सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय भाग 6

छत्तीसगढ़ राज्य ने भारत सरकार द्वारा 03.05.2011 को दाखिल किए गए हलफनामे पर बहुत विश्वास व्यक्त किया। इस हलफनामे में एस0पी0ओ0 की नियुक्ति, सेवा शर्ते एवं प्रशिक्षण से सम्बंधित चर्चा हैं। भारत सरकार द्वारा जो नीति सम्बंधी वक्तव्य दिए गए कि कैसे बाएँ बाजू वाले उग्र्रवाद से निपटा जाए-यह भी उस शपथ पत्र में सम्मिलित हैं। भारत सरकार के हलफनामे की संक्षिप्त रूपरेखा निम्नलिखित है:-
1. पुलिस एवं पब्लिक व्यवस्था राज्य का विषय है एवं राज्य सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी है। कुछ विशिष्ट मामलों में केन्द्रीय सरकार, एस0आर0ई0 योजना के माध्यम से राज्य सरकार के प्रयासों के पूरक के रूप में कार्य करती है। यह योजना इसलिए विकसित की गई है कि उन राज्यों की सहायता की जाए जो सुरक्षा सम्बधी समस्याओं से जूझ रहे हैं जिसमें कि बाएँ बाजू का उग्रवाद भी शामिल है। वर्तमान समय में यह योजना 9 राज्यों (जिसमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है) तथा 83 जिलों में लागू है। इस एस0आर0ई0 योजना में राज्य की सुरक्षा सम्बंधी गतिविधियों पर खर्चे की भरपाई भारत सरकार द्वारा की जाती है। यह भी कहा गया है कि एस0पी0ओ0 को दिए जाने वाले वेतन भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न हैं। सर्वाधिक वेतन 3000 है और कम से कम 1500 है।
2. भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जहाँ तक एस0पी0ओ0 की नियुक्ति एवं कार्य प्रणाली का सम्बन्ध है, उसकी भूमिका हर राज्य के लिए एस0पी0ओ0 की संख्या की अपर सीमा के निर्धारण को सहमति प्रदान करने तक है तथा एस0पी0ओ0 की नियुक्ति, प्रशिक्षण, स्थानान्तरण की जिम्मेदारी सम्बंधित राज्य की है। भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि राज्य सरकारें कानून के अनुसार बिना केन्द्र सरकार तथा गृह विभाग के अनुमोदन के एस0पी0ओ0 की नियुक्ति कर सकती है।
3. भारत सरकार ने वक्तव्य दिया है कि ऐतिहासिक रूप से भिन्न-भिन्न राज्यों में एस0पी0ओ0 ने कानून व्यवस्था एवं सशस्त्र विद्रोह से निपटने के लिए विशिष्ट भूमिका अदा की है। इस सम्बन्ध में बाएँ बाजू के उग्रवाद के बारे में भारत सरकार ने अपने हलफनामे में टिप्पणी की है कि पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी ने जन मिलीशिया नामक एक सेना को स्थानीय लोगों से बनाया है जिनका, स्थानीय क्षेत्र, बोली एवं स्थानीय जनसंख्या से, परिचय होता है। राज्य सरकारों द्वारा एस0पी0ओ0 की नियुक्ति के पीछे जो तर्क है वह यह है कि स्थानीय होने के नाते वे माओवादी उग्रवादियों से अच्छी तरह से निपट सकते हैं। लगभग 70046 एस0पी0ओ0 की नियुक्ति एस0आर0ई0 के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न राज्यों के द्वारा की गई थी। उनके वेतन आदि का भुगतान भारत सरकार द्वारा किया गया।
33. यहाँ पर यह कहना आवश्यक है भारत सरकार के हलफनामे से यह स्पष्ट नहीं है कि छत्तीसगढ़ में एस0पी0ओ0 के प्रयोग से विशिष्ट पहलुओं पर सरकार का रवैया क्या है? जैसे कि एस0पी0ओ0 को हथियार प्रदान करना, उनके प्रशिक्षण की प्रकृति एवं उनको सौंपे गए दायित्व। हलफनामे की भाषा से स्पष्ट है कि एस0पी0ओ0 पुलिस बलों की संख्या बढ़ाएँगे। इसमें यह नहीं बताया गया है कि बलवर्धक सेना की अवधारणा क्या है और कैसे इसे बलवर्धक बनाया जाएगा। बगैर अवधारणा की व्याख्या किए हुए केन्द्रीय सरकार का कथन है कि एस0पी0ओ0 ने सूचना एकत्रित करने, स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा, एवं गड़बड़ी वाले क्षेत्रों में सम्पत्ति की सुरक्षा करने मंे विशिष्ट भूमिका अदा की है। इसके अतिरिक्त केन्द्र सरकार ने 3 अन्य बातें एस0पी0ओ0 के बारे में कही है:-
1. जिला पुलिस की सहायता महत्वपूर्ण है क्योंकि वे नियमित रूप से एक स्थान पर रहते हैं जबकि सेना/ सी0पी0एम0एफ0 अक्सर एक स्थान पर लगाई जाती है, फिर हटा लिया जाता है, फिर अन्यत्र लगाया जाता है।
2. केन्द्र सरकार यह चाहती है कि एस0पी0ओ0 को कानूनी रूप से शक्ति, जुर्माना, अधीनता आदि के सम्बन्ध में दूसरे पुलिस अधिकारियों के बराबर समझा जाए।
3. एस0पी0ओ0 की राज्य सरकार की क्रियात्मक योजना में सशस्त्र विद्रोह से निपटने, आतंकवादियों से लड़ने एवं कानून व्यवस्था बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका है।
33. इसके अतिरिक्त केन्द्र सरकार द्वारा यह भी कहा गया है कि प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की शक्ति बढ़ाने की आवश्यकता है। राज्य सरकार द्वारा बहुत से कदम उठाए जाने के बावजूद भी सी0पी0आई0 माओवादियों ने अंधाधुंध रूप से राज्य में हिंसा को फैलाया। इस
सम्बन्ध में केन्द्र सरकार का कथन है कि वर्ष 2010 में कुल 1003 लोग, जिनमें कि 18 नागरिक, 285 सुरक्षा बलों के लोग, पूरे भारत वर्ष में नक्सल वादियों के द्वारा मारे गए। मारे गए नागरिकों में से 323 लोगों को केवल पुलिस का मुखबिर समझ कर मार दिया गया।
34. केन्द्र सरकार अपने हलफनामे को इस प्रकार से समाप्त करती है ‘‘केन्द्र सरकार निर्दोष नागरिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा प्रदान करने के लिए कटिबद्ध है। भारत सरकार ने राज्य सरकारों पर जोर दिया है कि माओवादी हिंसा से निपटते समय सुरक्षा बल अत्यन्त सतर्कता एवं संयम से कार्य करें। भारत सरकार राज्य सरकारांे को, सम्पूर्ण जाँच एवं पुष्टि के बाद कांस्टेबिल के प्रशिक्षण स्तर सुधारने के लिए,
मानवाधिकारों के सम्बन्ध में उनको शिक्षित करने के लिए विशेष निर्देश प्रेषित करेगी। उसमें यह भी कहा है कि कांस्टेबिल और एस0पी0ओ0 जब प्रभावित क्षेत्रों में कोई अभियान चला रहे हों तो उनके अंदर कठोर अनुशासन और कानून का पालन सुनिश्चित करें।
35. यहाँ पर यह भी कहना आवश्यक है कि वह कानूनी व्यवस्था जिसके तहत एस0पी0ओ0 की नियुक्ति की गई एवं जिसके तहत उनके कर्तव्यों एवं भूमिका की विवेचना की गई है निम्नलिखित हंै:-
इण्डियन पुलिस एक्ट की धारा 17 में विशिष्ट पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि जब ऐसा प्रतीत होगा कि किसी अवैध जनसमूह के इकट्ठा होने के कारण दंगा अथवा शांतिभंग की बाधा उत्पन्न हुई है एवं पुलिस बल जो सामान्यतः लगाई गई है वह शंाति को बहाल करने में अपर्याप्त है अथवा नागरिकों की सुरक्षा एवं उनकी सम्पत्ति की सुरक्षा करने में समर्थ नहीं है तो ऐसे समय में कोई पुलिस अधिकारी जो इंस्पेक्टर स्तर के नीचे का नहीं है वह निकटवर्ती मजिस्टेªट के समक्ष इस आशय का प्रार्थना पत्र दे सकता है कि वह अपने पड़ोस के व्यक्तियों में से जितनी कि उसको आवश्यकता हो, की नियुक्ति विशिष्ट पुलिस अधिकारी के रूप में उतने समय के लिए एवं उस सीमा तक कर सकता है जितना कि वह आवश्यक समझे, यदि मजिस्टेªट जिसको आवेदन दिया गया है इसके विपरीत फैसला न दे।
विशिष्ट पुलिस अधिकारियों की शक्तियाँ
विशिष्ट पुलिस अधिकारी को वही शक्तियाँ, विशेष अधिकार एवं सुरक्षा प्रदान की जाएगी जितनी कि उसको अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक हो एवं उनको वही दण्ड दिया जाएगा एवं वे उसी पुलिस अधिकारी के अधीन होंगे जैसा कि सामान्य पुलिस अधिकारी। विशिष्ट पुलिस अधिकारी के रूप में नियुक्त होने के पश्चात यदि कोई व्यक्ति बिना उचित कारण के अपने कर्तव्य की अवहेलना करता है या पूरा करने से इंकार करता है या कानूनी आदेशों या निर्देशों को मानने से इंकार करता है तो उसके ऊपर मजिस्टेªट के समक्ष मुकदमा चलाया जा सकता है एवं सजा होने पर उस पर प्रत्येक अवज्ञा के लिए 50 रूपये तक जुर्माना किया जा सकता है।
36. सन् 2007 में छत्तीसगढ़ राज्य ने छत्तीसगढ़ पुलिस एक्ट 2007 का प्रावधान किया, इस पुलिस एक्ट के कुछ सम्बंधित अंश यहाँ पर उद्घृत किए जाते हैं:-
धारा-1 सरकारी गजट में प्रकाशन के दिवस से यह कानून अस्तित्व में माना जाएगा।
धारा-2 (एन0) पुलिस अधिकारी से तात्पर्य पुलिस बल के किसी सदस्य से है जिसकी नियुक्ति इस अधिनियम के तहत या अधिनियम के शुरू होने से पहले की गई एवं इसमें भारतीय पुलिस सेवा अथवा किसी दूसरे पुलिस बल का सदस्य जो राज्य पुलिस के लिए आन डेपुटेशन भेजा गया है, सम्मिलित है।
धारा-2 (के.) निर्धारित से तात्पर्य कानून द्वारा निर्धारित से है।
धारा-9 (एल.) पुलिस कप्तान, किसी भी समय लिखित आदेश से किसी भी व्यक्ति को विशिष्ट पुलिस
अधिकारी के रूप में उतने समय के लिए नियुक्त कर सकता है जितना की पुलिस आदेश में वर्णित हो।
धारा-23 एक पुलिस अधिकारी के निम्नलिखित कार्य एवं उत्तरदायित्व होंगेः-
अ. कानून को लागू करना, जीवन, स्वतंत्रता, सम्पत्ति एवं व्यक्ति के अधिकारों एवं गौरव को सुरक्षा प्रदान करना।
ब. अपराध एवं सार्वजनिक गड़बड़ी को रोकना।
स. जन व्यवस्था बनाए रखना।
य. आन्तरिक सुरक्षा की देख-रेख करना। आतंकवादी गतिविधियों को रोकना, नियंत्रित करना एवं सार्वजनिक शान्ति को भंग होने से बचाना।
र. सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा करना।
ल. अपराध का पता लगाना एवं अपराधियों को कानून की परिधि में लाना।
व. उन व्यक्तियों को गिरफ्तार करना जिनको गिरफ्तार करने के लिए वह कानूनी रूप से अधिकृत है एवं जिनकी गिरफ्तारी के लिए उपयुक्त आधार मौजूद हों।
श. पारस्परिक एवं मानवनिर्मित विपदा परिस्थितियों में मानवों की सहायता करना एवं दूसरी एजेन्सियों की राहत कार्यों में मदद करना।
ख. व्यक्तियों एवं गाडि़यों को सुव्यवस्थिति करना एवं ट्रैफिक को नियमित एवं नियंत्रित करना।
ष. सार्वजनिक शान्ति एवं अपराध से सम्बन्धित मामलों के सम्बन्ध में उनके कर्तव्य के निवर्हन मे ंसुरक्षा प्रदान करना।
क्ष. ऐसे कर्तव्यों को करना एवं उत्तरदायित्वों को पूरा करना जो कानून द्वारा आदेशित किए गए हों अथवा किसी ऐसे अधिकारी के द्वारा निर्गत किए गए हो जो कानून के अन्तर्गत इस प्रकार के आदेशों को निर्गत करने के लिए अधिकृत हो।
धारा 24 प्रत्येक पुलिस अधिकारी को हर समय ड्यूटी पर समझा जाएगा जबकि उसकी नियुक्ति राज्य के अन्दर व बाहर पुलिस अधिकारी के रूप में की गई हो।
धारा 25 कोई पुलिस अधिकारी किसी रोजगार या कार्य में इस धारा के तहत अपने कर्तव्यों को छोड़कर लिप्त नहीं हो सकता। उसको तभी ऐसा करने की अनुमति मिल सकती है जबकि राज्य सरकार द्वारा लिखित में ऐसा करने की इजाजत दी गई हो।
धारा 50 (1) राज्य सरकार इस धारा की उद्देश्य की पूर्ति के लिए कानून का निर्माण कर सकती है। शर्त यह है कि वर्तमान पुलिस कानून तब तक जारी रहेंगे जब तक उनमे परिवर्तन न किया जाए या जब तक उन्हें रद्द न किया जाए।
धारा 50 (2) इस धारा के तहत निर्मित सभी कानून जितनी जल्दी सम्भव हो सके राज्य विधायिनी के सम्मुख प्रस्तुत किए जाएँगें।
धारा 53 (1) भारतीय पुलिस एक्ट 1861 की धारा 5 छत्तीसगढ़ राज्य के उपयोग के लिए रद्द की जाती है।

क्रमश:


अनुवादक : मो0 एहरार
मो 08009513858

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