इस पॅकेज से बुनकर समुदाय को कुछ राहत जरुर मिलेगी | पर केवल राहत ही मिलेगी और वो भी तात्कालिक |एकदम दर्द में राहत दिलाने वाली गोलियों की तरह | लेकिन जिस तरह गोली का असर खत्म होते ही दर्द पुन:उसी वेग से शुरू हो जाता हैं |उसी तरह यह राहत पॅकेज का फौरी असर भी खत्म हो जाना हैं |
केन्द्रीय वाणिज्य उद्योग और कपड़ा मंत्री ने 19 नवम्बर के दिन देश के बुनकरों के लिए 6234 करोड़ रूपये के पॅकेज की घोषणा की | इस पॅकेज में से 3884 करोड़ रूपये को बुनकरों की कर्ज़ माफ़ी के लिए आवंटित किया गया हैं | कर्ज़ माफ़ी के इस पॅकेज से 15 हजार बुनकर समितियों के 50 हजार तक के कर्ज़ माफ़ कर दीये गये है | इसके अलावा 14 लाख निजी बुनकरों के भी 50 हजार तक के कर्ज़ माफ़ कर दीये गये है | बताया गया है की इस कर्ज़ माफ़ी से उत्तर प्रदेश के 3 लाख बुनकरों को राहत मिलेगी | कर्ज़ माफ़ी के अलावा इस पॅकेज से बुनकर क्रेडिट कार्ड की शुरुआत की गयी है | इसके जरिये 3% व्याज पर 3 लाख रूपये तक का कर्ज़ लिया जा सकता है | इस पॅकेज के अलावा वाराणसी , मुबारकपुर , बिजनौर ,और बाराबंकी में 25 हजार लूम लगाये जायेंगे | इसके लिए केन्द्रीय सरकार प्रत्येक स्थान पर दो करोड़ के साथ 5 हजार हथकरघो का भी अंशदान करेगी | मंत्री महोदय की घोषणाओं के अनुसार राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले धागे पर 10% की छूट दी जायेगी |साथ ही सूत , जुट व सिल्क धागे के देश भर में दुलाई भाड़े में भी 2.5% से लेकर 10% तक की सब्सिडी दी जायेगी , ताकि हथकरघा समूह को उचित मूल्य पर धागा मिल सके | स्वभावत:इन घोषणाओं का बुनकर समूह द्वारा स्वागत किया गया हैं | कई अखबारों ने भी इसे चुनावी पॅकेज , पर आवश्यक पॅअकेज बताते हुए इसका स्वागत किया है | यह बात भी कही गयी है की यदि यह फैसला पहले किया जाता तो वर्षो से आर्थिक संकट झेलते आ रहे बुनकर न तो बुनकरी पेशा छोड़ने के लिए बाध्य होते और न ही आत्महत्या करने और सन्तान बेचने तक के लिए बाध्य होते , जिसकी सूचनाये कुछ सालो से आती रही हैं | इसमें कोई दो राय नही है कि इस पॅकेज से बुनकर समुदाय को कुछ राहत जरुर मिलेगी | पर केवल राहत ही मिलेगी और सो भी तात्कालिक | एकदम दर्द निवारक गोलियों की तरह | लेकिन एक बात है जिस तरह दर्द निवारक गोलियों का असर खत्म होते ही दर्द शुरू हो जाता हैं | उसी तरह यह राहत पॅकेज का फौरी असर भी खत्म हो जाना है |बुनकरों कि समस्याओं , संकटों को बदस्तूर जारी रहना है | इसका एक पक्का सबूत भी आप देख ले |2007 के केन्द्रीय बजट में सरकार के किसानो पर चदे सरकारी कर्जो कि माफ़ी कि घोषणा के साथ कुल 70 हजार करोड़ रूपये की कर्ज़ माफ़ी कि थी | लेकिन उसका असर न तो खेती किसानी के बढ़ते संकटों के कम होने के रूप में आया और न ही कर्ज़ में डूबे किसानो की आत्महत्याओं को रोकने के रूप में आया | उल्टे वह बढ़ता ही रहा | क्योंकि कर्ज़ में फसने का मुख्य कारण खेती में बढ़ते लागत और उसकी अपेक्षा कृषि उत्पादों के कही कम मूल्य भाव का मिलना रहा है |अर्थात बचत की जगह घाटे उठाते रहने की समस्या का लगातार बढना रहा है | जिसके चलते न तो आम किसान की लागत निकल पाती है और न ही रोज्मरा के खर्चो की भरपाई हो पाती है | फलत:न तो लागत के लिए उठाये गये कर्जो की वापसी कर पाते है और न ही सरकारी कर्जो में और फिर गैर सरकारी महाजनी कर्जो में और ज्यादा फसने से बच पाते है |इसीलिए सरकारी माफ़ी के बाद माफ़ी पाए किसानो को बैंको से दुबारा कर्ज़ लेने का अधिकार तो मिल गया लेकिन लागत कम करने और बेहतर बाज़ार व बेहतर मूल्य भाव पाने का कोई अवसर नही मिल पाया | कृषि संकट की बीमारी की जड़ जहा की तहा रह गयी |किसान क्रेडिट कार्ड पर कृषि ऋण आसानी से पाने और कृषि ऋण पर व्याज दर में घटाव का भी कोई असर नही पडा है क्योंकि ऋणों का बढना उसकी देनदारी के लिए आवश्यक बचत न हो पाने से जुडा हैं | इसीलिए बढ़ता कर्ज़ व उसकी देनदारी न कर पाना प्रमुख संकट की मूल बीमारी का एक परिलक्षण मात्र है | बुनकरी का मामला भी एकदम वैसा ही है | बुनकरों पर चड़ा कर्ज़ भी बढ़ते लागत कटते - घटते बाज़ार और लागत के मुकाबले बुनकरी उत्पादों के कही कम बढ़ते बाज़ार भाव से जुड़ा हुआ है | इसी के चलते आम बुनकरों का न केवल बचत लाभ गिरता रहा है बल्कि वे घाटे में भी जाते रहे है |इसके फलस्वरूप वे न तो अपने धंधे को बढा पा रहे है और न ही उसके लिए गये कर्जो की अदायगी कर पा रहे हैं | बुनकरी का ( तथा खेती किसानी समेत अन्य तमाम छोटे व परम्परागत उद्योग धंधो ) यह संकट कम या ज्यादा रूप में हैं तो पहले से , लेकिन पिछले 15 - 20 सालो से वह तेज़ी से बढ़ता जा रहा है | क्योंकि इन 20 सालो से लागू की जाती रही विदेशी वैश्वीकरणवादी नीतियों के अंतर्गत बुनकरी समेत तमाम छोटे उत्पादकों व साधारण मजदूरों को छूटो , अनुदानों व अवसरों को काटा - घटाया जाता रहा है | देश के बाज़ार में देश की बड़ी कम्पनियों को उत्पादनों व विदेशी आयातित मालो , सामानों की छूटे देकर उनके बाज़ार को काटा घटाया गया है बुनकरी के क्षेत्र में भी यही हो रहा है | एक तरफ सुता , बिजली आदि के बढ़ते दामो के चलते बुनकरी की लागत बढती जा रही है | दूसरे बुनकरी के बाज़ार में बड़ी कम्पनियों व विदेशी आयातकों का दबदबा बढ़ता जा रहा हैं | दरअसल यही संकट बुनकरों के घाटे में जाने और कर्ज़ वापस न कर पाने का असली संकट भी हैं इसलिए कर्जमाफी के पॅकेज से तथा बुनकरों के क्रेडिट कार्ड और 3% तक के कम व्याज पर से लागत व बाज़ार के संकटों में कोई कमी नही आनी है | हां इससे उन्हें थोड़ी देर की राहत जरुर मिल पाएगी | इस राहत के रूप में अब पुराने कर्ज़ की अदायगी किए बिना ही बुनकर समुदाय बैंको से नया कर्ज़ पा सकेगा | लेकिन उसके बाद फिर उसे कर्ज़ संकट में फसना अपरिहार्य हैं |इससे न तो वह बच सकता है और न किसान व दूसरे उद्यमी बच सकते है | उनका इन संकटों से वास्तविक बचाव तब तक नही हो सकता जब तक वे देश में लागू की जाती रही विदेशी नीतियों के अंतर्गत देशी व विदेशी बड़ी कम्पनियों का लागत व बाज़ार पर बढ़ते दबदबे को रोका नही जाता | उन पर अंकुश नही लगाया जाता | छोटे उद्यमियों , किसानो और उनके साथ लगे मजदूरों के जीविका की सुरक्षा करते हुए खेतियो व छोटे उद्योगों के विकास विस्तार को आगे नही बढाया जाता | लेकिन यह काम बड़ी कम्पनियों और विदेशी कम्पनियों के स्वार्थो पूर्ति में लगी , देश की सत्ता , सरकारे और विभिन्न राजनितिक पार्टिया नही कर सकती | फिर आज बुनकरों के कर्ज़ माफ़ी की घोषणा करने वाली कांग्रेस पार्टी ने ही तो 1991 में अपनी केन्द्रीय सरकार के जरिये धनाढ्य देशी व विदेशी कम्पनियों को छूट देने और छोटे उद्यमियों की छूटे काटने की उदारीकरणवादी नीतियों की शुरुआत की थी | लिहाजा प्रदेश में खड़े हो रहे चुनावी माहौल में बुनकर समुदाय को भी कर्ज़ माफ़ी व अन्य छूटो से मिली राहत का उठाते हुए भी कम से कम इन नीतियों के विरोध में बड़ी कम्पनियों को मिलती बढती जा रही छूटो व अधिकारों के विरोध में जरुर खड़ा होना चाहिए | संगठित हो जाना चाहिए | किसानो के साथ मोर्चाबद्ध हो जाना चाहिए केवल तभी और केवल तभी एक स्थाई राहत तथा संकटों में सुधार की बात सोची जा सकती हैं | बाबा नागार्जुन की यह पक्तिया बार बार याद आ रही हैं ...................................हम कुछ नहीं हैं
कुछ नहीं हैं हम
हाँ, हम ढोंगी हैं प्रथम श्रेणी के
आत्मवंचक... पर-प्रतारक... बगुला-धर्मी
यानी धोखेबाज़
जी हाँ, हम धोखेबाज़ हैं
जी हाँ, हम ठग हैं... झुट्ठे हैं
न अहिंसा में हमारा विश्वास है
मन, वचन, कर्म... हमारा कुछ भी स्वच्छ नहीं है
हम किसी की भी 'जय' बोल सकते हैं
हम किसी को भी धोखे में डाल सकते हैं,
-सुनील दत्ता
पत्रकार
कुछ नहीं हैं हम
हाँ, हम ढोंगी हैं प्रथम श्रेणी के
आत्मवंचक... पर-प्रतारक... बगुला-धर्मी
यानी धोखेबाज़
जी हाँ, हम धोखेबाज़ हैं
जी हाँ, हम ठग हैं... झुट्ठे हैं
न अहिंसा में हमारा विश्वास है
हम किसी की भी 'जय' बोल सकते हैं
हम किसी को भी धोखे में डाल सकते हैं,
-सुनील दत्ता
पत्रकार
1 टिप्पणी:
main problem is the responsible persons are not working for country , they are working for themselves
एक टिप्पणी भेजें