जम्मू एंड कश्मीर हालात पिछले कुछ दिनों से अत्यधिक बिगड़े हुए हैं। जिसका राजनीतिक समाधान होना अतिआवश्यक है। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से एक नेता ने कहा कि हमको आजादी चाहिए। यह बात पिछले कुछ वर्षों में साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा इस प्रदेश की जनता में कूट-कूट कर भरा गया है लेकिन ऐसे तत्वों के साथ सामान्य जन नहीं है। हमारी व्यवस्था की असफलताएं ऐसे तत्वों को पल्लवित होने में मदद करती हैं। इन अलगावादी तत्वों से यह पूछने की आवश्यकता है कि वह किसके गुलाम हैं जब पाकिस्तान का निर्माण हुआ था और उसके बाद पकिस्तान पूरी तरह से अमेरिकन साम्राज्यवादियो के साथ रहा और आज उसकी राजनीतिक, आर्थिक स्तिथि अत्यधिक ख़राब है। जम्मू एंड कश्मीर का भी अर्थ तंत्र काफी अच्छा नहीं है। काफी हिस्सा बर्फीला होने के कारण रोजगार के अवसर काम हैं। पर्यटन से ही मुख्य आय होती है जो सीमा पार की गतिविधियों से कम होती जा रही है। दूसरी तरफ गुलाम कश्मीर जिसके हालात जम्मू एंड कश्मीर से भी बदतर हैं।
अमेरिकन साम्राज्यवाद का पुराना सपना है कि जम्मू एंड कश्मीर को भारत और पकिस्तान से अलग कर वहां पर सैनिक समुच्चय स्थापित करने का किन्तु उसका सपना पूरा नहीं हो पा रहा है। भारतीय नागरिको की उदारतावादी नीति के कारण कश्मीर के उच्च इलाकों पर अमेरिकन सैनिको की तैनाती से वह भारत, चाइना सहित कई मुल्कों के ऊपर अपना अघोषित नियंत्रण कर सकता है। आज जब भारत की विदेश नीति से लेकर सभी नीतियों में परिवर्तन हुए हैं तो उसका लाभ साम्राज्यवादी शक्तियों को भी हो रहा है जिसका प्रतिबिम्ब मुख्य रूप से जम्मू एंड कश्मीर में दिखाई देता है।
जरूरत इस बात की है कि यह एक राजनीतिक समस्या है वहां की जनता से सद्भावपूर्ण तरीके से एक अच्छी व्यवस्था देकर संवाद कायम करने की है। संवाद से ही अच्छा रास्ता निकलेगा। सेना, कर्फ्यू, फायरिंग कोई विकल्प नहीं होते हैं। इससे कुछ समय के लिए शांति तो कायम की जा सकती है लेकिन स्थायी शांति नहीं।
साम्राज्यवादी शक्तियों के भारतीय सन्देश वाहक इस समस्या को हिन्दू और मुसलमान के चश्मे से ही देखते हैं और उनको देखना भी चाहिए पहले वह ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए हिन्दू और मुसलमान, हिंदी और उर्दू का विवाद उठाते रहे हैं और आज भी वह कश्मीर के सवाल को साम्राज्यवादी शक्तियों को फ्रायदा देने के लिए तरह-तरह के राग अलाप रहे हैं। मैं नहीं समझता कि संविधान के अनुच्छेद 370 के प्राविधानो से भारतीय संघ के अन्य नागरिको का कोई नुकसान होता है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
अमेरिकन साम्राज्यवाद का पुराना सपना है कि जम्मू एंड कश्मीर को भारत और पकिस्तान से अलग कर वहां पर सैनिक समुच्चय स्थापित करने का किन्तु उसका सपना पूरा नहीं हो पा रहा है। भारतीय नागरिको की उदारतावादी नीति के कारण कश्मीर के उच्च इलाकों पर अमेरिकन सैनिको की तैनाती से वह भारत, चाइना सहित कई मुल्कों के ऊपर अपना अघोषित नियंत्रण कर सकता है। आज जब भारत की विदेश नीति से लेकर सभी नीतियों में परिवर्तन हुए हैं तो उसका लाभ साम्राज्यवादी शक्तियों को भी हो रहा है जिसका प्रतिबिम्ब मुख्य रूप से जम्मू एंड कश्मीर में दिखाई देता है।
जरूरत इस बात की है कि यह एक राजनीतिक समस्या है वहां की जनता से सद्भावपूर्ण तरीके से एक अच्छी व्यवस्था देकर संवाद कायम करने की है। संवाद से ही अच्छा रास्ता निकलेगा। सेना, कर्फ्यू, फायरिंग कोई विकल्प नहीं होते हैं। इससे कुछ समय के लिए शांति तो कायम की जा सकती है लेकिन स्थायी शांति नहीं।
साम्राज्यवादी शक्तियों के भारतीय सन्देश वाहक इस समस्या को हिन्दू और मुसलमान के चश्मे से ही देखते हैं और उनको देखना भी चाहिए पहले वह ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए हिन्दू और मुसलमान, हिंदी और उर्दू का विवाद उठाते रहे हैं और आज भी वह कश्मीर के सवाल को साम्राज्यवादी शक्तियों को फ्रायदा देने के लिए तरह-तरह के राग अलाप रहे हैं। मैं नहीं समझता कि संविधान के अनुच्छेद 370 के प्राविधानो से भारतीय संघ के अन्य नागरिको का कोई नुकसान होता है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
2 टिप्पणियां:
कश्मीर की समस्या अगंरेज़ो की सोची समझी चाल का प्रतिफ़ल है जिसके द्वारा उन्होने न केवल भाई_भाई के बीच खाई बनाई बल्कि
देश का विभाजन करवाया ! यदपि भारत के संविधान निर्माताओं ने
समय की नज़ाकत को देखते हुये कश्मीर को विषेश राज्य का दर्ज़ा धारा ३७० के तहत दिया, परन्तु स्वार्थी एवं कट्टर पंथियो ने इसे भारत सकार की कम्जोरी मान लिया है अतः कुछ सख्त कदम उठाने
के लिये द्र्ढ इच्छा शक्ति की आवश्यक्ता है!
सम्वेदना जी से सहमत। धन्यवाद।
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