केन्द्रीय बजट में सरकार द्वारा पिछले 10 - 15 सालो से कृषि ऋण में लगातार और वह भी तेज़ी के साथ बढ़ोत्तरी की जाती रही है | उदाहरण - 2004 - 05 में केन्द्रीय बजट में कृषि ऋण की मात्रा 1।02.000 करोड़ रूपये घोषित की गयी थी | 2010 - 11 में यह रकम 3 लाख 75 हजार करोड़ रूपये थी | इस साल के बजट में इसे बढाकर 4. 75. 000 करोड़ रुपया कर दिया गया है | 95 - 96 में यह रकम 8000 करोड़ रूपये थी | जिसे 97 - 98 में बढाकर 22000 करोड़ रूपये कर दिया गया था | इन आकंड़ो से आप केन्द्रीय बजट में कृषि ऋण की बढती मात्रा का अंदाजा लगा सकते है | इसी के साथ पिछले दो सालो से सरकार कृषि कर्ज़ के व्याज दर में भी छुटे दे रही है | समय पर कर्ज़ चुकता कर देने वाले किसानो के लिए व्याज दर घटाकर 5 % तक कर दिया गया है | 95 - 96 के बाद से आती जाती रही विभिन्न पार्टियों व मोर्चो की सरकारे इसे अपने किसान व किसानो के हिमायती बजट के रूप में प्रस्तुत करती रही है |
फिर कृषि ऋणकी बजटीय चर्चाओं व प्रचारों में भी इसे ऐसे प्रस्तुत किया जाता रहा है मानो कृषि ऋण का समूचा या बड़ा हिस्सा किसानो को मिलता रहा है | ताकि उन्हें अपनी खेती किसानी में कर्ज़ की जरुरतो के लिए प्राइवेट महाजनों के पास न जाना पड़े | इस वर्ष के बजटीय भाषण में वित्त मंत्री ने बैंको को कृषि कार्य के लिए खासकर छोटे व सीमांत किसानो को ऋण देने में तेज़ी लाने के लिए भी कहा है |लेकिन बढ़ते कृषि ऋण , उस पर घटती व्याज दर और छोटे व सीमांत किसानो के लिए ऋण देने में तेज़ी लाने के बयानों , प्रचारों के विपरीत सच्चाई यह है कि कुल कृषि ऋण में छोटे व सीमांत किसानो का हिस्सा घटता गया है |
दैनिक समाचार पत्र " आज " ( 29 जुलाई ) में 'छोटे किसानो से दूर होता कृषि ऋण ' के नाम से प्रकाशित लेख में यह आकंडा दिया गया है की 1990 में कुल कृषि ऋण का 60 % हिस्सा छोटे व सीमांत किसानो को दिया गया था | पर 1995 में यह हिस्सा घटकर 52 % हो गया | फिर 2003 में यह घटकर 23.5 % और 2006 में 13.3% रह गया |
लेकिन तेज़ी से बढती कृषि ऋण की रकमों में देश के बहुसख्यक छोटे व सीमांत किसानो की हिस्सेदारी घट क्यों रही है ? इसका कारण है की कृषि ऋण को दो हिस्सों में बाट दिया जाता है - प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कृषि ऋण | प्रत्यक्ष ऋण सीधे किसानो को दिया जाता है , अल्पकालिक ,मध्यकालिक एवं दीर्घकालिक ऋणों के रूप में | जबकि अप्रत्यक्ष ऋण सीधे किसानो को न देकर कृषि उत्पादन में सहायता देने वाली गतिविधियों के लिए दिया जाता है | उदाहरण के लिए खाद , बीज, पानी , बिजली बोर्ड आदि को दिया गया ऋण | 1990 में बैंको द्वारा दिया जाने वाला अप्रत्यक्ष ऋण का हिस्सा 13।2 % था | बाद के दौर में यह प्रत्यक्ष कृषि ऋण के मुकाबले लगातार बढ़ता रहा | 2001 में यह बढकर 16.1%और 2006 में यह 27.9% हो गया | फिर अप्रत्यक्ष कृषि ऋण का दायरा भी लगातार बढ़ता रहा | उदाहरण 1994 में कृषि सम्बन्धित धंधे में लगे व्यापारी को 2001 में एग्रो क्लिनिक एवं एग्रो बिजनेस केन्द्रों को , 2002 में ग्रामीण इलाको में गोदाम , कोल्ड स्टोरेज और मंदी घर बनाने के लिए तथा 2007 से खाध्य एवं प्रसंस्करण उद्योगों को 10 करोड़ रूपये तक दिए जाने वाले कर्ज़ को अप्रत्यक्ष कृषि ऋण में शामिल कर दिया गया | अप्रत्यक्ष ऋणों के अलावा प्रत्यक्ष ऋणों में अनाजो एवं अन्य फसली प्रत्यक्ष ऋण में बागवानी , पशु - पालन , मत्स्य - पालन आदि को भी शामिल कर लिया गया
1990 से पहले बैंको को कृषि और ग्रामीण स्तर पर कृषि से सम्बन्ध क्षेत्रो के लिए अपने कुल ऋण का कम से कम 18 % देने का लक्ष्य निर्धारित था | इसमें सब के सब प्रत्यक्ष ऋण थे | लेकिन अब कृषि ऋण के नाम पर कृषि ऋण को व्यापारियों , बिचौलियों , उद्योगपतियों एवं सरकारी प्रतिष्ठानों को कर्ज़ के रूप में दिया जा रहा है | फिर प्रत्यक्ष कृषि ऋण में भी बड़ी जोत के मालिको को दिए जाने वाले कृषि ऋण का हिस्सा भी बढ़ता जा रहा है | 1995 - 96 से पहले प्रत्यक्ष ऋण में 25 हजार रूपये से कम ऋण लेने वाले किसानो का हिस्सा 66.1 % था | लेकिन 2006 में यह घटकर 18.1 % हो गया | दूसरी और 2 लाख से उपर के रीनो का हिस्सा 1990 में 7.8 %था , जो जो 2006 में बढकर 39.2 % हो गया | अब कृषि व्याज में घटती स्तिथि का फायदा उठाने वाला एक नकली किसान वर्ग भी पैदा हो गया है | यह वर्ग असली या फर्जी कागजात के बल पर कृषि ऋण हडपकर या तो उससे लाभकारी धंधा कर रहा है या फिर छोटे व सीमांत किसानो , मजदूरों , दस्तकारो को उचे व्याज दरो पर कर्ज़ देकर व्याज की कमाई कर रहा है | बढ़ते बजटीय कृषि ऋण की असलियत यह है कि इसमें गैर कृषक हिस्सों का या बड़े जोत के मालिको आदि का हिस्सा तो बढ़ता जा रहा है लेकिन आम किसानो का यानी ज्यादातर छोटे व सीमांत किसानो का हिस्सा घटता जा रहा है | उन्हें मजबूरी में कृषि कर्ज़ के लिए प्राइवेट महाजनों एवं माइक्रो फाइनेन्स जैसी कम्पनियों के दरवाजे पर जाना पड़ रहा है और भारी व्याज वाले कर्जो को लेने व देने कि मजबूरी को झेलना पड़ रहा है और हमारे देश के नीति बनाने वाले नीतिनियंता यह कहते नही थक रहे है कि देश हमारा उन्नति के पथ पर बढ़ता जा रहा है कितना बड़ा छलावा है ये शब्द ? सुनील दत्ता .पत्रकार
09415370672
4 टिप्पणियां:
एक बात समझ में कम आती थी कि किसानों को कर्ज मिलता है, तो क्या होता है। यह अच्छा काम सरकार कैसे करने लगी। अब पता चल रहा है। समझ में आ रहा है। इसके लिए आपका आभारी।
aap ka aabhari. sarkari nitiya kitni chalava bhari hoti hai.
gahrai se batane k liye bahot dhanywad
सर, आपके रिपोर्ट को पढकर यही लगता है कि छोटे व सीमांत किसानो , मजदूरों , दस्तकारो को शिक्षित करना अतिआवशयक है ,वरना तंत्र में येलोग पीसते आ रहे है और पीसते रहें तो अवश्य की गोली बारुद सा बनके फटेंगे (क्षेत्रवाद के आग में ऐसे ही लोगोका तो इस्तेमाल किया जाताहै).....आभार
Bahi aapka lekh janverdhak hai .......chote kishano ki pahuch bank tk nahi nahi hai bhai ...........
एक टिप्पणी भेजें