मंगलवार, 27 सितंबर 2011

वर्तमान दौर के वैश्वीकरण के 20 साल

उदारीकरणवादी , निजीकरणवादी और वैश्वीकरणवादी आर्थिक नीतियों को केंद्र की अल्पमत कांग्रेस सरकार ने 1991 में लागू किया था | इसे प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में आज के प्रधान मंत्री और उस वक्त के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया था | लेकिन ये नीतिया देश में बनायी गयी नीतिया नही थी | बल्कि ये अमेरिका , इंग्लैण्ड जैसी विदेशी विकसित व धनाढ्य ताकतों द्वारा बनायी गयी नीतिया थी |उन्हें इस देश में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष नाम की वैश्विक संस्था द्वारा कर्ज़ देने की शर्तो, हिदायतों के साथ लागू करवाया गया था |इन नीतियों को लेकर कांग्रेस के अलावा अन्य पार्टियों एवं प्रचार माध्यमो द्वारा जोरदार विरोध किया गया था | लेकिन वह विरोध तीन - चार सालो के भीतर ही पूरी तरह से खत्म भी हो गया | क्योंकि देश का समूचा धनाढ्य हिस्सा , धनाढ्य औद्योगिक , व्यापारिक कम्पनिया आयातक -निर्यातक कम्पनिया तथा विभिन्न क्षेत्रो से जुड़े उच्च माध्यम वर्गीय हिस्से इसके पुरजोर समर्थन में खड़े थे | क्योंकि इन नीतियों के जरिये विदेशी कम्पनियों को , विदेशी पूंजी व तकनीक को , खुलेआम छूटे व अधिकार मिलने के साथ देश के धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों को भी सर्वाधिक छूटे व अधिकार मिलने थे | पुरानी आर्थिक नीतियों द्वारा उन पर लगे थोड़े बहुत प्रतिबंधो को भी घटाकर उदार बनाया जाना था | इसी के अंतर्गत बड़ी कम्पनियों के पूंजियो , लाभों को सिमित एवं नियंत्रित करने वाले एम् ० आर ० टी ० पी ० जैसे कानून को हटा दिया गया | विदेशो के साथ देश की कम्पनियों के होते रहे व्यापारिक , वाणिजियक संबंधो को नियंत्रित करने वाले " फेरा कानूनों " को हटाकर " फेमा " कानून बना दिया गया | देश की धनाढ्यो कम्पनियों पर देश के भीतर लगे नियन्त्रण को " इस्पेक्टर राज " हटाने के नाम पर लगातार घटाया -हटाया जाता रहा | उनको करो , टैक्सों में छूटो के साथ अन्य छूटे , सुविधाए दी और बधाई जाती रही | इसी तरह से विदेशी कम्पनियों को देश के हर क्षेत्र में घुसने और अधिकार पूर्वक घुसने की छूट के साथ अन्य छूटे दी गयी | देश और समाज के विभिन्न क्षेत्रो के उच्च मध्यम वर्गियो तथा आम समाज के उच्च शिक्षित लोगो के आमदनियो ,वेतनों सुख - सुविधाओं को भी अधिकाधिक बढाया जाता रहा | इसलिए इन्हें उदारवादी नीतियों का नाम भी दिया गया | जबकि ये नीतिया जनसाधारण लोगो के लिए आम मजदूरों , किसानो , दस्तकारो तथा मध्यम वर्ग के खासे बड़े हिस्से के लिए कुल मिलाकर देश के 80 % से उपर की आबादी के लिए कही से भी उदारवादी नीतिया नही थी | उनके लिए तो ये नीतिया कड़ी और अनुदारवादी नीतिया ही थी | कयोकि इस नीतियों के लागू किए जाने के बाद से किसानो , मजदूरों एवं अन्य साधारण कारोबारियों को अब तक मिलती रही छूटो , अनुदानों और अधिकारों को निरंतर काटने - घटाने का काम किया गया | साधारण मजदूरों की छटनी करने तथा ठीके पर काम कराने आदि का तथा खाद , बीज , आदि के छूटो - अनुदानों को काटकर उसके मूल्य भाव को लगातार बढाने का सार्वजनिक सिंचाई के इंतजाम से अपने हाथ खीच लेने का फिर छोटे कारोबारियों को लागत व बाज़ार में मिलती रही छूटो तथा आरक्षित अधिकारों आदि को काटने का काम खुलेआम और वह भी लगातार होता आरहा है | इसी तरह इन नीतियों के अंतर्गत साधारण या औसत शिक्षित हिस्से को स्थाई काम धंधे मिलने के अवसरों में भी भारी कटौती होती रही | पिछले 20 सालो से उदारवादी नीतियों की उपरोक्त दोहरी व परस्पर विरोधी प्रक्रिया निरंतर बढती रही है | इसीलिए इन नीतियों को देश - दुनिया के धनाढ्य हिस्से के लिए नरम व उदारवादी नीतिया कहते हुए तथा देश के जनसाधारण हिस्से के लिए कठोर व अनुदारवादी नीतिया भी जरुर खा जाना चाहिए | इसीलिए इन नीतियों को दिए जा रहे समर्थन सहयोग को भी देश - दुनिया के धनाढ्य एवं उच्च हिस्से के प्रति सहयोग व जनसाधारण के व्यापक हितो के प्रति असहयोग व विरोध भी जाना चाहिए।

क्रमश:

सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672

2 टिप्‍पणियां:

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

चिन्ता तो है इन सब पर। अन्तिम वाक्य में खा शब्द देखिए।

Rewa Tibrewal ने कहा…

sahi mai yeh sab par dhyan nahi dete hum par jab padha tho laga ki chintajanak hai...soochne par majboor karti hai yeh

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