नम्रता उदारता का पाठ, अब पढ़ाए कौन,
उग्रवादी छिपे जहाँ, सन्तों के वेश में।
अश्लीलता के गान नौजवान गा रहा है, कपड़ों में छिपे अंग की गाथा सुना रहा है।
कौन राष्ट्र का हनन कर रहा,
माता के अंग काट रहा।
भारत के मधुर रक्त को,
कौन राक्षस चाट रहा।
उग्रवादी छिपे जहाँ, सन्तों के वेश में।
अश्लीलता के गान नौजवान गा रहा है, कपड़ों में छिपे अंग की गाथा सुना रहा है।
कौन राष्ट्र का हनन कर रहा,
माता के अंग काट रहा।
भारत के मधुर रक्त को,
कौन राक्षस चाट रहा।
उपर्युक्त के कुछ उदाहरण डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ के नव्यतम कविता संग्रह ‘सुख का सूरज’ से हैं। वे साहित्य के डाॅक्टर नहीं अपितु स्वास्थ्य के डाक्टर हैं। उत्तराखण्ड के होकर भी वे अपनी इन कविताओं से आज पूरे देश की धरोहर बन गए हैं। वे एक साथ पुराने और नये विचारों के बेजोड़ संगम हैं। यदि एक ओर वे प्रिंट मीडिया से जुड़े हैं तो दूसरी ओर ‘ब्लॉग’ की दुनिया से अपने को अभिव्यक्ति देकर इन्टरनेट द्वारा पाठकों से जुड़े हुए हैं। प्रौढ़ावस्था के होकर भी वे मन, बुद्धि और विचार से युवा हैं। दरअसल सीखने की कोई उम्र नहीं होती। आदमी जीवन पर्यन्त सीखता ही रहता है। ऐसे चैखेति के सिद्धांत में विश्वास रखते हुए डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ ने सन् 2008 में मात्र 90 रचनाओं की थाती लेकर 2011 तक आते-आते 900 कविताएँ रचकर ‘सुख का सूरज’ के माध्यम से अपने पाठकों के हाथ में सचमुच सुख की एक सरस् गठरी जरूर थमा दी है। जो उनके पाठकों के साथ उठते-बैठते और चलते हुए उनके साथ यात्रा करते हुए उन्हें बराबर आगे बढ़ने की प्रेरणा देकर, अपने समय की उन्हें तीक्ष्ण पहचान करता हुआ अनवरत सावधान कराता है। हम मयंक की कविताओं को समय से सावधान रहने की कविताएँ भी कह सकते हैं। तभी तो वे आधुनिक समाज की धार्मिक बिडम्बना को पहचानते हुए साधु वेशधारी उग्रवादियों पर तीक्ष्ण टिप्पणी करते हैं। आज के नौजवान का पथ विभ्रष्ट रूप भी उनकी आँखों से नहीं छिपता और गुप्तांगों के वर्णन में रुचि रखने वाले युवा पर भी वे व्यंग्य करते हैं। व्यक्ति के विचारों और सामाजिक विदू्रपताओं को चित्रित करने के साथ-साथ वे एक राष्ट्रवादी तेवर के भी कवि हैं। तभी वे कहते हैं- भारत का विभाजन कौन करवा रहा है? वे इसका उत्तर न देकर अप्रत्यक्ष रूप से जो शक्तियाँ जिम्मेदार हैं उन पर तीखा प्रहार करते हैं। वे सम्बन्ध जो व्यापार बन रहे हैं और अनुबन्ध बाजार वाद में तब्दील हो रहे है उन पर टिप्पणी करते हैं-
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गए हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गए हैं।।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गए हैं।।
निष्कर्षतः ‘मयंक’ गीतकार हैं। जो राग, लय, ताल और सुर में विश्वास रखते हैं। वे पारम्परिक धुनों के साथ समय के प्रचलित तर्जों पर और कतिपय अपनी खोज की नवीन संगीत के तर्ज पर गीतों की रचना करने वाले एक खूसूरत और यादगार गीतों के गीतकार कहे जा सकते हैं।
-विनयदास
मो0: 9935323168 (समीक्षक)
8 टिप्पणियां:
समीक्षा के लिए आदरणीय विनयदास जी का आभार!
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लोकसंघर्ण के मॉड्रेटर भाई रणधीर सिंह सुमन का बहुत-बहुत धन्यवाद!
उम्दा समीक्षा...
एक सारगर्भित और सटीक समीक्षा |
आशा
अच्छी समीक्षा , समीक्षक और रचनाकार दोनों को बधाई.
बढ़िया समीक्षा ...
अच्छी समीक्षा ,बहुत सच्ची और गहरी बात .....!
आपकी समीक्षा से सहमत है.. शास्त्री जी की रचनाये सुन्दर तालबद्ध और गेय होती है .. सामयिक विषयों पर और बच्चों के लिए व देश प्रेम मे रची बसी शास्त्री जी की रचनाये बहुत प्रशंसनीय हैं .. आभार ...
बेहद प्रशंसनीय , सारगर्भित और सटीक समीक्षा की है…………आभार् और शास्त्री जी को बधाई।
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