वैश्वीकरण के दौर में बुद्धिजीवियों के एक हिस्से ने अमरीका को इम्पायर यानी महान सम्राट के नाम से सम्बोधित किया था। यह नाम उसकी अपराजेयता और उसका खात्मा होने पर साम्राज्य के पहले जैसे बने रहने के लिए दिया गया था। इस बात में कितनी सच्चाई है यह अब भविष्य के गर्भ में है, पर यह भी सच है कि आज यूरोपीय साम्राज्यवाद अपने ही भार से जिस तरह भहरा रहा है उससे अमरीकी साम्राज्यवाद अछूता नहीं रह गया है। ग्रीस का बजट घाटा और बाजार में देनदारी व खुद सरकार की वैश्विक बाजार में गिर चुकी साख की बीमारी पड़ोसी देशों में इस कदर फैलती जा रही है कि उसने महज दो सालों में अमरीका की वित्तीय साख में भी बट्टा लगा दिया है। बजट घाटा की अध्यक्षा ने साफ घोषित कर दिया कि यदि इस तरह के हालात बने रहे तो मुद्रा कोष इस तबाही को सँभाल नहीं पाएगा। अब तक कुल 160 बिलियन डॉलर ग्रीस में झोंक देने के बाद भी संप्रभू साख यानी सरकार चलाने के लिए जरूरी आय को हासिल करने की क्षमता हासिल नहीं हो पा रही है।
चंद दिनों पहले सरकारी खर्च की कटौती के लिए 30 हजार लोगों को नौकरी से बाहर कर दिया गया। यही हालत इटली, स्पेन, फ्रांस आदि देशों की भी है। अमरीका में त्रिस्तरीय उच्च ग्रेड के एक हिस्से के ए से बी हो जाने का असर यह हुआ है कि लाखों लाख लोग सड़क पर फेंक दिए गए। आय को बचाने के लिए सामाजिक कटौती करने की नीति पर चर्चा होने लगी। बावजूद इसके वॉल स्ट्रीट पर हालात नहीं सुधरे। बोइंग कंपनी से निकाले जाने वालों की संख्या में कमी नहीं आई। ओबामा ने एक तरफ रोजगार के अवसर बनाने का आश्वासन दिया, तो दूसरी ओर वित्तीय साख को हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करने का आश्वासन भी, पर सूचकांक की गिरावट में कभी-कभार के चंद सुधारों के बाद भी हालात बिगड़ते ही गए। आज खुद अमरीका में स्थितियाँ इतनी जटिल होती गई हैं और कारपोरेट व वित्तीय संस्थानों की पकड़ इतनी मजबूत हो चुकी है कि वहाँ कींस के सिद्धांत पर अमल की बात करना भी एक क्रांतिकारी काम हो गया है। अमरीका में इस इम्पायर के स्वर्ण किला वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करने का अभियान चल रहा है। वॉल स्ट्रीट पर कब्जा यानी वित्तीय संस्थानों की घेराबंदी। वॉल स्ट्रीट के सूचकांकों के ऊपर या नीचे होने से सिर्फ कंपनियों के शेयर खरीदने वालों की ही तबाही नहीं होती, इससे सीधा बाजार भाव व आय और रोजगार जुड़ा होता है। यहाँ प्रति मिनट अरबों डालर हवा की तरह भले उड़कर जाता या आता हुआ न दिखे, पर रोजमर्रा की जिंदगी में यह बेहद ठोस रूप में आता-जाता है। सितंबर 2011 के मध्य में अमरीका में नौकरी खोजने वाले युवा, नौकरी खो देने वाले कर्मचारी, श्रम करने वाले विभिन्न विभागों के लोग, मध्यम आय वर्ग के बुजुर्गों आदि ने एक लंबे सुगबुगाहट, सोशल नेटवर्क पर एक दूसरे के साथ संपर्क बनाने के बाद विभिन्न जुटानों, चैराहों पर बहस-मुबाहिसों के बाद 17 सितंबर को न्यूयार्क की सड़कों पर मार्च किया। 18 सितंबर को न्यूयार्क के एक चैराहे- 12 स्ट्रीट, जिसे अब ‘लिबर्टी चैराहा’ कहा जा रहा है, पर आम सभा (जनरल एसेंबली) बुलाई गई। न्यूयार्क पुलिस ने वहाँ किसी भी तरह का टेंट आदि लगाने पर रोक लगा दी। बावजूद इसके मेडिकल, भोजन उपलब्ध कराने वाले गु्रप व मीडिया खुलकर सहयोग में आ गए। यहाँ विभिन्न समूहों के बीच चली घंटों बहस के बाद नारा तय किया आक्यूपाई वॉल स्ट्रीट यानी वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करो। 18 सितंबर की सुबह वॉल स्ट्रीट की ओर हजारों लोगों ने मार्च किया। इसके बाद अमरीका के विभिन्न शहरों में इस तरह के जुटान व वित्तीय और पुलिस संस्थानों के खिलाफ प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया। वाशिंगटन, लॉस ऐजेंल्स, शिकागो, बोस्टन मियामी, पोर्टलैंड, ओरेगों, सीएटल, देनेवर आदि शहरों में हजारों की संख्या में लोग इकठ्ठा होकर वॉल स्ट्रीट कब्जा करो के अभियान में लग गए। विभिन्न टेड यूनियनों ने इसमें भागीदारी का खुलकर समर्थन किया है। अमरीका की सबसे बड़ी यूनियन ए0एफ0एल0, सी0आई0ओ0 ने कलिन पुल पर कब्जा करने की रणनीति को समर्थन देते हुए इसके अध्यक्ष ने कहा कि वॉल स्ट्रीट हमारे नियंत्रण से बाहर हो गया है। इस पर कब्जा करने की नीति से हमारी ओर इनका ध्यान खींचना आसान होगा। सैनफ्रांसिस्को लेबर काउंसिल ने इस प्रदर्शन को समर्थन देते हुए नारा दिया संपत्ति की असमानता को खत्म करो, बेघरों को घर दो, गरीबी खत्म करो, भ्रष्टाचार खत्म करो। आॅक्यूपाई वॉल स्ट्रीट मूवमेंट ने 13 माँगों को सामने रखा है-जीने के लिए वेतन, बीमार होने पर दवा करा सकने की मेडिकल सुरक्षा, बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त शिक्षा, तेल की तबाह करने वाली अर्थव्यवस्था को खत्म करने के लिए ऊर्जा के अन्य साधनों का अनिवार्य प्रयोग, अधिसंरचना विकास के लिए एक ट्रिलियन डालर का निवेश, नस्ल व लैंगिक बराबरी को लागू करना, प्रवास पर रोक का खात्मा, चुनाव को पारदर्शी बनाना, सभी तरह के कर्ज का खात्मा, देनदारी सूचकांक एजेंसी का खात्मा, यूनियन बनाने व मजदूरों को अपना यूनियन चुनने का अधिकार। 12 लाख की सक्रिय सदस्यता वाली यूनियन अमेरिकी स्टील वक्र्स ने इस आंदोलन में हिस्सेदारी करने का निर्णय लिया है। न्यूयार्क की 40 हजार सदस्यता वाली ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन, जिसमें रिटायर लोग भी शामिल हैं, ने इसमें भागीदारी व जरूरत पड़ने पर हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है। आज अमरीका में एक करोड़ लोग सामान्य जीवन जीने की सुविधाओं से वंचित हो चुके हैं। यहाँ 20 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग नौकरी से बाहर किए जा रहे हैं। दूसरी ओर उतनी ही तेजी से धनाढ्यता के टापू खड़े हो रहे हैं। इस आंदोलन को नोअमी क्लेन, नोम चोम्सकी, माइकेल मूर, एनी रैंड, जोसेफ स्टील्ज, जार्ज सोरोस आदि ने खुला समर्थन दिया है व इसमें भागीदारी की है। इसमें विभिन्न वैचारिक धाराओं, अराजकतावादी, लिबरल, समाजिक जनवादी जैसे लोग शामिल हा रहे हैं।
-अंजनी कुमार
क्रमश:
साभार
चंद दिनों पहले सरकारी खर्च की कटौती के लिए 30 हजार लोगों को नौकरी से बाहर कर दिया गया। यही हालत इटली, स्पेन, फ्रांस आदि देशों की भी है। अमरीका में त्रिस्तरीय उच्च ग्रेड के एक हिस्से के ए से बी हो जाने का असर यह हुआ है कि लाखों लाख लोग सड़क पर फेंक दिए गए। आय को बचाने के लिए सामाजिक कटौती करने की नीति पर चर्चा होने लगी। बावजूद इसके वॉल स्ट्रीट पर हालात नहीं सुधरे। बोइंग कंपनी से निकाले जाने वालों की संख्या में कमी नहीं आई। ओबामा ने एक तरफ रोजगार के अवसर बनाने का आश्वासन दिया, तो दूसरी ओर वित्तीय साख को हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करने का आश्वासन भी, पर सूचकांक की गिरावट में कभी-कभार के चंद सुधारों के बाद भी हालात बिगड़ते ही गए। आज खुद अमरीका में स्थितियाँ इतनी जटिल होती गई हैं और कारपोरेट व वित्तीय संस्थानों की पकड़ इतनी मजबूत हो चुकी है कि वहाँ कींस के सिद्धांत पर अमल की बात करना भी एक क्रांतिकारी काम हो गया है। अमरीका में इस इम्पायर के स्वर्ण किला वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करने का अभियान चल रहा है। वॉल स्ट्रीट पर कब्जा यानी वित्तीय संस्थानों की घेराबंदी। वॉल स्ट्रीट के सूचकांकों के ऊपर या नीचे होने से सिर्फ कंपनियों के शेयर खरीदने वालों की ही तबाही नहीं होती, इससे सीधा बाजार भाव व आय और रोजगार जुड़ा होता है। यहाँ प्रति मिनट अरबों डालर हवा की तरह भले उड़कर जाता या आता हुआ न दिखे, पर रोजमर्रा की जिंदगी में यह बेहद ठोस रूप में आता-जाता है। सितंबर 2011 के मध्य में अमरीका में नौकरी खोजने वाले युवा, नौकरी खो देने वाले कर्मचारी, श्रम करने वाले विभिन्न विभागों के लोग, मध्यम आय वर्ग के बुजुर्गों आदि ने एक लंबे सुगबुगाहट, सोशल नेटवर्क पर एक दूसरे के साथ संपर्क बनाने के बाद विभिन्न जुटानों, चैराहों पर बहस-मुबाहिसों के बाद 17 सितंबर को न्यूयार्क की सड़कों पर मार्च किया। 18 सितंबर को न्यूयार्क के एक चैराहे- 12 स्ट्रीट, जिसे अब ‘लिबर्टी चैराहा’ कहा जा रहा है, पर आम सभा (जनरल एसेंबली) बुलाई गई। न्यूयार्क पुलिस ने वहाँ किसी भी तरह का टेंट आदि लगाने पर रोक लगा दी। बावजूद इसके मेडिकल, भोजन उपलब्ध कराने वाले गु्रप व मीडिया खुलकर सहयोग में आ गए। यहाँ विभिन्न समूहों के बीच चली घंटों बहस के बाद नारा तय किया आक्यूपाई वॉल स्ट्रीट यानी वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करो। 18 सितंबर की सुबह वॉल स्ट्रीट की ओर हजारों लोगों ने मार्च किया। इसके बाद अमरीका के विभिन्न शहरों में इस तरह के जुटान व वित्तीय और पुलिस संस्थानों के खिलाफ प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया। वाशिंगटन, लॉस ऐजेंल्स, शिकागो, बोस्टन मियामी, पोर्टलैंड, ओरेगों, सीएटल, देनेवर आदि शहरों में हजारों की संख्या में लोग इकठ्ठा होकर वॉल स्ट्रीट कब्जा करो के अभियान में लग गए। विभिन्न टेड यूनियनों ने इसमें भागीदारी का खुलकर समर्थन किया है। अमरीका की सबसे बड़ी यूनियन ए0एफ0एल0, सी0आई0ओ0 ने कलिन पुल पर कब्जा करने की रणनीति को समर्थन देते हुए इसके अध्यक्ष ने कहा कि वॉल स्ट्रीट हमारे नियंत्रण से बाहर हो गया है। इस पर कब्जा करने की नीति से हमारी ओर इनका ध्यान खींचना आसान होगा। सैनफ्रांसिस्को लेबर काउंसिल ने इस प्रदर्शन को समर्थन देते हुए नारा दिया संपत्ति की असमानता को खत्म करो, बेघरों को घर दो, गरीबी खत्म करो, भ्रष्टाचार खत्म करो। आॅक्यूपाई वॉल स्ट्रीट मूवमेंट ने 13 माँगों को सामने रखा है-जीने के लिए वेतन, बीमार होने पर दवा करा सकने की मेडिकल सुरक्षा, बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त शिक्षा, तेल की तबाह करने वाली अर्थव्यवस्था को खत्म करने के लिए ऊर्जा के अन्य साधनों का अनिवार्य प्रयोग, अधिसंरचना विकास के लिए एक ट्रिलियन डालर का निवेश, नस्ल व लैंगिक बराबरी को लागू करना, प्रवास पर रोक का खात्मा, चुनाव को पारदर्शी बनाना, सभी तरह के कर्ज का खात्मा, देनदारी सूचकांक एजेंसी का खात्मा, यूनियन बनाने व मजदूरों को अपना यूनियन चुनने का अधिकार। 12 लाख की सक्रिय सदस्यता वाली यूनियन अमेरिकी स्टील वक्र्स ने इस आंदोलन में हिस्सेदारी करने का निर्णय लिया है। न्यूयार्क की 40 हजार सदस्यता वाली ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन, जिसमें रिटायर लोग भी शामिल हैं, ने इसमें भागीदारी व जरूरत पड़ने पर हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है। आज अमरीका में एक करोड़ लोग सामान्य जीवन जीने की सुविधाओं से वंचित हो चुके हैं। यहाँ 20 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग नौकरी से बाहर किए जा रहे हैं। दूसरी ओर उतनी ही तेजी से धनाढ्यता के टापू खड़े हो रहे हैं। इस आंदोलन को नोअमी क्लेन, नोम चोम्सकी, माइकेल मूर, एनी रैंड, जोसेफ स्टील्ज, जार्ज सोरोस आदि ने खुला समर्थन दिया है व इसमें भागीदारी की है। इसमें विभिन्न वैचारिक धाराओं, अराजकतावादी, लिबरल, समाजिक जनवादी जैसे लोग शामिल हा रहे हैं।
-अंजनी कुमार
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2 टिप्पणियां:
Very very Nice post our team like it thanks for sharing
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