मंगलवार, 2 अगस्त 2011

नवउदारवाद की प्रयोगशाला में भ्रष्टाचार भाग 4

अन्ना हजारे के भरष्टाचारियों के मांस को गिद्धोंकुत्तों को खिलाने के आह्वान से लेकर बाबा रामदेव के ऊलजलूल बयानों और राजघाट पर भाजपाइयों के नाच तक, सत्यागरह के विचार और तरीके के अवमूल्यन की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। जिस तरह से अस्सी और नब्बे के दशकों में धर्मनिरपेक्षता के पद ने चौतरफा ठोकरें खाइर्ं और अपना अर्थ गंवा दिया, वही हालत इधर सत्यागरह पद की बन गई है। अगर आजादी के संघर्ष के नेताओं की अपनी और उनके बारे में उपनिवेशवादी सत्ता की लिखतें हमारे सामने नहीं होतीं तो नई पीयिों को यही लगता कि भारत में शुरू से ही बकवादियों का बोलबाला रहा है। लोग यही मानते कि गांधी और उनका सत्यागरह भी वैसा ही तमाशा थे जैसा जंतरमंतर, रामलीला मैदान और राजघाट पर देखने को मिलता है। जिसमें कोई हिंसक ललकार दे रहा है, कोई जनाना कपड़ों में रात के अंधेरे में छिप कर भाग रहा है, कोई सत्ता की सूंघ से मतवाला होकर नाच रहा है।
हम यह नहीं कहते कि पूर्व प्रचलित पदोंअवधारणाओं और तरीकों का मौजूदा संदभोर्ं में नवोन्मेषकारी अर्थ व प्रयोग नहीं हो सकता; बल्कि वह होना चाहिए। लेकिन अपने स्वार्थवश या अपनी कमजोरियों पर परदा डालने के लिए उनका रूप बिगाड़ देना उनके आविष्कर्ताओं को लांछित करने के साथ संघर्ष की परंपरा और संवैधानिक मूल्यों के प्रति द्रत्रोह है। नवउदारवाद के हमाम में जो हालत धर्मनिरपेक्षता की हो चुकी है, वही गांधी और सत्यागरह की होने जा रही है। दिल्ली से खदेड़े जाने के अगले दिन जब रामदेव का टीवी पर हरिद्वार से प्रसारण आया तो मेरे 14 साल के बेटे ने कहा कि बाबा तो बुरी तरह डर गया है। दुनिया को स्वास्थ्य और शिक्त के नुस्ख्त्रो बांटने वाले रामदेव चार दिन के अनशन में बेहाल हो गए। नुस्ख्त्रो वे आध्यात्मिकता और राष्ट्रीय स्वाभिमान के भी बांटते हैं। लेकिन भोगियों के इस योगी में न आध्यात्मिक शिक्त का लेश निकला, न शारीरिक शिक्त का। वह द्रअसल उनमें कभी थी ही नहीं। आपको याद होगा, कुछ साल पहले उनके कारखाने में बनने वाली वस्तुओं की गुणवत्ता और काम करने वाले मजदूरों के शोषण पर सवाल उठे थे। बाबा हल्की पेंदी के तवे की तरह गरम हो गया था और अनर्गल प्रलाप करने लगा था। नवउदारवाद की प्रयोगशाला में ऐसे ही योगी लते हैं।
अपने आर्थिक सामराज्य को सम्हालने में लगे रामदेव का बयान आया है कि वे फिर आंदोलन करेंगे। कारण उनके एक प्रमुख कारकुन बालकृष्ण को सरकार फंसाने की कोशिश कर ही है! हजारे ने अपने अगस्त में प्रस्तावित सत्यागरह का रामदेव जैसा हश्र न होने देने के लिए पहले से अदालत की शरण लेने की घोषणा की है। सत्यागही अपनी मृत्यु का खुद निर्णायक और जिम्मेदार होता है। उसे जान बचा कर भागने या कोर्टकचहरी की शरण लेने की जरूरत नहीं होती।
रामदेव पर थोड़ी चचार और की जा सकती है। उन्होंने, सरकार के साथ हुए समझौते की सूचना समर्थकों को न देकर भले ही दगाबाजी न की हो, अनशन स्थल से भाग कर जरूर समर्थकों के साथ धोखा किया। दरअसल अकूत दौलत, जाहिर है जो कुछ सालों में, सदाचार की कमाई या सदाचार की कमाई के दान से नहीं जुट सकती, और शोहरत पाकर बाबा को अंघाई लगी है। वे सब कुछ को अपनी जेब में धरा मानते हैं। अपने समर्थकों को भी। यह सच्चाई मीडिया ने खुल कर नहीं बताई कि अनशन स्थल छोड़ कर भागे बाबा के प्रति अनेक लोगों की भावना ठगे जाने की थी। दिग्विजय सिंह द्वारा बाबा को ठग बताने पर रामजेठमलानी पूरी केबिनेट को ठगों का अड्डा बताते हैं। इस ठगविमर्श पर क्या कहा जाए? ‘ठग ही जाने ठग की भाषा!’
कांगरेस का आरोप है कि बाबा आरएसएस का एजेंट है। लेकिन बाबा के हौसले देखिए, वह आरएसएस को अपनी जेब में धरा मानता है। बाबा स्याणा है और आरएसएस की फितरत को जानता है कि वह किसी की भी जेब में जाने को तत्पर रहता है जेपी से लेकर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अमेरिका तक। पिछले दिनों उसने कायदे आजम की जेब में जाने के लिए भी दोएक बार मुंह निकाला, लेकिन छि़़छि़़ ‘मुसलमान गंदे होते हैं!’ सेकुलर नागरिक समाज बाबा को आरएसएस के चंगुल से निकालने की रणनीति बनाना चाहता है ताकि भरष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को सांप्रदायिकता से बचाया जा सके। हमें भी इस बाबत दोचार साथियों के फोन आते हैं। नागरिक समाज को अभी भी शायद स्पष्ट नहीं हुआ है कि संकीर्णता और सांप्रदायिकता में बाबा आरएसएस का बाप है।


प्रेम सिंह
मोबाइल: 09873276726
(क्रमश:)

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