सोमवार, 9 जनवरी 2012

भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन में उत्तर प्रदेश का योगदान -5


1936 महत्वपूर्ण जन-संगठनों का निर्माण

जैसा कि सभी को ज्ञात है, 1936 में तीन अखिल भारतीय पैमाने के जन-संगठनों का जन्म यू0पी0 के ही लखनऊ में हुआ था। यह कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यू0पी0 में विभिन्न जन-संगठन पहले से ही काम कर रहे थे। छात्रों और नौजवानों के बीच छात्र संगठन, स्टूडेंट फेडरेशन, यूथ लीग आदि नामों से संगठन पहले से ही सक्रिय थे, जिनमें पी0सी0 जोशी, रुस्तम सटिन, रमेश सिन्हा, पंडित नेहरू और अन्य सक्रिय थे। 1929 मंे ही इलाहाबाद में एक यूथ लीग सक्रिय था, जिसमें पण्डित नेहरू, पीसी जोशी तथा अन्य सक्रिय थे। यूथ लीग ने यू0पी0 यंग कामरेड लीग बनाने मंे मदद की।
पीसी जोशी 1929 में मेरठ मुकदमे में गिरफ्तार हो गए। जोशी 1928 में यू0पी0 यंग कामरेड्स लीग के सचिव थे और साथ ही यू0पी0 में उभरते कम्युनिस्ट संगठन के भी सचिव थे। हालाँकि अभी यू0पी0 में औपचारिक तरीके से पार्टी नहीं बन पाई थी। पी0सी0 जोशी उस समय इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र थे, उनकी गिरफ्तारी के विरोध में यूनिवर्सिटी के छात्रों ने हड़ताल कर दी। छात्रों के कमरों की तलाशी ली गई, ताकि कम्युनिस्ट साहित्य मिल सके। इस दौरान गिरफ्तारी के खिलाफ छात्रों ने जुलूस भी निकाला। बाद में 500 से भी अधिक छात्रों ने यूथ लीग की सदस्यता ग्रहण कर ली।
नेहरू ने, पूछे जाने पर कम्युनिज्म के सिद्धांतों का समर्थन करते हुए कहा कि इसे समझने की जरूरत है और इसकी अच्छाइयों को व्यवहार में उतारने की आवश्यकता है।
जोशी की गिरफ्तारी के बाद नेहरू वाई0एल0 का दिशा निर्देशन करते रहे। 13 अप्रैल 1929 को इलाहाबाद में वाई0एल0 की एक मीटिंग हुई। 24 फरवरी को नेहरू ने लखनऊ में तिरंगा झण्डा इसी मीटिंग में फहराया। 13 अप्रैल 1929 को नेहरू ने वाई0एल0 की एक दिलचस्प मीटिंग इलाहाबाद में आयोजित की, इसमें छुट्टियों के दिनों में छात्रों के कार्यक्रम तय किए गए, इनमें सबसे महत्वपूर्ण था पी0सी0 जोशी का मेरठ षड्यंत्र मुकदमा लड़ने के लिए पैसे इकट्ठा करना।
इससे पता चलता है कि मेरठ मुकदमे के खिलाफ गोरखपुर तथा कुछ अन्य जगहों में भी वाई0एल0 काम कर रहे थे। 18-19 अगस्त 1929 को एक प्रांत-व्यापी छात्र नौजवान सम्मेलन वाई0एल0 के नेतृत्व में करने का निश्चय किया गया।
1936 में लखनऊ में ए0आई0एस0एफ0, अखिल भारतीय किसान सभा और और प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई। स्थापना संबंधी इनमें से प्रत्येक का इतिहास अत्यंत ही रोचक और शिक्षा-प्रद है, लेकिन स्थान की कमी के कारण हम विस्तार में न जाकर केवल कुछ ही घटनाओं का जिक्र करेंगे।
ए0आई0एस0एफ0 बनाने से पहले अंग्रेज शासक भाँप गये थे कि एक मजबूत छात्र संगठन बनने वाला है, इसलिए उन्होंने स्वयं ही एक अखिल भारतीय छात्र संगठन बनाने की पहल की। उस समय यू0पी0 (यूनाइटेड प्राविन्सेज आॅफ आगरा एण्ड अवध) के गवर्नर सर मैल्कम हैली थे। उन्होंने यू0पी0 के वाइस चांसलरों और दूसरे अधिकारियों को सम्मेलन बुलाने का आदेश दिया, उनकी योजना थी कि आगे चलकर इस संगठन
की ओर से एक अखिल भारतीय सम्मेलन बुलाया जा सके। इस संगठन का नाम था यू0पी0 यूनिवर्सिटी स्टुडेंट फेडरेशन। यह अंग्रेज समर्थित आधिकारिक छात्र संगठन था। इसकी एक बैठक 1936 के आरम्भ में बुलाई गई। राष्ट्रवादी, कम्युनिस्ट,
सोसलिस्ट और अन्य छात्रों ने इसमें भाग लेने का फैसला किया। अधिकारियों की ओर से राजा जार्ज पंचम की मृत्यु पर एक शोक प्रस्ताव लाया गया। राष्ट्रवादी छात्रों ने ब्रिटिश कम्युनिस्ट नेता शापुरजी सकलतवाला की मृत्यु पर भी एक शोक प्रस्ताव पेश किया। बस फिर क्या था, हंगामा मच गया, अंग्रेजों के पिट्ठू यह प्रस्ताव पास नहीं होने देना चाहते थे।
राष्ट्रवादी छात्रों ने मंच पर कब्जा कर लिया। शापुरजी की मृत्यु पर प्रस्ताव लाने वालों में शफीक नकवी जो बाद में यू0पी0 पार्टी के नेता बने और ए0आई0एस0एफ0 के संगठनकर्ता थे, अंसार हरवानी, अहमद जमाल किदवई, जगदीश रस्तोगी इत्यादि थे। कई छात्रों को रेस्टीकेट कर दिया गया। वाइस चांसलर तथा अन्य अधिकारियों
ने धमकियाँ दीं, लेकिन वे सफल नहीं हुए।
कम्युनिस्ट और राष्ट्रवादी छात्रों ने जवाब में एक अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन बुलाने की तैयारियाँ शुरू कर दीं। इस प्रकार ए0आई0एस0एफ0 के प्रसिद्ध लखनऊ सम्मेलन की नींव डाली गई। आगे चलकर सी0पी0आई0, सी0एस0पी0, कांग्रेस और अन्य संगठनों तथा व्यक्तियों की पहल कर ए0आई0एस0एफ0 के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई।
यू0पी0 यू0एस0एफ0 ने लखनऊ में 23 जनवरी 1936 को एक मीटिंग में तय किया कि एक अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन लखनऊ में ही आयोजित किया जाए। सम्मेलन की तैयारियों के लिए यू0पी0 प्रांत के विभिन्न शहरों में समितियों का गठन किया गया। लखनऊ, बनारस, इलाहाबाद, आगरा, अलीगढ़ और दूसरी जगहों में समितियाँ बनाई गईं। लखनऊ स्थित स्वदेशी लीग ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा की (कम्युनिस्टों का इस प्रक्रिया में काफी योगदान रहा), रमेश सिन्हा ने इलाहाबाद से ए0आई0एस0एफ0 के लखनऊ सम्मेलन में डेलीगेट की हैसियत से भाग लिया।
सम्मेलन को सुचारु रूप से चलाने के लिए स्वागत समिति बनाई गई, जिसमें यू0पी0 की महत्वपूर्ण हस्तियाँ शामिल की गईं। मई 1936 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के दौरान हरीश तिवारी और अन्य छात्र नेताओं ने पण्डित नेहरू से मुलाकात करके विस्तार से बातें कीं। साथ ही स्वयं नेहरू से सम्मेलन का उद्घाटन करने का अनुरोध किया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
लखनऊ में ए0आई0एस0एफ0 के स्थापना सम्मेलन की तैयारियों और कार्यवाहियों का अपने आप में एक रोचक इतिहास है। यू0पी0 के डेलीगेट्स को बलरामपुर हाउस (कैसरबाग) में ही ठहराया गया था। इसके अलावा छेदीलाल धर्मशाला मंे भी उनके रहने का इन्तजाम किया गया। बलरामपुर हाउस में विषय समिति की बैठक हुई। कुछ स्थानीय ‘‘राजाओं’’ ने रहने के इन्तजाम में सहायता की: जैसे बलरामपुर, महमूदाबाद, सलेमपुर, मनकापुर इत्यादि के राजा। यू0पी0 की विभिन्न स्वयं सेवक संस्थाओं ने ए0आई0एस0एफ0 सम्मेलन में सक्रिय भूमिका अदा की। मसलन - यू0पी0 एहरार लाल कुर्ता स्वयं सेवकों तथा अन्य ने अलग-अलग इन्तजाम के काम सँभाले।
ए0आई0एस0एफ0 के स्थापना सम्मेलन में यू0पी0 का अत्यंत ही सक्रिय और कई मौकों पर निर्णायक योगदान रहा। ए0आई0एस0एफ0 का केन्द्रीय कार्यालय लखनऊ से ही काम करने लगा और ए0आई0एस0एफ0 का सूचना केन्द्र भी यू0पी0 के अलीगढ़ में स्थापित किया गया। सम्मेलन मंे ए0आई0एस0एफ0 के कनविनर कैलाश नाथ वर्मा बनाए गए और एल0सी0 खन्ना तथा रमेश सिन्हा इसके सदस्य बनाए गए।

अखिल भारतीय किसान सभा और प्रलेस की स्थापना

अखिल भारतीय किसान सभा का स्थापना सम्मेलन 11 से 13 अप्रेल 1936 को लखनऊ में सम्पन्न हुआ। ध्यान रहे कि अखिल भारतीय किसान सभा की संगठन समिति का निर्माण भी मेरठ में ही 1935 में एक अखिल भारतीय बैठक में किया गया। यह भी उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) का कम्युनिस्ट और मूलगामी जन आन्दोलन में बहुत बड़ा योगदान था। इससे पहले यू0पी0 के कई जिलों और क्षेत्रों में किसान सभा की इकाइयाँ बन चुकी थीं। यू0पी0 मंे किसान आन्दोलन तेजी से उभर रहा था। ए0आई0के0एस0 का सम्मेलन कांग्रेस अधिवेशन के साथ ही हुआ। किसान सभा
का कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और सी0एस0पी0 के साथ बड़ा गहरा संबंध रहा। इस सम्मेलन की अध्यक्षता स्वामी सहजानंद सरस्वती ने की। सम्मेलन मंे एक हजार से भी अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए। तब तक यू0पी0 किसान संघ बन चुका था। सम्मेलन की तैयारियों और कामों में यू0पी0 से कई नेता सक्रिय रहे जैसे के0एम0 अशरफ, मोहनलाल गौतम तथा अन्य। ए0आई0के0एस0 सम्मेलन में कई निर्णय लिए गए जिनमें एक था जमींदारी प्रथा के खिलाफ संघर्ष। यू0पी0 के इलाकों में सामन्ती जमींदारी व्यवस्था की जड़ें काफी मजबूत थीं। इसके विरोध में यू0पी0 में कई जुझारू संघर्ष संगठित किए गए जिनमें कम्युनिस्टों की सक्रिय भूमिका रही। तालुक़ेदारी यू0पी0 के कई इलाकों मंे जमींदारी प्रथा का विशेष रूप था। 1937 में प्रदेश में एक किसान संगठन समिति बनाई गई जिसके डाॅ0 के0एम0 अशरफ संयोजक थे। प्रादेशिक किसान सम्मेलन पीलीभीत में 6-7 दिसम्बर 1937 को आयोजित किया गया।
जेड0ए0 अहमद ने ए0आई0के0एस0 के लखनऊ सम्मेलन में एक दर्शक प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया। उन्होंने प्रो0 रंगा और इंदुलाल याज्ञनिक के कहने पर और उनके प्रभाव में अपना मुख्य समय किसान आन्दोलन को देने का फैसला किया। वे यू0पी0 और बिहार में किसान सभा का सक्रिय कार्य करने लगे। किसानों की जमींदारी विरोधी लहर का नेतृत्व अभी तक तो कांग्रेस करती आ रही थी। वह अभी भी सक्रिय थी। जब मैदान में अधिक स्पष्ट और वैज्ञानिक विचारों वाले कम्युनिस्ट तथा अन्य लोगों के आने से किसान आन्दोलन को अधिक साफ दिशा मिली तो यू0पी0 में किसान आन्दोलन बढ़ने लगा। अवध में किसान सभा ने लगान बंदी का आन्दोलन छेड़ दिया।
1938 में जेड0ए0 अहमद ए0आई0के0एस0 की सर्वोच्च निकाय के सदस्य बनाए गए। इस हैसियत से वे बिहार और दूसरे प्रांतों का दौरा भी करते रहे।
1938 मंे कांग्रेस के प्रदेश सचिव की हैसियत से अहमद, संयुक्त सचिव जगन प्रसाद रावत के साथ चैरी चैरा गए। वहाँ कांग्रेस दो हिस्सों में बटी थी। किसानों के समर्थन और जमींदारों के समर्थन वाले गुट थे। शिब्बन लाल सक्सेना वहाँ 1932 से ही किसानों का जुझारू संघर्ष चला रहे थे। चैरी चैरा का अनुभव अहमद के लिए काफी महत्व का था। उन्होंने फिर मुंशी कालिका प्रसाद के साथ कई दिनों का दौरा किया और गाँव-गाँव रहे तथा किसान जीवन एवं संघर्ष को नजदीक से देखा। किसान संघर्षांे के दौरान उनका परिचय किसान और कांग्रेस नेता पुरुषोत्तम दास टण्डन से भी हुआ।
1939 में सुप्रसिद्ध किसान नेता, कम्युनिस्ट और लेखक राहुल सांकृत्यायन, अहमद से मिलने इलाहाबाद आए और 20-25 दिनांे तक उनके साथ रहे। वे उनके घर के सामने एक बड़े मैदान में हरिजन आश्रम के निकट एक झोपड़ी मंे रुके, जिसे अहमद ने बनवा दी थी। शायद यहीं रहते हुए राहुल ने अपनी पुस्तक, वोल्गा से गंगा, के कुछ पृष्ठ भी लिखे थे। 1940 में जेड0ए0 अहमद को गिरफ्तार कर देवली सेंट्रल जेल भेज दिया गया। लेकिन इस से पहले ही उनका कई नेताओं के साथ गहरा सम्पर्क कायम हो चुका था। तब तक आजमगढ़ के जय बहादुर सिंह और गाजीपुर के सरयू पाण्डेय कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता के अलावा पूर्वी उत्तर (तब संयुक्त प्रांत) प्रदेश के किसान आन्दोलन के नेताओं के रूप में जाने जाने लगे थे। इन तीनों नेताओं को ‘त्रिगुट’ के नाम से जाना जाता था, उन्होंने पूर्वी यू0पी0 में काफी मजबूत किसान आन्दोलन खड़ा कर दिया।
जय बहादुर सिंह ने तो आमजगढ़ में काफी किसान आन्दोलन चला रखे थे, उनकी विशेष प्रसिद्धि पिरीडीह ट्रेन डकैती काण्ड में सजा काटकर बाहर आने के बाद हुई। जय बहादुर सिंह ने बेदखली और अन्य समस्याओं पर तथा जमींदारों के बार-बार जुल्मों के विरोध में शक्तिशाली संघर्ष चलाए। यहाँ तक कि उनके ही परिवार के जमींदारों ने किसानों की जमीनें छीन ली थीं और दियारे की सैकड़ों बीघा जमीन से उन्हें बेदखल कर दिया था। जय बहादुर ने किसानों के संघर्षों का नेतृत्व कर उनकी जमीनें उन्हें वापस दिलवा दीं। किसानों से उन्होंने कहा कि रोने धोने से काम नहीं चलेगा, एक होकर लड़ो। जमींदारों ने अपना माथा पीट लिया कि देखो हमारे ही घर मं कलंक पैदा हो गया है। गाजीपुर के सरयू पाण्डे 1942 के आन्दोलन में जेल की सजा पा चुके थे, जेल में उनका सम्पर्क कम्युनिस्टों से हुआ और वे जेल से बाहर आने पर पार्टी में शामिल हो गए। आगे चलकर वे सी0पी0आई0 के न सिर्फ प्रांत और राज्य स्तरीय बल्कि अखिल भारतीय नेता भी बने। जेल के बाद उन्होंने पूरे जिले में किसान संघर्ष तेज कर दिया और उनके नेतृत्व में बड़े-बड़े किसान आन्दोलन चले। उन्हें घर-घर के लोग पहचानते थे। एक बार बलिया के एक गाँव में एक हरिजन महिला के घर मंे पुलिस आ धमकी, पुलिस सरयू पाण्डेय की खोज मंे थी। उस महिला को मालूम था कि वे कहाँ छिपे हैं, लेकिन पुलिस द्वारा पूछने पर भी उसने नहीं बताया। तब पुलिस ने उसकी तीन दिनों की बच्ची को जूतों की ठोकरों से मार डाला, फिर भी उसने सरयू पाण्डेय का पता नहीं बताया।

अनिल राजिमवाले
क्रमश:

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