उल्लेखनीय है कि सतरिख पुलिस ने ग्रामीणों द्वारा 6 अक्टूबर की रात चोरी करने के इरादे से गए शेखर चैहान को लाकअप में दो दिनों तक बन्द रखा तथा बगैर मुकदमा लिखे उसकी तबियत खराब होने पर उसे छोड़ दिया। शेखर की मृत्यु शुक्रवार की सुबह उसके घर पर हो गयी। मृत्यु की सूचना पाकर पुलिस ने आनन फानन में उसके विरुद्ध चोरी का मुकदमा दर्ज कर लिया। युवक की मौत पर जब मामला गरमाना शुरु हुआ तो पुलिस अधीक्षक ने अपने मातहत पुलिस कर्मियांे पर यह कहकर कार्यवायी की कि उसने युवक को जो चारी के मामले में ग्रामीणो द्वारा पिटाई के बाद थाने लाया गया था दो दिन तक पूछ ताछ के उद्देश्य से थाने में रखने के समय और न छोड़ने के समय उसका चिकित्सीय परीक्षण नही कराया और फिर जब वह अपने घर पर मर गया तो उसका पोस्टमार्टम भी नही कराया। यह गम्भीर प्रकरण है इसी कारण उन्होने थानाध्यक्ष व बीट के दरोगा को निलम्बित किया है।
पुलिस द्वारा लाकअप में अभियुक्तों को लाकर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके अमानवीय सुलूक के सारे पैमाने यूॅ तो अक्सर तोड़े जाते रहते है। भले ही हर थाने के मुख्य द्वार पर मानवाधिकार के पालन का पाठ बड़े बड़े बोर्ड लगाकर दर्शाया जाता हो। लाकअप मंे बेजा हिरासत में रखने का यह कोई पहला मामला नही है, उ0प्र0पुलिस का नाम इस मामले में पूरे देश में सुनहरे शब्दो में दर्ज रहा है। हाल मंे एक मामला आज कल सुर्खियों में है जब वर्ष 2007 में एल0आई0सी0मुख्यालय पर हुई 50 लाख की लूट के मामले में नगर कोतवाली के मोहल्ला सत्यप्रेमीनगर निवासी महेन्द्र कुमार शुक्ला को 6 दिनों तक बेजा पुलिस हिरासत में रखकर उनसे दो लाख रुपये की मांग की गयी और न देने पर उन पर जुल्म तोड़े गए। भुक्तभोगी महेन्द्र कुमार शुक्ला ने इस जुल्म के खिलाफ कानून का दरवाजा खटखटाया। पहले सी0जे0एम0की अदालत में, जहाॅ से उसे इंसाफ नही मिला तो वह उच्च न्यायालय की शरण मंे गया। उच्च न्यायालय ने महेन्द्र शुक्ला की याचिका पर सुनवायी करते हुए सी0जे0एम0 को निर्देश देकर तत्कालीन एस0बी0शिरोडकर (वर्तमान में डी0आई0जी0) समेत 11 पुलिस कर्मियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करके विवेचना करने को कहा। जिसके अनुपालन में स्थानीय नगर कोतवाली में विगत 4 अक्टूबर को सी0जे0एम0के आदेश का पालन करते हुए मुकदमा दर्ज कर लिया गया।
इससे पूर्व वर्ष 2009 में थाना जहांगीराबाद अंतर्गत एक पेट्रोल पम्प स्वामी व पूर्व विधायक शिव करन सिंह के मुनीम राजकुमार वर्मा को भी पुलिस ने पूछताछ के दौरान कई दिनों तक बेजा हिरासत में रखकर और कुबुलवाने के बहाने उस पर हर तरह के जुल्म कर डाले राजकुमार वर्मा की मृत्यु पुलिस हिरासत मंे हो गयी। मृतक अवस्था मंे राजकुमार को लेकर पुलिस घबरायी हुई जिला अस्पताल पहुॅची और डाक्टर की ठुड्डी में हाथ डालकर उससे यह अनुरोध किया कि इस मरे हुए व्यक्ति केा अस्पताल में भर्ती कर लें और उसके बाद उसे मरा दिखा दे। डाक्टर ने मामले की गम्भीरता को समझते हुए पुलिस के इस निवेदन को ठुकरा दिया। यह मामला विधान सभा की चैखट तथा मानवाधिकार विभाग भारत सरकार तक पहुॅचा परन्तु पुलिस का कोई बाल बीका नही हुआ।
विगत माह 19 सितम्बर को थाना रामनगर पुलिस द्वारा स्थानीय अधिवक्ता राकेश कान्त मिश्रा के घर हुई चोरी की शिकायत अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर इसी थाने के ग्राम मनौरा निवासी उपेन्द्र कुमार वर्मा (जिनसे वादी की पुरानी रंजिश थी) समेत 5 व्यक्तियो को पकड़कर लाकअप में बन्द कर दिया और उनके उत्पीड़न का कार्य प्रारम्भ किया। 5 दिनों तक यह काम चलता रहा परन्तु उपेन्द्र कुमार वर्मा के भाई द्वारा न्यायालय में जब तहरीर देकर यह अवगत कराया गया कि पुलिस विगत 5 दिनों से 5 व्यक्तियों को बेजा हिरासत में रखे हुए है तो अदालत की बाजपुरसी पर पुलिस ने पॅाचों व्यक्तियों का चालान धारा 457, 380 भा0द0वि0 में भेज दिया।
इससे पूर्व जनपद वर्ष 2003 में थाना जैदपुर लाकअप मंे एक व्यक्ति को पुलिस ने पीट पीटकर मार डाला। इस मामले में भी थानाध्यक्ष जगपत वर्मा न केवल निलम्बित किए गए बल्कि उनके विरुद्ध हत्या का मुकदमा भी दर्ज हुआ। परन्तु साक्ष्य के अभाव में मुकदमा छुट गया। इससे और पहले वर्ष 2000 में थाना रा0स0घाट में बेजा हिरासत के दौरान एक वृद्ध दलित समोदीन को भी पुलिस ने पीट पीट कर मार डाला। वह मामला भी दब गया और पुलिस आजाद घूमती रही।
पुलिस द्वारा थाना या कोतवाली में कानून की हदे पार करते हुए लगभग रोज अभियुक्तों को या निर्दोषों को पकड़ पकड़ लाया जाता है और उनका उत्पीड़न करके उनसे मुॅह मांगी रकम का तकाजा किया जाता है। यदि रकम मिल जाती है तो अभियुक्त छुट जाता है वरना उसका चालान न्यायालय भेज दिया जाता है। अब यह निर्भर व्यक्ति के शारीरिक सामथ्र्य पर करता है कि वह कितने जुल्म बर्दाश्त करने की क्षमता रखता है।
पुलिस के इस मुजरिमाना व बेरहम कृत्य पर अव्वल तो लोग आवाज उठाने की हिम्मत नही करते और यदि कोई करता है तो साक्ष्य नही जुटा पाता है। इस कारण अदालत से पुलिस के खिलाफ मुकदमें अक्सर छूट जाते है। यही कारण है कि पुलिस की निरंकुशता बढ़ती जा रही है, जिसे वह यह कहकर कायम रखना भी चाहती है कि अभियुक्त से प्रेम मोहब्बत से यदि पूछ ताछ की गयी तो भला कौन अभियुक्त सच सच बताएगा और अपराधों का खुलासा वह किस प्रकार कर पाएंगे।
तारिक खान
1 टिप्पणी:
यह हमारी पुलिस इन छोटे मोटे चोरो को पकड कर मारती हे, क्यो नही उन बडे चोरो को पकड कर मारती जो देश को खा रहे हे, चारा ही चट कर जाते हे, अब एक गरीब तो जब काम नही मिलेगा तो बच्चो का पेट भरने के लिये ओर क्या करेगा??
एक टिप्पणी भेजें