सोमवार, 29 नवंबर 2010

आरएसएस का आदरभाव ! शहीदों के प्रति....?


कोई भी हिन्दुस्तानी जो स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को सम्मान देता है उसके लिए यह कितने दुःख और कष्ट की बात हो सकती है कि आरएसएस अंग्रेजों के विरुद्ध प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों को अच्छी निगाह से नहीं देखता था। श्री गुरूजी ने शहीदी परंपरा पर अपने मौलिक विचारों को इस तरह रखा है:

नि:संदेह ऐसे व्यक्ति जो अपने आप को बलिदान कर देते हैं और उनका जीवन दर्शन प्रमुखत: पौरुषपूर्ण है वे सर्वसाधारण व्यक्तियों से, जो कि चुपचाप भाग्य के आगे समर्पण कर देते हैं और भयभीत और अकर्मण्य बने रहते हैं, बहुत ऊँचे हैं फिर भी हमने ऐसे व्यक्तियों को समाज के सामने आदर्श के रूप में नहीं रखा है हमने बलिदान को महानता का सर्वोच्च बिंदु, जिसकी मनुष्य आकांक्षा करे, नहीं माना है क्योंकि, अंतत: वे अपना उद्देश्य प्राप्त करने में असफल हुए और असफलता का अर्थ है कि उनमें कोई गंभीर त्रुटी थी

यक़ीनन यही कारण है कि आरएसएस के इतिहास में उनका एक भी कार्यकर्ता अंग्रेज शासकों के खिलाफ संघर्ष करते हुए शहीद नहीं हुआ।

-आरआरएस को पहचानें किताब से साभार

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नाइस!

shyam gupta ने कहा…

-----यह एक स्पष्ट व व्यवहारिक विचार है----राणा प्रताप व शिवाजी में आप किसे अधिक सफ़ल व देश सेवक मानेंगे.

bjp_rajendra_adv ने कहा…

लोगों की याद दास्त कम होने से,वे लोग जो देश का बुरा कर चुके , लोगों का बुरा कर चुके और भ्रष्टाचार और घोटालों में अग्रणी रहे .., बार बार चुन कर सत्ता और सांसद में पहुचते रहे हैं ...!! कहीं न कहीं इसे जन दोष भी माना जाएगा ..! इसे कानून की कमजोरी भी माना जाएगा !! देश के विभाजन के बाद कांग्रेस सत्ता में आती है ...

रत्नेश सिंह ने कहा…

suman ji sayad aapko kitabo se prem hain hakikatse nahi kabhi aap rss ki sakha me jaiye aur use samjhne ka prayas kijiye rss ko bhal ya bura kahan bada aasan hain par rss ko samjhana muskil aap agar 1 mahine rss ki sakha me jaye to aap badal jaiyega ye mera challange hain

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