कामरेड पी0सी0 जोशी की 100वीं वर्षगाँठ हम 2007 में सारे देश भर में मना चुके हैं। यह असाधारण व्यक्ति और असाधारण प्रतिभा वाला कम्युनिस्ट भी यू0पी0 ही की देन था। पी0सी0 जोशी के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है और लिखा जाना चाहिए। दुर्भाग्य से उनके बारे में बहुत कम लिखा गया है, और उनकी रचनाओं की जानकारी तो लोगों को नहीं के बराबर है। यहाँ हम उनके बारे में यू0पी0 के सन्दर्भ में ही कुछ कहेंगे। पूरन चन्द जोशी का जन्म 14 अप्रैल 1907 को (राहुल 14 फरवरी लिखते हैं) अलमोड़ा जिले में हुआ था। आज कल अलमोड़ा, उत्तराखण्ड में है, जोशी की पढ़ाई लिखाई अलमोड़ा और इलाहाबाद मंे हुई, और उन्होंने 1926 में एम0ए0 पास किया। बाद में उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की और नैनी तथा मेरठ जेलों से परीक्षाएँ दीं। उनका परिवार उन्हें आई0सी0एस0 के लिए तैयार कर रहा था। लेकिन 1928 में कलकत्ता से एक टेªड यूनियन नेता आफताब अली अलमोड़ा आए, उनके पास रजनी पामदत्त
(आर0पी0डी0) की इण्डिया टुडे या आज का भारत नामक सुप्रसिद्ध किताब थी। उसे पढ़ने के बाद तो जोशी आई0सी0एस0 वगैरह भूल गए। उनकी जिन्दगी की दिशा बदल गई। इस बीच यू0पी0 और शेष भारत में यूथ लीग के नाम से नौजवानों और छात्रों के संगठन व्यापक रूप से उभर रहे थे, जैसा कि हम देख चुके हैं, इनके नेताओं में सर्वप्रथम पंडित नेहरू थे। यूथ लीग के संगठन इलाहाबाद में बड़े ही मजबूत थे। पी0सी0 जोशी भी इसके प्रभाव में आए। जल्द ही वे यू0पी0 यंग कामरेड्स लीग के सचिव बन गए, जो यूथ लीग का ही एक हिस्सा था। जोशी के सहयोगियों में सी0पी0आई0 के वरिष्ठ नेता एस0जी0 सरदेसाई थे, जो उस समय सर तेज बहादुर सप्रू के सचिव का काम कर रहे थे।
1928 में मेरठ में एक मजदूर किसान सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें पी0सी0 जोशी ने भी भाग लिया। यह इस संगठन के अखिल भारतीय सम्मेलन की तैयारियों के सिलसिले में था। एम0ए0 पास करने के बाद जोशी ने इलाहाबाद में ही टूरों का काम ले लिया, लेकन वे ज्यादा समय मजदूरों, किसानों और छात्रों के बीच काम में देते थे। उन्होंने कानपुर के मजदूरों के बीच भी काम करना शुरू किया। वे जल्द ही मजदूर किसान पार्टी की यू0पी0 इकाई के सचिव बनाए गए और फिर इसकी अखिल भारतीय कार्यकारिणी में भी ले लिए गए। साथ ही वे कम्युनिस्ट पार्टी का काम भी गुप्त रूप से कर रहे थे। खासकर यू0पी0 में, यह बात जल्द ही उजागर होकर सामने आ गई। पी0सी0 जोशी इलाहाबाद के हालैंड हाल में रहा करते थे। मार्च 1929 में एक दिन पुलिस ने समूचे हाल को घेर लिया, यह खबर आग की तरह चारों ओर फैल गई। अन्य हाॅस्टलों और कमरों की तलाशी भी ली गई, पी0सी0 जोशी को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे सम्बंधित घटनाओं का उल्लेख हम पहले कर आए हैं।
पी0सी0 जोशी को मेरठ षड्यंत्र केस में गिरफ्तार किया गया था, इससे पता चलता है कि उस समय तक वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उच्च नेताओं की श्रेणी में आ चुके थे, वे उन 32 में थे जिन्हें मेरठ केस में पकड़ा गया था।
पी0सी0 जोशी को पहले तो नैनी सेन्ट्रल जेल में रखा गया, वहाँ से उन्होंने कानून की परीक्षाओं की तैयारियाँ कीं। जेल में ही उनके लिए पढ़ने की सामग्री लाई गई थी, फिर उन्हें मेरठ जेल ले जाया गया, जहाँ वे पाँच वर्षों तक रहे। वहाँ हर कैदी अपना अपना बयान देता था, जोशी ने भी अपना बयान दिया। जोशी उस वक्त मात्र 22 साल के नौजवान थे। लेकिन अधिकतर कागजी कार्यवाही तथा लिखने का काफी काम उनके जिम्मे था। वे बड़े अच्छे तर्क दे सकते थे। उन्होंने डिगबी, हण्टर, कुक जैसे स्रोतों के प्रमाण पेश करते हुए बताया कि कैसे भारत गरीबी और भुखमरी में डूबा हुआ था। जोशी ने जेल से ही साम्राज्यवाद विरोधी संयुक्त मोर्चा और क्रांति के सिद्धांत पेश किए। मेरठ केस ने अभियुक्तों को अपने विचारों का प्रचार प्रसार करने में काफी मदद की। प्रेस, अखबारों, बातचीत इत्यादि के जरिए कम्युनिस्ट विचार लोगों तक पहुँचे।
अंग्रेजों की चाल काफी हद तक नाकाम रही। कम्युनिस्टों को अपने विचार विकसित करने और अध्ययन का भी काफी मौका मिला। पी0सी0 जोशी ने अपना समय माक्र्सवाद के गहन अध्ययन और पठन में लगाया, साथ ही उन्होंने मेरठ अभियुक्तों का कानूनी काम काफी हद तक स्वयं ही पूरा किया। पी0सी0 जोशी को 1933 में मेरठ से रिहा कर दिया गया, अन्य अभियुक्त भी रिहा कर दिए गए। अब जोशी ने कानपुर के मजदूरों में काम करना शुरू किया, लेकिन उन्हें फिर से फरवरी 1935 में गिरफ्तार करके कानपुर और गोरखपुर जेलों में रखा गया, लेकिन जेल में उनका रिकार्ड इतना अच्छा था और उन्होंने इतनी अच्छी बागवानी की, कि जल्द ही उन्हें रिहा कर दिया गया। जैसा कि हम ने पहले देखा उन्हें बहुत कम उम्र से पार्टी में महामंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई।
पी0सी0 जोशी के नेतृत्व में यू0पी0 और सारे भारत में पार्टी को पुनर्गठित किया जाने लगा। पार्टी के कुछ संकीर्ण विचारों के नेताओं ने, जो बाहर थे पार्टी और आन्दोलन में तोड़ फोड़ कर रखी थी, और न सिर्फ गुट बल्कि अलग पार्टियाँ भी बना रखी थीं। उन सबको एक करने का काम जोशी ने किया। धीरे-धीरे यू0पी0 और सारे देश में पार्टी फिर से अपने पैरों पर खड़ी होकर आगे बढ़ने लगी।
पी0सी0 जोशी की एक विशेषता यह थी कि उन्होंने पार्टी को केवल मजदूरों और किसानों तक सीमित नहीं रखा बल्कि व्यापक, मध्यम तबकों, पढ़े लिखे लोगों, कला और साहित्य के क्षेत्रों में भी पार्टी को फैलाया। जोशी के काल में पार्टी सांस्कृतिक पुनर्जीवन का साधन भी बनी। इसमें यू0पी0 का विशेष योगदान रहा। निराला, पंत, प्रेमचन्द और अनेक दूसरे साहित्यकार, यू0पी0 और समूचे देश से पार्टी और उसके जन संगठनों की ओर आकर्षित हुए। राहुल जैसे लेखकों और इतिहासकारों ने महान भूमिका अदा की। आम लोग माक्र्सवादी, क्रांतिकारी और समाजवादी साहित्य पढ़कर पार्टी की ओर आए, कई पीढि़याँ इससे प्रभावित र्हुइं, और आज भी हो रही हैं। आज भी राहुल की पुस्तकें पढ़कर नौजवान समाजवाद और कम्युनिज्म की ओर आकर्षित होते हैं। जोशी ने कला, साहित्य और फिल्म के क्षेत्रों में कम्युनिस्ट पार्टी और आई0पी0टी0ए0 को सामाजिक तथा सांस्कृतिक नवीनीकरण का माध्यम। (हथियार) बनाया, यह इस देश को उनका असाधारण योगदान रहा। इसमें यू0पी0 का खास योगदान था, लेकिन हम इसके विस्तार में यहाँ नहीं जा पाएँगे। यह एक अलग विषय है। कैफी आजमी और अनेकानेक अन्य जन कलाकारों ने आम जनता के बीच और फिल्मों में प्रगतिशील, क्रांतिकारी और समाजवादी विषयों को केन्द्र बनाया। यह काम बाद में आगे नहीं बढ़ पाया, जिसकी मुख्य जिम्मेदारी 1948-50 की संकीर्णतावादी दुस्साहसिक समझदारी पर जाती है। उसके बाद कम्युनिस्ट आंदोलन जोशी के जाने के बाद भी उन ऊँचाइयों को छू नहीं पाया। पी0सी0 जोशी ने प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) और आई0पी0टी0ए0 को देश के प्रमुख संगठनों का रूप दे दिया। अन्य पहलुओं के अलावा जोशी ने यू0पी0 में पार्टी के विकास पर विशेष ध्यान दिया।
अजय घोष का उत्तर प्रदेश पार्टी में योगदान
अजय घोष के एक जनरल सेक्रेटरी के रूप में यू0पी0 पार्टी का सी0पी0आई0 में योगदान रहा। अजय घोष ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और यू0पी0 पार्टी के इतिहास में अत्यंत ही महत्वपूर्ण और केन्द्रीय भूमिका अदा की। पी0सी0 जोशी ने सी0पी0आई0 और उसके जन संगठनों का निर्माण करते हुए एक कम्युनिस्ट आन्दोलन की मजबूत नींव रखी जो आज भी अपनी सारी कमियों के बावजूद कम्युनिस्ट आंदोलन के काम आ रही है।
जोशी, भारत और यू0पी0 में, पार्टी और कम्युनिस्ट एवं व्यापक जन आंदोलनों एवं जन संगठनों तथा पार्टी अखबारों और साहित्य, प्रेस इत्यादि के निर्माणकर्ता थे। बी0आर0टी0 आत्मघाती लाइन (1948-50) के जमाने में यह सब बरबाद कर दिया गया। पार्टी बिखर गई, सदस्यता में भारी गिरावट आई, जन संगठन चकनाचूर हो गए, और कुल मिलाकर एक प्रकार से कम्युनिस्ट आंदोलन मृत्युप्राय हो गया। उसके बाद यह अजय घोष थे, जिन्होंने कदम ब कदम और धीरे-धीरे पार्टी को सही पटरी पर लाकर पार्टी एवं जन संगठनों का पुनर्निर्माण किया। यह कोई आसान काम नहीं था। इसी टूटी-फूटी अवस्था में सी0पी0आई0 ने 1952 का पहला आम चुनाव लड़ा और विपक्ष की दूसरी तथा देश की पहली पार्टी के रूप में उभर कर आई। यदि 1948 का आत्मघात नहीं होता, तो पार्टी बड़ी शक्ति बन जाती। बी0आर0टी0 लाइन में तो हमने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर रखा था, क्योंकि क्रांति तुरन्त करनी थी और उसके परिणाम भी जब ही सबके सामने आ गए थे।
अजय घोष ने इन बिखरे टुकड़ों को इकट्ठा कर पार्टी को फिर से खड़ा किया, यह उनकी सबसे बड़ी देन रही। अजय घोष के पिता डाॅ0 सचिन्द्र घोष 1899 में कलकत्ता से कानपुर आए, और वहीं बस गए, वे पेशे से डाॅक्टर थे। अजय का जन्म बंगाल के मिहिजम (अब चितरंजन में) नामक गाँव में 20 फरवरी 1909 को हुआ था, फिर उन्हें कानपुर लाया गया, और उसके बाद वे वहीं पले बढ़े। राहुल द्वारा प्रस्तुत एक अन्य विवरण के अनुसार अजय का जन्म कानपुर में ही 22 फरवरी 1908 को हुआ था, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। उनकी बड़ी बहन भी कानपुर में ही रहती थीं और अजय की मृत्यु के बाद भी कुछ वर्षों तक जीवित रहीं।
अजय का पालन पोषण बड़े ही अनुकूल पढ़ाई लिखाई के वातावरण में हुआ। उनको कानपुर के आदर्श बंग विद्यालय में भर्ती कर दिया गया। वे मिडिल की परीक्षा में प्रथम आए। वे आगे चलकर विज्ञान के विद्यार्थी बने, साथ ही उन्हें बंगला समेत साहित्य में बड़ी रुचि रही। अजय बड़ी संख्या में पुस्तकें और साहित्य पढ़ते थे। स्कूल में तरुण भट्टाचार्या द्वारा स्थापित तरुण संघ या यूथ लीग में वे शामिल हो गए। वे रामकृष्ण मिशन के कामों में भी भाग लिया करते थे, दिलचस्प बात यह है कि भविष्य के सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी विजय कुमार सिन्हा और बटुकेश्वर दत्त भी इसी संघ में शामिल थे। सुरेश बाबू वास्तव में यू0पी0 के क्रांतिकारियों के संगठन कर्ता थे, वे अजय के लिए एक उदाहरण थे।
1921 में अजय के स्कूल में देशबन्धु सी0आर0 दास की गिरफ्तारी के विरुद्ध छात्रों की हड़ताल हो गई, जिसमें उन्होंने सक्रियता से भाग लिया। अजय ने 1920-22 के असहयोग आंदोलन में वालंटियर बनने की कोशिश भी की, लेकिन कम उम्र के कारण उन्हें इजाजत नहीं मिली। बटुकेश्वर दत्त और विजय कुमार सिन्हा अजय के घर नियमित रूप से आया करते थे। अजय के पिता ने देखा कि यह लड़का किसी और दिशा में जा रहा है अर्थात क्रांतिकारी रास्ते पर। लेकिन उन्होंने इसमें कोई दखल नहीं दिया और अजय को पूरी आजादी दी।
1922 में अजय को राजकीय कालेज में भर्ती कर दिया गया। वे भारी संख्या में साहित्य पढ़ रहे थे। उन्होंने 1924 में लेनिन की मृत्यु पर शोक भी मनाया। अजय ने विजय के साथ मिलकर तीन वर्षों तक निर्मला नाम की एक पत्रिका भी निकाली। 1924 में अजय कानपुर के क्राइस्ट चर्च कालेज में भर्ती हुए। उन्होंने केमिस्ट्री और विज्ञान विशेष तौर पर पढ़ा ताकि बम बनाने का तरीका जान सकें। उन्होंने रेड बंगाल नामक एक पत्रिका का वितरण करना भी शुरू किया, साथ ही पिस्टल चलाने की पै्रक्टिस भी की।
1926 में अजय घोष इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में भर्ती हो गए और 1929 में उन्हें बी0एस0सी0 की डिग्री मिली। वे हिन्दू हाॅस्टल में रहा करते थे। उनका कमरा क्रांतिकारी गतिविधियों का केन्द्र बनता गया। उनके कमरे में अब भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, शिव वर्मा और अन्य क्रांतिकारी आने लगे और बैठके करने लगे तथा रहने भी लगे।
अनिल राजिमवाले
क्रमश:
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