
आँधियाँ तोड़ लिया करती थी शामो की लौ
जड़ दिए इस लिये बिजली के सितारे हम ने।
बन गया कसर तो पहरे पे कोई बैठ गया
सो रहे ख़ाक पे हम शोरिश-ए-तामिर लिये।
अपनी नस-नस में लिये मेहनत-ए-पेयाम की थकान
बंद आँखों में इसी कसर की तसवीर लिये।
दिन पिघलता है इसी तरह सारों पर अब तक
रात आँखों में खटकती है स्याह तीर लिये।
आज की रात बहुत गरम हवा चलती है
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी।
सब उठो, मै भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी।
-कैफ़ी आजमी
जड़ दिए इस लिये बिजली के सितारे हम ने।
बन गया कसर तो पहरे पे कोई बैठ गया
सो रहे ख़ाक पे हम शोरिश-ए-तामिर लिये।
अपनी नस-नस में लिये मेहनत-ए-पेयाम की थकान
बंद आँखों में इसी कसर की तसवीर लिये।
दिन पिघलता है इसी तरह सारों पर अब तक
रात आँखों में खटकती है स्याह तीर लिये।
आज की रात बहुत गरम हवा चलती है
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी।
सब उठो, मै भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी।
-कैफ़ी आजमी
1 टिप्पणी:
कोई दीवार…अजब…
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