थी तो शव को बरामद भी कौन करता? घटना का एकमात्र ग़वाह तुलसी प्रजापति था। उसकी भी साल भर बाद फर्जी मुठभेड़ दिखाकर हत्या कर दी गई।
इस क़त्लो-गारत के लिए सी0बी0आई0 ने जाँच के बाद जिन लोगों को मुल्जिम बनाया है उनमें प्रमुख हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेहद करीबी एवं राज्य के गृह राज्यमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री के बेहद करीबी पुलिस अफसर एवं राज्य के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डी0आई0जी0) डी0बी0 वंजारा, पुलिस सुपरिटेडेंट राजकुमार पांडियन और एम0एन0 दिनेश, डी0एस0पी0 एम0एल0 परमार एवं एन0के0 अमीन। इनके अलावा सहकारी बैंक अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट के चेयरमैन अजय पटेल और ए0डी0सी0 बैंक के निदेशक यशपाल चुडासमा, तीन पुलिस इंस्पेक्टर, तीन उप निरीक्षक और एक पुलिस उप आयुक्त भी मुल्जिमों में शामिल हैं। मुल्जिमों में से चार मुल्जिम-अभय चुडासमा, डी.बी. बंजारा, एम.एन. दिनेश और राजकुमार आई0पी0एस0 (भारतीय पुलिस सेवा) के अफसर हैं। इससे ही जाहिर हो जाता है कि इन हत्याओं के लिए राज्य सरकार का ही इशारा था। इन लोगों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 (हत्या), 120बी (साजिश रचने), धारा 342 (बंधक बनाने),
धारा 364 (अपहरण और हत्या के लिए अगवा करने), धारा 384 (जबरन वसूली), 201 (महत्वपूर्ण सबूत मिटाने), धारा 365 और धारा 368 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
इन पुलिस अफसरों में कुछ राजस्थान के भी हैं। जिससे संकेत मिलता है कि राजस्थान की भाजपा सरकार का भी इस फर्जी मुठभेड़ से कुछ न कुछ सम्बंध था। खबर है कि राजस्थान भाजपा के दो कद्दावर नेता, राजस्थान की भाजपा सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया और गुजरात में प्रदेश प्रभारी रहे सांसद ओम प्रकाश माथुर से भी सीबीआई पूछताछ करने वाली है। चर्चा है कि गुजरात के गृह राज्यमंत्री अमित शाह की मोबाइल की काॅल डिटेल से उदयपुर के तत्कालीन आई0जी0, राजस्थान के तत्कालीन आई0जी0, राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री और ओम प्रकाश माथुर की आपस में लगातार मोबाइल पर बातचीत की काॅल डिटेल सामने आई है। साथ ही सी0बी0आई0 रिमाण्ड के दौरान गुजरात पुलिस के दो इंस्पेक्टरों ने जो राज उगले उससे भी साजिश में इनकी संलिप्तता के प्रमाण सामने आए हैं।
अमित शाह के विरुद्ध चार्जशीट में कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि उन्हें इन हत्याओं की केवल जानकारी थी, बल्कि इस साजिश में उन्होंने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था।
समझा जाता है कि अमित शाह जो भी करते थे मोदी के कहने पर ही करते थे। इस लिहाज से इन हत्याकाण्डों की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री तक पहुँचती है, भले ही फिलहाल उन्हें इस मामले में मुल्जिम न बनाया गया हो।
यह भी चर्चा है कि अमित शाह ने ही 2003 में अपनी ही पार्टी के नेता हरीन पांड्या की हत्या को मैनेज किया था, उन्होंने ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक संजय जोशी की सेक्स सी0डी0 बँटवाई थी। शाह पर 2005 में माधवपुरा मर्केन्टाइल बैंक के 1100 करोड़ रूपये के घोटाले में
2.5 करोड़ रूपये रिश्वत लेने का आरोप भी लगा था। समझा जाता है कि ये सब काम वे मुख्यमंत्री के कहने पर ही करते रहे हैं।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस मामले में जिस तरह व्यवहार कर रहा है उससे उसका अपराध बोध ही जाहिर होता है। यह सही है कि मनमोहन सिंह सरकार राजनैतिक ब्लैकमेलिंग के लिए सी0बी0आई0 का दुरुपयोग करती है। परमाणु करार को संसद में पारित कराने के लिए और संसद के पिछले सत्र में कटौती प्रस्ताव के समय अपने पक्ष में मतदान कराने के लिए सरकार ने सी0बी0आई0 के दबाव का इस्तेमाल किया था।
पर इस मामले में सी0बी0आई0 के दुरुपयोग का बहाना बनाकर भाजपा मुल्जिमों को बचाने की जिस तरह कोशिश कर रही है उसे ठीक नहीं ठहराया जा सकता।
इस मामले में गुजरात सरकार, भाजपा के नेताओं और गुजरात पुलिस की संलिप्तता इतनी स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की हिम्मत नहीं हुई कि सुप्रीम कोर्ट में इसे फर्जी मुठभेड़ कह दें। गुजरात सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट के सामने शपथ पत्र देकर यह मानना पड़ा कि यह मुठभेड़ फर्जी थी। कांग्रेस ने अनेक बरसों से नरम हिन्दुत्व की राह अपना रखी है और वह भाजपा की साम्प्रदायिकता से मेल मिलाप कर चलती रही है। यह मुकदमा कांग्रेस या यू0पी0ए0 सरकार की सक्रियता से नहीं खुला है। इस मामले में पीड़ित परिजन सुप्रीम कोर्ट गए हैं, केन्द्र सरकार नहीं। तब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने सी0बी0आई0 को आदेश दिया कि इस मामले की जाँच करे।
-आर.एस. यादव
फोन0 011-23230762
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
पुलिस ने कथित गैंगस्टर सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी कौसर बी और प्रजापति तुलसी को 26 नवम्बर 2005 को गुजरात में एक बस अड्डे से अगवा कर लिया था। इसके बाद सोहराबुद्दीन की हत्या कर दी गई थी। उन दिनों राजस्थान में भी भाजपा की सरकार थी। सोहराबुद्दीन की बीबी कौसर बी का भी बाद में कथित तौर पर कत्ल कर दिया गया था, हालाँकि उनका शव बरामद नहीं किया गया। जब पुलिस ही इन कत्लोें को अंजाम दे रही थी तो शव को बरामद भी कौन करता? घटना का एकमात्र ग़वाह तुलसी प्रजापति था। उसकी भी साल भर बाद फर्जी मुठभेड़ दिखाकर हत्या कर दी गई।
इस क़त्लो-गारत के लिए सी0बी0आई0 ने जाँच के बाद जिन लोगों को मुल्जिम बनाया है उनमें प्रमुख हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेहद करीबी एवं राज्य के गृह राज्यमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री के बेहद करीबी पुलिस अफसर एवं राज्य के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डी0आई0जी0) डी0बी0 वंजारा, पुलिस सुपरिटेडेंट राजकुमार पांडियन और एम0एन0 दिनेश, डी0एस0पी0 एम0एल0 परमार एवं एन0के0 अमीन। इनके अलावा सहकारी बैंक अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट के चेयरमैन अजय पटेल और ए0डी0सी0 बैंक के निदेशक यशपाल चुडासमा, तीन पुलिस इंस्पेक्टर, तीन उप निरीक्षक और एक पुलिस उप आयुक्त भी मुल्जिमों में शामिल हैं। मुल्जिमों में से चार मुल्जिम-अभय चुडासमा, डी.बी. बंजारा, एम.एन. दिनेश और राजकुमार आई0पी0एस0 (भारतीय पुलिस सेवा) के अफसर हैं। इससे ही जाहिर हो जाता है कि इन हत्याओं के लिए राज्य सरकार का ही इशारा था। इन लोगों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 (हत्या), 120बी (साजिश रचने), धारा 342 (बंधक बनाने),
धारा 364 (अपहरण और हत्या के लिए अगवा करने), धारा 384 (जबरन वसूली), 201 (महत्वपूर्ण सबूत मिटाने), धारा 365 और धारा 368 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
इन पुलिस अफसरों में कुछ राजस्थान के भी हैं। जिससे संकेत मिलता है कि राजस्थान की भाजपा सरकार का भी इस फर्जी मुठभेड़ से कुछ न कुछ सम्बंध था। खबर है कि राजस्थान भाजपा के दो कद्दावर नेता, राजस्थान की भाजपा सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया और गुजरात में प्रदेश प्रभारी रहे सांसद ओम प्रकाश माथुर से भी सीबीआई पूछताछ करने वाली है। चर्चा है कि गुजरात के गृह राज्यमंत्री अमित शाह की मोबाइल की काॅल डिटेल से उदयपुर के तत्कालीन आई0जी0, राजस्थान के तत्कालीन आई0जी0, राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री और ओम प्रकाश माथुर की आपस में लगातार मोबाइल पर बातचीत की काॅल डिटेल सामने आई है। साथ ही सी0बी0आई0 रिमाण्ड के दौरान गुजरात पुलिस के दो इंस्पेक्टरों ने जो राज उगले उससे भी साजिश में इनकी संलिप्तता के प्रमाण सामने आए हैं।
अमित शाह के विरुद्ध चार्जशीट में कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि उन्हें इन हत्याओं की केवल जानकारी थी, बल्कि इस साजिश में उन्होंने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था।
समझा जाता है कि अमित शाह जो भी करते थे मोदी के कहने पर ही करते थे। इस लिहाज से इन हत्याकाण्डों की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री तक पहुँचती है, भले ही फिलहाल उन्हें इस मामले में मुल्जिम न बनाया गया हो।
यह भी चर्चा है कि अमित शाह ने ही 2003 में अपनी ही पार्टी के नेता हरीन पांड्या की हत्या को मैनेज किया था, उन्होंने ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक संजय जोशी की सेक्स सी0डी0 बँटवाई थी। शाह पर 2005 में माधवपुरा मर्केन्टाइल बैंक के 1100 करोड़ रूपये के घोटाले में
2.5 करोड़ रूपये रिश्वत लेने का आरोप भी लगा था। समझा जाता है कि ये सब काम वे मुख्यमंत्री के कहने पर ही करते रहे हैं।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस मामले में जिस तरह व्यवहार कर रहा है उससे उसका अपराध बोध ही जाहिर होता है। यह सही है कि मनमोहन सिंह सरकार राजनैतिक ब्लैकमेलिंग के लिए सी0बी0आई0 का दुरुपयोग करती है। परमाणु करार को संसद में पारित कराने के लिए और संसद के पिछले सत्र में कटौती प्रस्ताव के समय अपने पक्ष में मतदान कराने के लिए सरकार ने सी0बी0आई0 के दबाव का इस्तेमाल किया था।
पर इस मामले में सी0बी0आई0 के दुरुपयोग का बहाना बनाकर भाजपा मुल्जिमों को बचाने की जिस तरह कोशिश कर रही है उसे ठीक नहीं ठहराया जा सकता।
इस मामले में गुजरात सरकार, भाजपा के नेताओं और गुजरात पुलिस की संलिप्तता इतनी स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की हिम्मत नहीं हुई कि सुप्रीम कोर्ट में इसे फर्जी मुठभेड़ कह दें। गुजरात सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट के सामने शपथ पत्र देकर यह मानना पड़ा कि यह मुठभेड़ फर्जी थी। कांग्रेस ने अनेक बरसों से नरम हिन्दुत्व की राह अपना रखी है और वह भाजपा की साम्प्रदायिकता से मेल मिलाप कर चलती रही है। यह मुकदमा कांग्रेस या यू0पी0ए0 सरकार की सक्रियता से नहीं खुला है। इस मामले में पीड़ित परिजन सुप्रीम कोर्ट गए हैं, केन्द्र सरकार नहीं। तब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने सी0बी0आई0 को आदेश दिया कि इस मामले की जाँच करे।
-आर.एस. यादव
फोन0 011-23230762
लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित
2 टिप्पणियां:
jai ho !
अगर निश्पक्ष जाँच हो तो सभी मन्त्रिओं का यही हाल होगा। धन्यवाद।
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