मेरठ षड्यंत्र मुकदमा 1929-33
कानपुर में 1925 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के कुछ ही वर्षों बाद ब्रिटिश सरकार ने पार्टी को कुचलने के ख़याल से कम्युनिस्टों पर एक मुकदमा चलाया और बड़ी संख्या में उन्हें गिरफ्तार किया। 1929 में सारे देश में 32 सबसे बड़े कम्युनिस्ट मजदूर नेताओं को पकड़कर मेरठ लाया गया। मेरठ में उनके लिए एक विशेष जेल बनाई गई। जिसमें उन्हें नजरबन्द किया गया। यह मुकदमा ‘मेरठ षड्यंत्र केस’ मुकदमे के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। यह मुकदमा उस समय तक भारत का सबसे लम्बा मुकदमा था और दुनिया के सबसे बड़े और लम्बे मुकदमों में आज भी गिना जाता है। इस पर अंग्रेज सरकार ने करोड़ों-करोड़ रुपये खर्च किए। लेकिन उसे कम्युनिस्टों को कुचलने मेंसफलता नहीं मिली। उल्टे अखबारों और दूसरे जरिये से कम्युनिस्टों के बयानों और वक्तव्यों का प्रचार ही हुआ।
इस प्रकार यह उत्तर प्रदेश को फिर से एक बार सौभाग्य और श्रेय प्राप्त हुआकि वह कम्युनिस्ट आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण अध्याय का केन्द्र बने। इससे पहले फरवरी 1924 में 8 क्रांतिकारियों और कम्युनिस्टों के खिलाफ कानपुर षड्यंत्र केस चलाया गया था। इसमें प्रमुख नेताओं में एस0ए0 डांगे, शौकत उस्मानी तथा अन्य थे। मेरठ कैदियों का मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में चलाया जा रहा था। यह मुकदमा मेरठ में ही क्यों चलाया गया, कलकत्ता बम्बई किसी अन्य स्थान पर क्यो नहीं? इसके दिलचस्प कारण थे। बम्बई या कलकत्ता जैसी जगहों पर ज्यूरी की व्यवस्था करनी पड़ती जो अंग्रेज सरकार के लिए सरदर्द साबित हो सकती थी। इसके अलावा अंग्रेज सरकार के लिए प्रशासनिक और व्यावहारिक रूप से मेरठ ज्यादा अनुकूल था। फिर एक और कारण यह था कि मेरठ में मजदूर किसान पार्टी की एक शाखा भी थी। वहाँ मुकदमे में आरोपित फिलिप स्प्राट, सोहन सिंह, जोश, मुजफ्फर अहमद, अब्दुल माजिद और सहगल जैसे साथी जा चुके थे और उन पर इस आधार पर आसानी से आरोप लगाए जा सकते थे।
मेरठ जेल में आरम्भ में कैदियों को अलग अलग कोठरियों या सेल्स में रखा गया और उन पर कड़ा पहरा लगाया गया। उनके जरूरी सामान तक उनसे ले लिए गए और पुस्तकंे नहीं दी गईं। आगे चलकर काफी संघर्ष हुआ और दबाव पड़ा। तब जाकर उन्हें काफी बाद में एक बड़े बैरक में रहने की इजाजत मिली। साथ ही कुछ अन्य सुविधाएँ भी मिलीं।
इन 32 कैदियों में उत्तर प्रदेश के मुख्य नेता पी0सी0 जोशी, शौकत उस्मानी, अयोध्या प्रसाद, गौरी शंकर, विश्वनाथ मुखर्जी, धरमवीर सिंह और एच0एल0 कदम। मुकदमे की गूँज सारे देश और दुनिया में मची। मेरठ कैदियों के बचाव के लिए कांग्रेस ने एक विशेष कानूनी समिति बनाई जिसके अन्तर्गत पं0 नेहरू,सम्पूर्णानन्द तथा अन्य लोग और वकील सहायता कर रहे थे। कम्युनिस्टों ने मेरठ के एक जूनियर वकील शिव प्रसाद को भी लगा रखा था जो बहुत कम फीस पर काम कर रहे थे और उन्हें इन कैदियों से लगाव हो गया था। ब्रिटेन और अन्य देशों में भी मेरठ मुकदमे के कैदियों के समर्थन में आन्दोलन और अभियान चल पड़ा। ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में एम0पी0 तथा अन्य लोगों ने कई ऐसे सवाल खड़े कर दिए जिनका जवाब अंग्रेज सरकार को देते नहीं बना। मेरठ मुकदमा न सिर्फ भारत बल्कि उत्तर प्रदेश के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी।
इस प्रकार यह उत्तर प्रदेश को फिर से एक बार सौभाग्य और श्रेय प्राप्त हुआकि वह कम्युनिस्ट आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण अध्याय का केन्द्र बने। इससे पहले फरवरी 1924 में 8 क्रांतिकारियों और कम्युनिस्टों के खिलाफ कानपुर षड्यंत्र केस चलाया गया था। इसमें प्रमुख नेताओं में एस0ए0 डांगे, शौकत उस्मानी तथा अन्य थे। मेरठ कैदियों का मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में चलाया जा रहा था। यह मुकदमा मेरठ में ही क्यों चलाया गया, कलकत्ता बम्बई किसी अन्य स्थान पर क्यो नहीं? इसके दिलचस्प कारण थे। बम्बई या कलकत्ता जैसी जगहों पर ज्यूरी की व्यवस्था करनी पड़ती जो अंग्रेज सरकार के लिए सरदर्द साबित हो सकती थी। इसके अलावा अंग्रेज सरकार के लिए प्रशासनिक और व्यावहारिक रूप से मेरठ ज्यादा अनुकूल था। फिर एक और कारण यह था कि मेरठ में मजदूर किसान पार्टी की एक शाखा भी थी। वहाँ मुकदमे में आरोपित फिलिप स्प्राट, सोहन सिंह, जोश, मुजफ्फर अहमद, अब्दुल माजिद और सहगल जैसे साथी जा चुके थे और उन पर इस आधार पर आसानी से आरोप लगाए जा सकते थे।
मेरठ जेल में आरम्भ में कैदियों को अलग अलग कोठरियों या सेल्स में रखा गया और उन पर कड़ा पहरा लगाया गया। उनके जरूरी सामान तक उनसे ले लिए गए और पुस्तकंे नहीं दी गईं। आगे चलकर काफी संघर्ष हुआ और दबाव पड़ा। तब जाकर उन्हें काफी बाद में एक बड़े बैरक में रहने की इजाजत मिली। साथ ही कुछ अन्य सुविधाएँ भी मिलीं।
इन 32 कैदियों में उत्तर प्रदेश के मुख्य नेता पी0सी0 जोशी, शौकत उस्मानी, अयोध्या प्रसाद, गौरी शंकर, विश्वनाथ मुखर्जी, धरमवीर सिंह और एच0एल0 कदम। मुकदमे की गूँज सारे देश और दुनिया में मची। मेरठ कैदियों के बचाव के लिए कांग्रेस ने एक विशेष कानूनी समिति बनाई जिसके अन्तर्गत पं0 नेहरू,सम्पूर्णानन्द तथा अन्य लोग और वकील सहायता कर रहे थे। कम्युनिस्टों ने मेरठ के एक जूनियर वकील शिव प्रसाद को भी लगा रखा था जो बहुत कम फीस पर काम कर रहे थे और उन्हें इन कैदियों से लगाव हो गया था। ब्रिटेन और अन्य देशों में भी मेरठ मुकदमे के कैदियों के समर्थन में आन्दोलन और अभियान चल पड़ा। ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में एम0पी0 तथा अन्य लोगों ने कई ऐसे सवाल खड़े कर दिए जिनका जवाब अंग्रेज सरकार को देते नहीं बना। मेरठ मुकदमा न सिर्फ भारत बल्कि उत्तर प्रदेश के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी।
उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थापना
1936 का साल सी0पी0आई0 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण था। उसी वर्ष लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। यह सर्वविदित है कि उसी वर्ष तीन अखिल भारतीय जन संगठनों की स्थापना लखनऊ में की गई। ए0आई0एस0एफ0, अखिल भारतीय किसान सभा और प्रगतिशील लेखक संघ, इस प्रकार यह गौरव भी उत्तर प्रदेश को मिला। इसी समय लखनऊ में ही सी0पी0आई0 की केन्द्रीय समिति की बैठक हुई। यह बड़ी ही महत्वपूर्ण बैठक थी और इसने मेरठ षड्यंत्र केस के बाद सी0पी0आई0 को पुनः संगठित होने में बड़ी मदद की। नोट करने लायक तथ्य यह है कि इस केन्द्रीय समिति की बैठक में एक तीन सदस्यीय पोलित ब्यूरो चुनी गई और वे तीनों ही सदस्य उत्तर प्रदेश ही के थे। वे थे पी0सी0 जोशी, आर0डी0 भारद्वाज और अजय घोष। पी0सी0 जोशी पार्टी के महामंत्री चुने गए। वास्तव में एक तरह से वे पहले से ही महामंत्री का कार्य सँभाल रहे थे। इसके कुछ समय बाद उत्तर प्रदेश में पार्टी निर्माण का कार्य आरम्भ हो गया। पोलित ब्यूरो के निर्देश पर अजय घोष कानपुर चले गए। कानपुर उत्तर प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र था। रुद्रदत्त, भारद्वाज को उत्तर प्रदेश का दौरा करके परिस्थिति का जायजा लेने की जिम्मेदारी दी गई। उन पर वारण्ट था, इसलिए उन्हें यह काम छिपकर करना पड़ता था।
भारद्वाज मार्च 1937 में गुप्त रूप से इलाहाबाद गए और वहाँ जेड0ए0 अहमद समेत कई साथियों से मिले। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जगह-जगह कम्युनिस्टों से सम्पर्क करके पार्टी बनाने, की तैयारियाँ शुरू कर दीं। उनके विचार में कानपुर, बलिया,
इलाहाबाद, बनारस और दूसरी कई जगहों पर कम्युनिस्ट ग्रुप बनाए जा सकते थे। उन्होंने रमेश सिन्हा, जेड0 ए0 अहमद, हाजरा बेगम, हर्षदेव मालवीय, सज्जाद ज़हीर तथा कई अन्य साथियों से सम्पर्क किया। उनके साथ एक बड़े ही होनहार कार्यकर्ता थे जो उनके साथ बम्बई से आए थे, उनका नाम था शरीफ अतहर अली। शरीफ को सम्पर्क करने का काम सौंपकर भारद्वाज वापस बम्बई लौट गए। इलाहाबाद के अलावा आगरा में शिवदान सिंह चैहान और एम0एन0 टण्डन, लखनऊ में नारायन तिवारी और रफीक नकवी, झाँसी में अयोध्या प्रसाद, फिरोजाबाद में अशफाक, रेलवे और दूसरे कई विभागों के मजदूरों में सन्त सिंह युसूफ और कई अन्य नेता एवं कार्यकर्ता उभरने लगे। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस समय जेड0ए0 अहमद उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे और कम्युनिस्ट में भी काम कर रहे थे। यह जानकारी बहुत कम लोगों को है। इस हैसियत से उन्होंने उत्तर प्रदेश का दौरा करके पार्टी बनाने में बड़ी मदद की। 1940 आते-आते उत्तर प्रदेश में मजदूरों, किसानों, बुद्धिजीवियों, छात्रों,नौजवानों इत्यादि के बीच कम्युनिस्ट पार्टी उभरने लगी। जनाधार बढ़ने लगा। बाँदा, बुलन्दशहर, हमीरपुर, गोरखपुर, चैरी-चैरा, अलीगढ़, आजमगढ़, फैजाबाद, गाजीपुर
वगैरह जगहों में पार्टी के दल कायम हो गए। इस प्रक्रिया की परिणति प्रान्तीय कम्युनिस्ट सम्मेलन के रूप में हुई। इलाहाबाद में पहले ही 1936 में प्रांतीय पार्टी कार्यालय गुप्त रूप से स्थापित किया जा चुका था। वह काफी कठिनाई से काम कर रहा था।
उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थापना करने के लिए एक प्रान्त स्तरीय गुप्त सम्मेलन लखनऊ में 1938 में आयोजित किए जाने की जानकारी मिली। पार्टी पर प्रतिबंध होने और सम्मेलन गुप्त रूप से होने के कारण सटीक और विस्तृत जानकारी पाना कठिन था। यह एक ऐतिहासिक घटना थी। अर्जुन अरोड़ा प्रादेशिक सी0पी0आई0 के प्रथम
सचिव बनाए गए।
अनिल राजिमवाले
क्रमश:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें