किसानो की जमीनों का बढ़ता अधिग्रहण इसी का धोतक हैं |
हम मेहनतकश ,जगवालों से ,
जब अपना हिस्सा मांगेगे ,
एक खेत नही ,एक देश नही ,
हम सारी दुनिया मांगेगे |
यहाँ सागर -सागर मोती है ,
यहाँ पर्वत- पर्वत हीरे है ,
य़े सारा माल हमारा है ,
हम सारा खजाना मांगेगे |
जब अपना हिस्सा मांगेगे ,
एक खेत नही ,एक देश नही ,
हम सारी दुनिया मांगेगे |
यहाँ सागर -सागर मोती है ,
यहाँ पर्वत- पर्वत हीरे है ,
य़े सारा माल हमारा है ,
हम सारा खजाना मांगेगे |
ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का एक बहुचर्चित कारण डलहौजी की "हड़प - नीति "को बताया जाता रहा है |सभी जानते है कि ,इस नीति के तहत उसने कई देशी रियासतों को हडप लिया था |उसने दत्तक पुत्र के गद्दी -नशीन होने के अधिकार को समाप्त कर दिया था| ऐसा नही है कि रियासतों को हडपने और ब्रिटिश राज्य में मिलाने का काम केवल डलहौजी ने किया था| सही बात तो यह है ब्रिटिश राज्य की शुरुआत ही रियासतों को खत्म करके उसे ब्रिटिश राज्य का आधिपत्य क्षेत्र बनाने के रूप में हुई थी| फिर ज्यों-ज्यों ब्रिटिश राज्य का विस्तार होता गया, त्यों-त्यों देशी रियासतों का ब्रिटिश हुक्मरानों द्वारा हडपना भी जारी रहा| उदाहरण स्वरूप डलहौजी के आने के कुछ साल पहले 1839 में मांडवी और 1840 में कोलाबा और जालोन तथा 1842 में सूरत की रियासतों को कम्पनी के गवर्नर जनरल ने ब्रिटिश राज्य में मिला लिया था |डलहौजी का कार्यकाल जरा ज्यादा आक्रामक था |उसने तो आते ही यह बात स्पष्ट कर दी थी की वह ब्रिटिश राज्य का इस देश के समस्त भू-भाग पर प्रत्यक्ष अधिकार चाहता है |
वह किसी भी देशी रियासत राजे -रजवाडो ,नबाबो ,बादशाहों को इस देश में नही रहने देना चाहता था |कम्पनी के गवर्नर जनरल के रूप में डलहौजी का कार्यकाल 1848 से शुरू हुआ |नि: संदेह ,भारत में अंग्रेजी साम्राज्य को बढ़ाने में उसका योगदान भी बडा था |वह कम्पनी के चंद महत्वपूर्ण गवर्नर जरनलो में से एक था |उसने भारत की किसी भी रियासत को ब्रिटिश राज्य में विलय करने का एक भी अवसर जाने नही दिया |अपनी हडप - नीति के तहत उसने रियासतों में दत्तक पुत्र के अधिकार को मंसूख कर के उन्हें ब्रिटिश राज्य का हिस्सा बना लिया |इसके अंतर्गत उसने सतारा को 1848 में ,जैतपुर और सम्भलपुर को 1849 में ,वघाटको 1850 में ,अदेपुर को 1852 में झाँसी को 1853 में और नागपुर को 1854 में हडप कर कम्पनी राज्य का हिस्सा बना लिया |इसके अलावा हैदराबाद के वराडक्षेत्र को भी १८५३ में मिला लिया |इसे उसने निजाम हैदराबाद पर ब्रिटिश राज्य की बकाया रकम के एवज में ले लिया |1856 में अवध क्षेत्र का ब्रिटिश राज्य में विलय कर लिया| डलहौजी की विलय या हडप - नीति से ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार तेज़ी के साथ बढ़ा |फिर उसी शासन काल में कम्पनी ने पंजाब का अभी तक अविजित हिस्सा भी जीतकर ब्रिटिश राज्य में मिला लिया था |इसी के साथ अब हिन्दुस्तान के समूचे भू-भाग पर कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया था |डलहौजी के शासन काल में ईस्ट इंडिया कम्पनी के राज का न केवल विस्तार किया गया बल्कि सैन्य ताकत में खासकर सिक्ख रेजीमेंट ,गोरखा रेजीमेंट आदि के रूप में वृद्धि की गयी |शिक्षा के सम्बन्ध में प्राथमिक स्तर से उच्च स्तर की शिक्षा के लिए "वुड्स डिस्पैच "के नाम से सुधार भी उसी के शासन काल में लागू किये गये |
डलहौजी के शासन काल के दौरान 1853 में रेलवे का आरम्भ किया गया |पहली रेल लाइन बम्बई से थाणे तक बिछायी गयी |बिजली और टेलीग्राफ का आरम्भ भी उसी समय (1852 से )किया गया |इसके अलावा डाक सुधार तथा सार्वजनिक निर्माण में भी भारी सुधार तथा विस्तार किया गया| बताने की जरूरत नही कि ,ये सारे काम ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और उसके हितो के अनुसार किये गये |1857 -58 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत की फ़ौज द्वारा हिन्दुस्तानियों के दमन में भी ये आधुनिक विकास ब्रिटिश राज के हाथ के अत्यन्त सक्षम हथियार बने |डलहौजी और उसकी हडप - नीति तथा ब्रिटिश राज्य द्वारा किये जा रहे ढाचागत व् अन्य सुधार परस्पर सम्बन्धित थे |उदाहरण स्वरूप , सतारा और नागपुर की रियासतों के विलय का एक कारण यह भी था कि , ये दोनों रियासते ,बम्बई _मद्रास तथा मद्रास -कलकत्ता के बीच संचार -व्यवस्था के निर्माण -विस्तार में रुकावट थी |कम्पनी के व्यवसायिक हितो के लिए डलहौजी और उसके पूर्ववर्ती गवर्नर जनरलों द्वारा उठाये गये कामो में हिन्दुस्तानी रियासतों का जबरिया अधिग्रहण भी शामिल था |यह रियासतों की जमीन का ,समस्त सम्पदा का कम्पनी द्वारा किया जा रहा अधिग्रहण भी था |
1857 के महासमर के बाद 1858 से ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन समाप्त हो गया |उसकी जगह ब्रिटेन की समस्त बड़ी कम्पनियों की घुसपैठ और उनके लाभ को विस्तार देने वाली ब्रिटिश सम्राज्ञी के राज्य की स्थापना हो गयी |इसने रियासतों कोअपने ब्रिटिश राज्य के अधीन करके उन्हें हडपने का काम तो रोक दिया ,परन्तु जरूरतों के मुताबिक़ जमीन हडपने का काम जारी रखा |1894 का भूमि अधिग्रहण का कानून इसीलिए लाया गया था |उसमे आ रही बाधाओं ,विरोधो को दूर करने के लिए बनाया गया था | आप जानते होंगे कि देश की 1947 से बनी सत्ता -सरकार ने ब्रिटिश राज द्वारा हिन्दुस्तान को लूटने -पाटने के लिए बनाये गये तमाम कानूनों की तरह ही 1894 के कानून को भी आज तक लागू किया हुआ है |कोई भी समझ सकता है कि ब्रिटिश राज्य द्वारा 1894 का भूमि अधिग्रहण कानून आदिवासियों ,ग्रामवासियों की जमीने हडप लेने का कानून था |डलहौजी की "हडप - नीति "का नया संस्करण था |
फिर अब देश में 10-15 साल से तेज़ी से बढाये जाते रहे कृषि भूमि का अधिग्रहण मुख्यत: देशी -विदेशी कम्पनियों के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष हितो में किया जा रहा अधिग्रहण है |यह अधिग्रहण भी उसी 1894 के कानून के अंतर्गत किया जा रहा है |अत :वर्तमान दौर के अधिग्रहण को भी कम्पनी हित में डलहौजी की हडप - नीति से अलग नही किया जा सकता |अपने सारतत्व में यह देश की केन्द्रीय व् प्रांतीय सरकारों द्वारा "हडप - नीति " के वर्तमान दौर का परिलक्षण है |
फिर याद रखना चाहिए कि वर्तमान दौर का भूमि अधिग्रहण भी साम्राज्यी विश्व व्यवस्था के निर्देशों के अनुसार चलाया जा रहा है |इस देश में ही नही बल्कि दुनिया के तमाम पिछड़े व् विकासशील देशो में भी चलाया जा रहा है |यह देश की चोटी की कम्पनियों के साथ ईस्ट इंडिया कम्पनी से कई गुना ताकतवर ,बहुराष्ट्रीय औद्योगिक , वाणिज्यिक एवं वित्तीय कम्पनियों के हितो को उनके निजी लाभ ,मालिकाने को विस्तार देने के लिए किया जा रहा है |देश की केन्द्रीय व् प्रांतीय सरकारों द्वारा यह काम एक दम नग्न रूप में किया जाता रहा है |सिंगुर ,नंदीग्राम ,टप्पल ,जैतापुर ,भट्टा परसौल ......तथा देश के विभिन्न प्रान्तों ,क्षेत्रो में अधिग्रहण को किसानो द्वारा किये जा रहे विरोधो के वावजूद यह हडप - नीति लगातार जारी है |
धनाढ्य कम्पनियों और उनके उच्च स्तरीय सेवको के हितो की पूर्ति के लिए विषिष्ट आर्थिक क्षेत्र ,टाउनशिप ,तथा -चौड़ी -चौड़ी सडको का निर्माण किया जा रहा है |अगर डलहौजी की १८५७ की "हडप नीति "के विरुद्ध राजे -रजवाड़े खड़े हो सकते थे ,तो आज किसान भी खड़े हो सकते है और खड़ा होना चाहिए |उनके संघर्ष कंही ज्यादा न्याय संगत है |कयोकि किसानो का संघर्ष अपने राज्य के लिए नही ,बल्कि पुश्त दर पुश्त से चलती आ रही जीविका को बचाने के लिए है |अपने जीवन की आवश्यक आवश्यकताओ के लिए है |इसलिए उनके विरोध को आज कई परिस्थितियों के अनुसार देश -प्रदेश स्तर पर संगठित किये जाने की आवश्यकता है |भूमि अधिग्रहण की वर्तमान नीति व् उसके क्रियान्वयन के विरोध के साथ वर्तमान विश्व व्यवस्था की नीतियों ,सम्बन्धो के विरोध को खड़ा किये जाने की आवयश्कता है |उसके लिए जनसाधारण को एकताबद्ध किये जाने की आवश्यकता है |
...................आज इस गीत के साथ पूरे भारत के किसान बुलाते है लोगो को .............................
आज घोषणा करने का दिन
हम भी है इंसान |
हमे चाहिए बेहतर दुनिया
करते है ऐलान |
कोई कैसी भी दासता
हमे नही स्वीकार |
मुक्ति हमारा अमिट स्वप्न है
हमे चाहिए बेहतर दुनिया
करते है ऐलान |
कोई कैसी भी दासता
हमे नही स्वीकार |
मुक्ति हमारा अमिट स्वप्न है
मुक्ति हमारा गान
-सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672
11 टिप्पणियां:
मन को आंदोलित करने वाला लेख....
गरीबों और असहायों पर अत्याचार करना ही शायद पुलिस का काम है | गोरे अंग्रेजों से कहीं अधिक घातक ये काले अंग्रेज हैं | किसानों की ज़मीन का जबरदस्ती अधिग्रहण किया जा रहा है , उन्हें गोलियों से भूना जा रहा है |
पैसेवालों , माफियाओं और नेताओं के हाथों की कठपुतली है सरकार |अपराधी और दलालों की आवभगत होती है थानों पर , पीड़ित मजबूरों की मामूली रिपोर्ट तक नहीं लिखी जाती , उलटे उनसे ही धन उगाही की जाती है और घूंस न दे पाने पर झूठे मुक़दमे लगाकर उन्हें ही जेल भेज दिया जाता है | ऊपर तक फ़रियाद करने पर भी गरीब की कोई सुनवाई नहीं होती |
क्या आज की शासन व्यवस्था अंग्रेजों से भी बदतर नहीं है ?
बेहतरीन जानकारी दी आपने... गुलामी की निशानी, इस तरह के सभी कानूनों को तत्काल प्रभाव से समाप्त क्या जाना चाहिए...
ऊपर चित्रों में जैसे दृश्य दिखाए गए है उनसे भी बुरे दृश्य सिंगुर में भी हुए थे उसमे भी किसानों,मजदूरों की हिमायत का ढोंग करने वाली पार्टी के काडरों जो हिंसा का नंगा खेल खेला था कभी उस पर भी प्रकाश डालिए |
डिस्क्लेमर- मैं भी सरकार के वर्तमान भूमि अधिग्रहण के कानून व तौर तरीको के एकदम खिलाफ हूँ पर जब किसानों पर अत्याचार की बाते चलती है तो वे निष्पक्ष होनी चाहिए एसा नहीं कि- दूसरों की तो दिखाई दे और अपनी पसंद की पार्टी के कारनामे दिखाई ही नहीं दे |
निस्संदेह अपनी हुकूमत वही कर रही है जो गोरे आका सिखा कर गए हैं. अत्याचार का वही रूप, दमन का वही सिलसिला, वही लूट, वही लाशों का बाज़ार..!!
आपने बहुत अच्छा लेख पेश किया, आँखें खुल गईं...सिर्फ हमारी, सरकारी आँखें अब भी बंद हैं.
बेहतर आलेख...
जानदार और शानदार प्रस्तुति....... इस अनूठेपन को बनाए रखिए।
हम मेहनतकश ,जगवालों से ,
जब अपना हिस्सा मांगेगे ,
एक खेत नही ,एक देश नही ,
हम सारी दुनिया मांगेगे |
शानदार हैं.
सुनील दत्ता जी ने ऐतिहासिक जानकारी के साथ सत्य को उद्घाटित किया है इससे लोगों को सजग हो कर किसानों के हक में खड़ा होना और उनके संघर्ष को सहयोग प्रदान करना चाहिए.
इस लेख को पढने के बाद यह एहसास हुआ कि आज भी ब्रिटिश हुकूमत के अंदाज में हमारे देश कि हुकूमत भी उसी तरह चल रही है | इस देश में आम आदमी सत्ता और सरकार के लिए
कुछ भी अहमियत नही रखता है -इस लिए जब चाहती है तब गोली चलवा देती है कितने
मासूमो किजान ले लेती है आज इस देश कि सरकार पूजीपतियो के हाथो में बिक चुकी है ,
इस देश में शासन .सत्ता और तिजोरियो का मिल्न पर्व चल रहा है ....लेख के लिए सुनील जी आप को साधुवाद ...
desh se gore to chale gaye lekin unke kanoon jana abhi baaki hai....
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