लोकसंघर्ष पत्रिका
कभी सोचा भी है ऐ नज़्मे कोहना के खुदावंदो तुम्हारा हश्र क्या होगा जो ये आलम कभी बदला
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कभी सोचा भी है ऐ नज़्मे कोहना के खुदावंदो
तुम्हारा हश्र क्या होगा जो ये आलम कभी बदला
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