आरएसएस लगातार प्रचार करता रहता है कि वह एक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन है और उसका राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी के श्रेष्ठ नेता जो ज्यादातर संघ के प्रचारक हें यह कहते नहीं थकते हें कि भाजपा एक स्वतन्त्र राजनीतिक संगठन है। यह एक ऐसा सफ़ेद झूठ है ( और ऐसे झूठ सिर्फ आर एस एस से जुड़े लोग ही बोल सकते हैं) जिसे पूरा देश जानता है। स्वयं आर एस एस के दस्तावेजों में मौजूद निम्नलिखित सच्चाइयों से भी यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि यह देश की राजनीति को अपने शिकंजे में लेना चाहता है।
आर एस एस के दार्शनिक सलाहकार ने राजनीति को संचालित करने की अपनी योजना बनाई। योजना की व्याख्या करते हुए उन्होंने 5 मार्च 1960 को इंदौर आर एस एस के विभागीय व उच्च स्तरीय कार्यकर्ताओं के एक अखिल भारतीय सम्मलेन में बताया कि:
हमें यह भी मालूम है, कि अपने कुछ स्वयं सेवक राजनीति में काम करते हैं। वहां उन्हें उस कार्य की आवश्यकताओं के अनुरूप जलसे, जुलुस आदि करने पड़ते हैं, नारे लगाने होते हैं। इन सब बातों का हमारे काम में कोई स्थान नहीं है। परन्तु नाटक के पात्र के समान जो भूमिका ली उसका योग्यता से निर्वाह तो करना ही चाहिए। पर इस नट की भूमिका से आगे बढ़कर काम करते-करते कभी-कभी लोगों के मन में उसका अभिनिवेश उत्पन्न हो जाता है । यहाँ तक कि फिर इस कार्य में आने के लिए वे अपात्र सिद्ध हो जाते हैं। यह तो ठीक नहीं है। अत: हमें अपने संयमपूर्ण कार्य की दृढ़ता का भलीभांति ध्यान रखना होगा। आवश्यकता हुई तो हम आकाश तक भी उछल कूद कर सकते हैं, परन्तु दक्ष दिया तो दक्ष में ही खड़े होंगे।
आर एस एस राजनीति में किस तरह के स्वयंसेवक भेजता है और उनसे क्या उपेक्षा करता है इसका ब्यौरा स्वयं गोलवलकर ने 16 मार्च 1954 को अपने भाषण में इन शब्दों में दिया:
यदि हमने कहा कि हम संगठन के अंग हैं, हम उसका अनुशासन मानते हैं तो फिर सिलेक्टिवनेस ( पसंद ) का जीवन में कोई स्थान न हो। जो कहा वही करना। कबड्डी कहा तो कबड्डी; बैठक कहा, तो बैठक जैसे अपने कुछ मित्रों से कहा कि राजनीति में जाकर काम करो, तो उसका अर्थ यह नहीं कि उन्हें इसके लिए बड़ी रुचि या प्रेरणा है। वे राजनितिक कार्य के लिए इस प्रकार नहीं तड़पते, जैसे बिना पानी के मछली। यदि उन्हें राजनीति से वापिस आने को कहा तो भी उसमें कोई आपत्ति नहीं। अपने विवेक की कोई जरूरत नहीं। जो काम सौंपा गया उसकी योग्यता प्राप्त करेंगे ऐसा निश्चय कर के यह लोग चलते हैं।
गोलवलकर के ये वक्तव्य इस सच्चाई को अच्छी तरह जगजाहिर कर देते हैं कि आर एस एस कितना गैर राजनीतिक संगठन है ! इस वक्तव्य से यह सच्चाई भी उभर कर सामने आती है कि आर एस एस राजनीति पर अपना प्रभुत्व ज़माने के लिए किस किस तरह के षड्यंत्र करता है और हथकंडे अपनाता है।
साभार आरएसएस को पहचानें किताब से
आर एस एस के दार्शनिक सलाहकार ने राजनीति को संचालित करने की अपनी योजना बनाई। योजना की व्याख्या करते हुए उन्होंने 5 मार्च 1960 को इंदौर आर एस एस के विभागीय व उच्च स्तरीय कार्यकर्ताओं के एक अखिल भारतीय सम्मलेन में बताया कि:
हमें यह भी मालूम है, कि अपने कुछ स्वयं सेवक राजनीति में काम करते हैं। वहां उन्हें उस कार्य की आवश्यकताओं के अनुरूप जलसे, जुलुस आदि करने पड़ते हैं, नारे लगाने होते हैं। इन सब बातों का हमारे काम में कोई स्थान नहीं है। परन्तु नाटक के पात्र के समान जो भूमिका ली उसका योग्यता से निर्वाह तो करना ही चाहिए। पर इस नट की भूमिका से आगे बढ़कर काम करते-करते कभी-कभी लोगों के मन में उसका अभिनिवेश उत्पन्न हो जाता है । यहाँ तक कि फिर इस कार्य में आने के लिए वे अपात्र सिद्ध हो जाते हैं। यह तो ठीक नहीं है। अत: हमें अपने संयमपूर्ण कार्य की दृढ़ता का भलीभांति ध्यान रखना होगा। आवश्यकता हुई तो हम आकाश तक भी उछल कूद कर सकते हैं, परन्तु दक्ष दिया तो दक्ष में ही खड़े होंगे।
आर एस एस राजनीति में किस तरह के स्वयंसेवक भेजता है और उनसे क्या उपेक्षा करता है इसका ब्यौरा स्वयं गोलवलकर ने 16 मार्च 1954 को अपने भाषण में इन शब्दों में दिया:
यदि हमने कहा कि हम संगठन के अंग हैं, हम उसका अनुशासन मानते हैं तो फिर सिलेक्टिवनेस ( पसंद ) का जीवन में कोई स्थान न हो। जो कहा वही करना। कबड्डी कहा तो कबड्डी; बैठक कहा, तो बैठक जैसे अपने कुछ मित्रों से कहा कि राजनीति में जाकर काम करो, तो उसका अर्थ यह नहीं कि उन्हें इसके लिए बड़ी रुचि या प्रेरणा है। वे राजनितिक कार्य के लिए इस प्रकार नहीं तड़पते, जैसे बिना पानी के मछली। यदि उन्हें राजनीति से वापिस आने को कहा तो भी उसमें कोई आपत्ति नहीं। अपने विवेक की कोई जरूरत नहीं। जो काम सौंपा गया उसकी योग्यता प्राप्त करेंगे ऐसा निश्चय कर के यह लोग चलते हैं।
गोलवलकर के ये वक्तव्य इस सच्चाई को अच्छी तरह जगजाहिर कर देते हैं कि आर एस एस कितना गैर राजनीतिक संगठन है ! इस वक्तव्य से यह सच्चाई भी उभर कर सामने आती है कि आर एस एस राजनीति पर अपना प्रभुत्व ज़माने के लिए किस किस तरह के षड्यंत्र करता है और हथकंडे अपनाता है।
साभार आरएसएस को पहचानें किताब से
1 टिप्पणी:
अगर दंगे भड़काने वाले , लोगों की भावनाओं को भड़काने वाले, ओछी और मनगढ़त बाते करने वाले , और आतंकवादी हरकत में लिप्त होने वाले लोग के समूह को सांस्कृतिक संगठन कहते हैं तो ये सांस्कृतिक संगठन हैं
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