शनिवार, 16 जुलाई 2011

नव धनाढ्य उच्च स्तरीय धर्मगुरूओ ,सत्तासीन नेताओं और व्यवस्था के मदारियों से जनसाधारण को उम्मीद नही रखनी चाहिए

7 जून के हिन्दी 'दैनिक हिन्दुस्तान ' के पहले पन्ने पर एक छोटी सी खबर छपी है | छतीसगढ़ के दुर्ग जिले के कलेक्ट्रेट परिसर में योग गुरु रामदेव की गिरफ्तारी के विरोध में उनके समर्थको ने सत्याग्रही अनशन किया था | उसमे दुर्ग जिले का एक किसान - सुखराम भी शामिल था |सत्याग्रह के दौरान ही सुखराम की तबीयत अचानक खराब हो गयी |अस्पताल ले जाने पर उसे मृत घोषित कर दिया गया |उसके बैग में कीटनाशक की शीशी तथा एक पत्र मिला | उस पत्र में सुखराम ने रामदेव जी की गिरफ्तारी पर दुःख जताया है ,जिसके साथ ही सुखराम ने राज्य में पूंजीपतियों के लिए किये जा रहे कृषि भूमि के अधिग्रहण तथा भूमिहीन हुए और हो रहे लोगो पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है | पत्र में सुखराम ने खुद के भूमिहीन होने के बाद दर - दर की ठोकरे खाने की गहरी पीड़ा के चलते आत्महत्या के रास्ते को अपनाने की विवशता बताई है |
सुखराम , रामदेव जी का भक्त भी था और किसान भी | रामदेव जी की गिरफ्तारी के दुःख के साथ उसे अपनी भूमिहीनता की स्थिति का दुःख भी था | लेकिन अपनी आत्महत्या का कारण उसने अपनी भूमिहीनता और दर - दर की ठोकर को ही बताया है | उसने अपने पत्र में काले धन पर नही बल्कि कृषि भूमि को पूंजीपतियों को दिए जाने पर चिंता प्रकट की है | यह मनोभावना केवल सुखराम की ही नही है , बल्कि एक आम किसान की है |उसमे रामदेव जी के प्रति आस्था है |भ्रष्टाचार व काले धन का बिरोध भी है | लेकिन उसकी गम्भीर चिता बुनियादी समस्यायों को लेकर है |बढती भूमिहीनता व साधनहीनता को लेकर है | लेकिन समस्या यह है कि जनसाधारण किसानो , मजदूरों तथा छोटे कारोबारियों आदि की बढती बुनियादी समस्याओं पर कंही कोई चिंता या आन्दोलन अनशन नही है | सुखराम ने अपनी आत्महत्या से पहले योग गुरु रामदेव को लिखे पत्र में कृषि भूमि के अधिग्रहण और भूमिहीनता की समस्या को प्रमुखता देकर यह सन्देश जरुर दे दिया है कि ये मुद्दे ज्यादा बुनियादी है , ज्यादा महत्त्वपूर्ण है | लेकिन सुखराम शायद यह बात नही जानते थे की यह बुनियादी मुद्दा देश - समाज के बेहतर स्थिति में रहने वाले 20-25% लोगो कि समस्या ही नही है | इसमें धर्मगुरूओ , महात्माओं व धार्मिक लीडरो के उच्च स्तरीय लोग भी शामिल है |इसलिए धन , सत्ता व समाज की ऊचाइयो पर विराजमान तबको से तथा धनाढ्य एवं उच्च स्तरीय धर्मगुरूओ व लीडरो से भी सुखराम जैसे जनसाधारण को कोई उम्मीद ही नही रखनी चाहिए |

सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672

4 टिप्‍पणियां:

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

आज मनुष्य ज़्यादा से ज़्यादा ऐश उठा लेना चाहता है और उसके लिए बहुत से लोग कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।
आपकी रचना अच्छी है।
आपसे सहमत हूं।
सुखराम शायद यह बात नही जानते थे की यह बुनियादी मुद्दा देश - समाज के बेहतर स्थिति में रहने वाले 20-25% लोगो कि समस्या ही नही है | इसमें धर्मगुरूओ , महात्माओं व धार्मिक लीडरो के उच्च स्तरीय लोग भी शामिल है

कुछ यही कहा गया है इस लेख में,
देश के दुश्मनों के लिए काम करने वाले ग़द्दारों को चुन चुन कर ढूंढने की ज़रूरत है और उन्हें सरेआम चैराहे पर फांसी दे दी जाए। चुन चुन कर ढूंढना इसलिए ज़रूरी है कि आज ये हरेक वर्ग में मौजूद हैं। इनका नाम और संस्कृति कुछ भी हो सकती है, ये किसी भी प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य हो सकते हैं। पिछले दिनों ऐसे कई आतंकवादी भी पकड़े गए हैं जो ख़ुद को राष्ट्रवादी बताते हैं और देश की जनता का धार्मिक और राजनैतिक मार्गदर्शन भी कर रहे थे। सक्रिय आतंकवादियों के अलावा एक बड़ी तादाद उन लोगों की है जो कि उन्हें मदद मुहैया कराते हैं। मदद मुहैया कराने वालों में वे लोग भी हैं जिन पर ग़द्दारी का शक आम तौर पर नहीं किया जाता।
‘लिमटी खरे‘ का लेख इसी संगीन सूरते-हाल की तरफ़ एक हल्का सा इशारा कर रहा है.
ग़द्दारों से पट गया हिंदुस्तान Ghaddar

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

सुखराम जी को श्रधान्जली.
रामदेव,आशा राम ,मोरारी बापू,बाल योगेश्वर,आनद मार्गी और ब्रह्मा कुमारी आदि ढोगी-पाखंडी लोगों को गरीब मजदूर-किसान को कुचलने हेतु ही तो व्यापारी-पूंजीपति बढाते हैं.जनता को समझाने की आवश्यकता है कि उनका बताया मार्ग अधर्म है.

रविकर ने कहा…

धन , सत्ता व समाज की ऊचाइयो पर विराजमान तबको से तथा धनाढ्य एवं उच्च स्तरीय धर्मगुरूओ व लीडरो से भी सुखराम जैसे जनसाधारण को कोई उम्मीद ही नही रखनी चाहिए |

तेरी सुनने वाला कोई नहीं --
फन्दे में अब झूल

बढ़िया दाने-खाद ले, करे सिंचाई नीक,
भगवद कृपा से हुई, उपज बहुत ही ठीक |
उपज बहुत ही ठीक, घटी जिससे मंहगाई
करे महाजन मौज, बैल पर विपदा आई |
कर रविकर अफ़सोस, बिकाई सूदे बछिया,
फन्दे में अब झूल, तरीका ढूंढा बढ़िया ||
फंदे में तू झूल --
महाजन का फंदा |
सरकार का फंदा
या मौत का फंदा ||

vijay kumar sappatti ने कहा…

सुनील जी ,
आप का एक और विचारौत्तेजक लेख पढ़ा और मन को कहीं बहुत भीतर जाकर आपकी बात चुभ गयी है . इस देश का सौभाग्य है कि इसे सुखदेव जैसे लोग मिले है . लेकिन साथ ही साथ , इस देश का दुर्भाग्य ये है कि इसे कोई सही दिशा को ले जाने वाला नेता नहीं मिला. और तो और , अब तो ये बात आ गयी है कि हम भरोसा करे भी तो किस पर .

बहुत दुःख होता है .

प्रणाम
विजय

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