भाई रे भाई बड़ी महंगाई
मार गई सबको महंगाई
सभी कीर्तन सा करते हैं
सब ही रटते हैं महंगाई
मार गई सबको महंगाई
सभी कीर्तन सा करते हैं
सब ही रटते हैं महंगाई
गैस चढ़ गई , तेल जल गया
बिजली दर कौंधी आँखों में
मेरी रसोई भी कांप रही है
देख के तेरे रंग महंगाई
बीबी खटती मैं भी खटता
लेकिन खर्च नहीं ये पटता
निसदिन थाली खाली होती
अरे तेरे ही कारण महंगाई
अब माँ-बाबा चुप रहते हैं
कहते डरते लाओ दवाई
बीबी नहीं मांगती अब कुछ
खुशियाँ सब छीनी महंगाई
अब बच्चे भी समझ गए हैं
तेरे सदमे मेरे पढ़कर चहेरे
मरने से भी डर लगता है
कफ़न पे चढ़ी हुई महंगाई
त्योहारों के रंग फीके हैं
सावन आंसू से भीगे हैं
रिश्तों में भी रंग नहीं है
अरे तेरे ही कारण महंगाई
सुरसा जैसी बढती जाती
जन जन की आशाएं खाती
मीठे से मधुमेह जैसा है
अरे तेरे ही कारण महंगाई
रहम करो अरे सत्ता वालो
काबू में रखो महंगाई
बनकर मौत सा पहरा देती
भाई रे भाई बड़ी महंगाई
केदारनाथ"कादर"
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