सोमवार, 26 सितंबर 2011

वर्तमान दौर के जातीय संगठन और सामाजिक जनतंत्र का प्रश्न


आज हर जातीय के पास जातीय संगठन है | अब किसी भी जाति के लोगो के पास यह कहने का मुँह- माथा नही रह गया है की फला जाति के लोग जातिवादी है |जातिवादी संगठन बना रहे है |
कयोंकि जातिवादी संगठनों के जरिये जातिवाद करने - बढाने और समाज को बाटने का काम किसी भी जाति के लिए बाकी नही रह गया है | दिलचस्प बात यह है कि जातिवादी संगठनों के पदाधिकारी आमतौर पर उच्च या बेहतर स्तिथियों के लोग है | आधुनिक पद - पेशो पर प्रतिष्ठित लोग है | मंत्री , विधायक , उच्च अधिकारी , बड़े व्यापारी या फिर डाक्टर , इंजिनियर , लेक्चरर , प्रोफेसर , वकील आदि जैसे लोग है | अर्थात जातीय संगठनों के पदाधिकारी आमतौर पर अपने जातीय पेशो पहचानो और स्थितियों से उपर उठकर आधुनिक युग की पद -प्रतिष्ठा की जगहों पर विराजमान है | इसके विपरीत जातीय संगठनों में शामिल विभिन्न जातियों के जनसाधारण , खासकर गावं - गवई के खासी संख्या के लोग अभी भी अपने जातीय कामो - पेशो से जुड़े लोग है | यह बताने की जरूरत नही है विभिन्न जातियों की बुनियादी विशेषता उनका पुश्त दर पुश्त से चला आ रहा पेशा है |सामाजिक कामो की पुश्तैनी परम्परा है |नये या आधुनिक पेशो के आने से पुराने व पुश्तैनी पेशो में भारी टूटन व परिवर्तन आता जा रहा है | पुश्तैनी पेशो के रूप में सदियों से खड़ा होता रहा जातीय समुदाय टूटता - बिखरता जा रहा है | एकदम निम्न स्तर के कामो व पेशो को छोडकर अब हर काम धंधे व पेशो में हर जाति के लोग जाने लगे है | उसको अपने जीवन यापन का साधन बनाने लगे है |
लेकिन अभी भी हर जाति समुदाय में जातिय रिश्ता बना हुआ है | पेशो के रूप में टूटते रहने के वावजूद जातीय उपनाम या जातीय पहचान के साथ - साथ शादी - विवाह के जातीय रिश्ते अभी भी आमतौर से प्रचलित है | न केवल हिन्दुओ में बल्कि मुसलमानों में भी | अंतरजातीय विवाह का प्रचलन व मान्यता अभी समाज के अत्यंत उच्च हिस्सों में या बाम्बे जैसे शहरों में कई पीढियों से रह रहे लोगो में ही संभव हो पाया है |अत: शादी - विवाह के अनिवार्य एवं अपरिहार्य सामाजिक संबंधो के संदर्भो में जातीय संगठनों का बनना अभी भी प्रासंगिक है |
उनकी यह आवश्यकता या प्रासंगिकता , शादी - विवाह के संबंधो को सुलभ व सुगम बनाने के लिए आज भी अपेक्षित है | इसे लोग अच्छी तरह से समझ सकते है | शादिया खोजने , तय करने और फिर उसे परिपूरण करने की दिक्कतों को सभी लोग जान रहे है | अत: इस अत्यंत आवश्यक पारिवारिक - सामाजिक समस्या के समाधान के लिए ख़ास करके शादी - विवाह में पहले के पारम्परिक दहेज़ की जगह अब बढ़ते जा रहे बाजारवादी लेन - देन वाले दहेज़ को काटने - घटाने आदि के लिए भी जातीय संगठनों की अहम भूमिका हो सकती है और होनी भी चाहिए |
....... लेकिन वर्तमान दौर में बनते जातीय संगठन में इस काम के लिए तो कोई जगह ही नही है | वह काम तो उनके एजेण्डे में ही नही है | चाहे वह कोई भी जाति क्यों ना हो | इसी का परीलक्ष्ण है की एक तरफ जाति संगठन बनते - बढ़ते जा रहे आदि , दूसरी तरफ शादी - विवाह के रिश्तो की तमाम दिक्कतों के साथ नकद पैसे से लेकर आधुनिक मालो - सामानों के दान -दहेज़ आदि का चलन बढ़ता जा रहा है | हर जाति के जातीय संगठनों द्वारा अपने ही जाति के लोगो में खड़ी हो रही बाजारवादी लूट की समस्याओं को नजरन्दाज़ किया जा रहा है | .लेकिन तब वर्तमान दौर में जातीय संगठनों के बनने - बढने का माने मतलब क्या ? जातीय संगठनों के पदाधिकारियों का कहना है कि यह जाति विशेष के उत्थान व विकास के लिए है | लेकिन तब जातीय संगठनों द्वारा जातियों के बीच बुनियादी और अभी तक पड़े रह गये प्रमुख सम्बन्ध को अर्थात शादी - विवाह के सम्बन्ध और उसकी समस्याओं को महत्व क्यों नही दिया जाता ? जबाब एकदम साफ़ है | वह यह है की यह समस्या हर जाति के आम लोगो की अपेक्षाकृत निम्न और कमजोर स्तिथियों के लोगो की समस्या है , न की उच्च स्तर के और उच्च आमदनी वाले लोगो की | इसीलिए हर जाति के उच्च व बेहतर स्तिथियों के लोगो द्वारा बनाये या बनवाये जा रहे जातीय संगठनों में उस जाति के ही कमजोर स्तिथियों के लोगो की शादी - विवाह की समस्याओं के लिए कोई सक्रिय व सार्थक प्रयास भी नही है |
इससे भी साबित होता है कि वर्तमान दौर में जातीय संगठनों के बनने का मुख्य कारण एकदम दुसरा है | वह जाति के समूचे लोगो के लिए नही बल्कि विभिन्न जातियों की बेहतर व उच्च स्तर के लोगो के कल्याण उत्थान व चढत - बढत के लिए आवश्यक है | उसके जरिये जातियों के आगे बढ़े हुए लोग , जाति के नाम पर जातीय विकास व कल्याण के नाम पर समूची जाति को अपने पीछे लगा लेते है | जातीय संगठनों के नेता बनकर भाषण -प्रशासन से लेकर राजनीत में अपना असर - रसूख बना व बढा लेते है | फिर उससे अपने स्वार्थो की पूर्ति करते रहते है | इसे बढावा देने का प्रमुख काम देश की हुकूमत द्वारा पिछले 30 सालो से धर्मवादी , सम्प्रदायवादी , जातिवादी तथा इलाकावादी चुनावी राजनीत के जरिये किया जाता रहा है | धर्म , सम्प्रदाय व जाति की राजनितिक पार्टियों एवं प्रचार माध्यमो द्वारा उसे पनपाया व बढाया जाता रहा है | आम लोगो के हितो को उनके धार्मिक व जातीय समूहों के हितो के नाम से प्रस्तुत व प्रचारित किया जाता रहा है | धर्म , सम्प्रदाय व जाति के सत्ता - स्वार्थी इस्तेमाल की इसी राजनीत ने हर जाति के उच्च व बेहतर स्थितियों के लोगो में , अपनी जाति के लोगो के समर्थन का इस्तेमाल कर उपर चढने , राजनेता बनने की भूख जगा दी है | यही भूख उनसे जातियों के कल्याण - उत्थान का नाम लेकर जातीय संगठन बनवा रही है | जबकि विभिन्न जातियों के कमजोर स्तिथियों के लोगो के शादी - विवाह के अलावा महगाई , बेकारी , रोजी रोटी की समस्या शिक्षा स्वास्थ आदि की बुनियादी समस्याए ही नही है | इसीलिए इन बुनियादी समस्याओं से मुक्ति और जातियों के बहुसख्यक लोगो के कल्याण - उत्थान करने की समस्या जातीय संगठनों के जरिये हल होने वाली भी नही है | इन समस्याओं को विभिन्न धर्म - जाति के जनसाधारण के व्यापक संगठन या मंच के जरिये ही हल किया सकता है |हाँ जातीय संगठन के जरिये जाति के 10 -15 % लोगो को उपर चढने का अवसर जरुर मिल सकता है |
इसलिए हर जाति की बहुसख्यक परन्तु कमजोर स्थिति के लोगो को बनते बढ़ते जातीय संगठनों को अपनी समूची जाति के कल्याण -उठान के रूप में देखना कही से भी ठीक नही है | वस्तुत: यह जन एकता का विरोधी विचार - व्यवहार है , जिसे आम जनता में विभिन्न जातीय ( धार्मिक व इलाकाई ) समूहों में फैलया जा रहा है | इसलिए विभिन्न जातियों के इसी बहुसख्यक हिस्से का दायित्व है की वह शादी - विवाह के संबंधो को सुलभ बनाने के लिए या समाज में जाति विशेष के प्रति बरते जा रहे छुआछूत व भेदभाव जैसे गैर जनतांत्रिक विचारों व व्यवहारों के विरोध के लिए या अन्य किसी न्यायोचित मांगो के लिए ही जातीय संगठनों को समर्थन दे | बड़ी सामाजिक समस्याओं व मांगो के लिए दूसरी जातियों के लोगो से भी सहयोग लें | उसे वर्तमान दौर जैसे स्वार्थपूर्ति का सत्ता - स्वार्थी राजनीत का या रजनीतिक सामाजिक गोलबंदी का हथकंडा बनाने का विरोध करे | साथ ही पिछड़े युग में अपनी जातीयता उच्चता , श्रेष्ठता के मिहिमा मण्डन का या वास्तविक या कल्पित इतिहास को उठाकर जातीय समुदायों को महिमा मण्डित करने के प्रयासों का विरोध करे | जातीय संगठनों के संदर्भ में सामाजिक जनतंत्र का यही कार्यभार या दायित्व है |

सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672

1 टिप्पणी:

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

जाति पर और जातियों के इन दिनों बनने वाले संगठनों पर अच्छा लेख। समस्याओं को दूर करने के लिए ये संगठन बनते ही कब हैं?

Share |