रविवार, 8 जनवरी 2012

भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन में उत्तर प्रदेश का योगदान -4

जेड0 0 अहमद, नेहरू और 0आई0सी0सी0 जैसा कि हमने देखा 1936 का वर्ष काफी महत्व का साबित हुआ। उसी वर्ष कांग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में बड़े पैमाने पर हुआ। सज्जाद जहीर ने जेड0 0 अहमद को लखनऊ जल्द से जल्द पहुँचने का आदेश देते हुए पत्र लिखा। अहमद तुरन्त चल पड़े लखनऊ पहुँचकर वे कांग्रेस अधिवेशन में नेहरू की तकरीर कुछ सुन पाए। नेहरू वैज्ञानिक समाजवाद की बात कर रहे थे।
सज्जाद जहीर के आदेश पर वे लखनऊ में एक पूर्व नियोजित जगह पर पहुँचे। वहाँ लंदन कम्युनिस्ट ग्रुप के 10-12 साथी बैठे हुए थे। सज्जाद जहीर की देख रेख में चल रही इस बैठक में लोगों ने अपने भविष्य और काम तय किए। उनमें से ज्यादातर कोई न कोई काम कर रहे थे लेकिन पार्टी को आंशिक या पूरा वक्त देने को
तैयार थे। अहमद ने मीटिंग के बाद सिंध जाकर अपनी कालेज की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और वापस इलाहाबाद लौट आए। सज्जाद जहीर ने उन्हें पं0 नेहरू से मिलने की सलाह दी। फिर वे लखनऊ जाकर जोशी से मिले। जोशी ने उन्हें पार्टी का सदस्य बनने के लिए कहा।
डाॅ0 अशरफ पहले ही कांग्रेस में शामिल हो चुके थे। उन्होंने अहमद को नेहरू से मिलवा दिया। नेहरू ने काफी बातचीत की और उनका काम कांग्रेस दफ्तर में तय कर दिया और साथ ही उनका माहवार भी। माक्र्सवाद, पार्टियों और विचार धाराओं के बारे में खुलकर बातें र्हुइं। अहमद को इलाहाबाद का ए0आई0सी0सी0 का दफ्तर सँभालना
था।
कुछ ही दिनों बाद पंडित नेहरू ने ए0आई0सी0सी0 दफ़्तर में एक मीटिंग बुलाई, उस मीटिंग में डाॅ0 लोहिया, डाॅ0 अशरफ, आचार्य कृपलानी और नेहरू के अलावा कुछ अन्य मौजूद थे। यह बैठक केन्द्र को मजबूत करने सम्बंधी सुझाव माँगने के लिए बुलाई गई थी। साथ ही कामों का बँटवारा भी किया गया। इसमें आखिरकार तय किया गया कि दैनिक राजनैतिक मार्ग दर्शन का काम डाॅ0 अशरफ के जिम्मे, डाॅ0 लोहिया को अन्तर्राष्ट्रीय विभाग मिला। उन्होंने ही विश्व साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष और उसके महत्व का उल्लेख किया था। डाॅ0 जेड0ए0 अहमद को आर्थिक विभाग दिया गया। जेड0ए0 अहमद ने कहा था कि वे एक अर्थशास्त्री हैं, और इसलिए जनता के बीच साम्राज्यवाद द्वारा आर्थिक शोषण का पर्दाफाश करने का महत्व वे समझते हैं। यह सब कुछ निश्चित हो जाने के बाद ए0आई0सी0सी0 दफ्तर का काम सुचारु और नियमित रूप से चालू हो गया। नेहरू ठीक नौ बजे सुबह हाजिर हो जाते थे और विभिन्न विभागों का काम देखते, आगे के कार्यक्रम तय होते। इस प्रकार ए0आई0सी0सी0 के केन्द्रीय काम में कम्युनिस्टों की बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका रही और जाहिर है इसमें यू0पी0 के कम्युनिस्ट आगे रहे।
डाॅ0 अशरफ ने मुस्लिम जनता को अपने साथ लाना शुरू किया। डाॅ0 जेड0ए0 अहमद ने कुछ ही समय में अर्थात 3-4 महीनों में ही आर्थिक परिस्थितियों पर कई पुस्तकें लिख डालीं। भारत की कृषि समस्याओं पर इनमें इस तरह लिखा गया था कि आसानी से समझ में आ सके। ये पुस्तकें हज़ारों की संख्या में बिकीं। इनमें एक किताब थी जो विशेष तौर पर प्रसिद्ध हुई, वह पुस्तक थी ‘‘अग्रेरियन प्राॅब्लम इन इन्डिया’’ अर्थात भारत में कृषि समस्या, यह पुस्तक भी खूब बिकी। नेहरू ने इतना पसन्द किया कि वे कांग्रेस की एक सभा में अहमद का हाथ पकड़ कर गांधी के पास ले गए, उनका परिचय कराते हुए कहा कि यह वही नौजवान है जिसने अंग्रेरियन प्राॅब्लम लिखी है। गांधी तुरन्त उठे और अहमद को गले लगा लिया। फिर कहा कि मुझे खुशी है कि तुम्हारे नौजवान को पंडित ने कांग्रेस आफिस में काम की जिम्मेदारी दी है। आचार्य कृपलानी को यह सब पसन्द नहीं आ रहा था, वे दक्षिणपंथ की ओर झुकाव रखते थे, उन्होंने नेहरू, गांधी जी, पटेल इत्यादि से शिकायतें कीं। फलस्वरूप, एआईआईसी केन्द्र में काम में कुछ उलटफेर करना पड़ा। इसके अलावा, कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी और दूसरों गुटों के बीच तनाव भी चल रहा था। इन सभी ने अपने-अपने त्याग पत्र दे दिए और फिर नेहरू से भविष्य के बारे में सलाह की। जेड.ए. अहमद को नेहरू ने लखनऊ जाकर कांग्रेस राज्य कमेटी के पुनर्गठन का काम दिया। लेकिन अहमद इलाहाबाद में ही रहे, क्योंकि वे तुरन्त नहीं जा सकते थे। वहाँ उन्होंने विभिन्न प्रकार के प्रेस मजदूर यूनियनों के निर्माण में मददकी। इन सारी गतिविधियों से इलाहाबाद में आगे चलकर पार्टी बनाने में सहायता मिली। इस प्रकार यदि देखा जाय तो जहाँ 1936 में यू0पी0 (उस वक्त संयुक्त प्रांत या यूनाइटेड प्राविन्सेज) में कुछ थोड़े से लोग पार्टी के साथ थे। वहाँ 1940 आते-आते पार्टी जनाधार काफी बढ़ा और विस्तृत हो गया था। उस समय तक आर0डी0 भारद्वाज, जेड0ए0 अहमद, रमेश सिन्हा, पी0सी0 जोशी, एस0एस0 यूसुफ, अजय घोष और अन्य कई कम्युनिस्ट नेता, यू0पी0 में उभर चुके थे। जिनका न सिर्फ पार्टी के दायरे मंे बल्कि उस के बाहर काफी व्यापक क्षेत्र में प्रभाव था। साथ ही साथ वे राष्ट्रीय आजादी के आन्दोलन के भी महत्वपूर्ण नेताओं में गिने जाने लगे थे, उनमें से कई कांग्रेस मंे भी काम कर रहे थे जिससे कांग्रेस के अंदर वामपंथी शक्तियाँ मजबूत हो रही थीं।
रमेश सिन्हा एक शिक्षित परिवार मंे जन्मे थे। रमेश सिन्हा और हर्षदेव मालवीय एक ही क्लास में पढ़ते थे। उन दोनों ने आगे चलकर कम्युनिस्ट वामपंथी और राष्ट्रीय आन्दोलन के निर्माण में बड़ा योगदान दिया। इन साथियों ने इलाहाबाद में छात्रों के बीच कम्युनिस्ट गु्रप बनाने का काम किया।
फिरोजाबाद में चूड़ी मजदूरों, आगरा मंे जूते बनाने वाले मजदूरों, अशफाक तथा अन्य कामरेडों की देखरेख में हरिजन और मुस्लिम लोगों में, हाफिज अहमद के नेतृत्व में रेलवे वर्कर के बीच, कानपुर मंे व्यापक तौर पर मजदूरों के बीच, खासकर पूर्वी यू0पी0 में और अन्य हिस्सों में किसानों में पार्टी और विभिन्न जन संगठनों का काम सक्रियता से छा पड़ा। आगे चलकर पार्टी के झारखंडे राय, सरजू पाण्डेय, जय बहादुर सिंह और अन्य कई नेता उभरे, जिनकी लिस्ट काफी लम्बी है। यू0पी0 भूमि कम्युनिस्टों के लिए काफी उर्वरा साबित हुई।

अनिल राजिमवाले
क्रमश:

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