इतने दिनों से अन्ना गैंग तमाम सरकारी महकमों और सत्ताधारी गैंग के नेताओं, मंत्रियों को भ्रष्ट, चोरडाकू, लुटेरा घोषित करती चली आ रही थी, अब सत्ताधारी गैंग के धुरंधरों ने पूरी अन्ना गैंग को बदनाम करने के लिए एक सूत्रीय अभियान छेड़ दिया है। भ्रष्टाचार विरोधी सम्प्रदाय के कुछ लोग इधरउधर से टँगड़ी मारकर रायता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि फैले रायते में अन्ना गैंग फिसलफिसल कर गिरे। सीन देखकर लग रहा है जैसे मोहल्ले के बच्चों की परस्पर विरोधी गैंगें खेल ही खेल में अचानक एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोलकर वाक्युद्ध में मुब्तिला हो गई हों। एक गैंग हमला करती हुई दूसरी से कह रही है तू चोर! दूसरी काउन्टर हमला करती हुई पहली से कहती है तू चोर। पहली फिर हमले में तेज़ी लाते हुए कहती है तेरा बाप चोर, तो दूसरी प्रत्युत्तर में कहती है तेरा चाचा चोर, तेरा मामा चोर। पहली फिर ऐलानियाँ हमला करती है तेरा दादा चोर, परदादा चोर। दूसरी गैंग के सदस्य अपने हमले को और व्यापक बनाते हुए चिल्लाते हैं तू चोर, तेरा बाप चोर, तेरा पूरा खानदान चोर। इस तरह दोनों गैगें लड़झगड़कर एकदूसरे के खानदान की पोलपट्टी खोलते हुए अपनी भड़ास निकालती रहती हैं और मोहल्ले की तीसरी गैंग घात लगाए बैठी रहती है कि ये दोनों गैंगें लड़झगड़कर परिदृय से बाहर का रास्ता नापें तो हम झट से मैदान हथिया लें।
जहाँ तक चोरलुटेरों का सवाल है, सत्ताधारियों में तो इतने चोरलुटेरे निकल आए हैं कि अब तो किसी को गवाह सबूत तक देने की ज़रूरत नहीं होती। किसी को झूठे से ही यदि कह दिया जाए कि फलाँ विभाग का मंत्री चोर है तो पब्लिक आँख मूँदकर मान ले कि हाँ भैया ज़रूर होगा। सत्तासुख में लीन पाँचदस फीसदी लोग लूटखसौट की संस्कृति के झंडाबरदार बने हुए हैं और अन्ना गैंग इस लूटखसौट में कोई चोरी चकारी न हो इसके लिए माथाफोड़ी कर रही हैं। राष्ट्रीय संपदा की खुल्लमखुल्ला लूट में कोई भ्रष्ट गैरकानूनी तरीके से अपना घर न भर सके इसके लिए अन्ना और उनकी गैंग लोकपाल’ के लिए मचल रही है। उन्हें ऐसा लोकपाल चाहिए जो भ्रष्टाचारियों का गला मसक सके, उन भ्रष्टाचारियों का जो पैसा खाखाकर पूँजीवादी विकास’ की अंधाधुध रफ्तार में अडं़गा डाल रहे हैं, उसी पूँजीवादी विकास’ की जो गरीब मजदूर किसानों का गला दाबदाबकर उफना पड़ रहा है। इन भ्रष्टाचार विरोधी संतों को महँगाई से कोई मतलब नहीं, गरीबी बेरोज़गारी से कोई लेना देना नहीं, शोषण हो, दमन हो, उत्पीड़न हो, सामाजिक पिछड़ापन हो, साम्प्रदायिकता हो, धार्मिक उन्माद हो, जातिगत वैमनस्य हो, सब कुछ हो बस भ्रष्टाचार’ न हो। लोग एक बस भ्रष्टाचार’ न करें बाकी जिसकी जो मज़ीर करता रहे हमें मतलब नहीं!
अब भ्रष्टाचार विरोधी संतों साध्वियों की पोलें खोली जा रही हैं तो हमें बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हो रहा है बल्कि आश्चर्य तो हमें तब हो रहा था जब उनकी पोलें नहीं खोली जा रही थीं। क्योंकि वे ॔तू चोर तू चोर’ चिल्ला रहे थे और चोरों की तरफ से ॔तेरा बाप चोर’ की आवाज़ नहीं आ रही थी। बात दरअसल रोकड़े’ की है। जब भी रोकड़े’ की बात आती है तो अच्छे अच्छे लोग नीतिनैतिकता की तमीज़ को मैलीकुचैली कमीज़ की तरह खूँटी पर टाँगकर दोदो कौड़ी के लिए टुच्चों की तरह घटिया हरकतें करते दिखाई देते हैं। सरकार की ओर से किराया माफ टिकट पर हवाई जहाज़ के मज़े लेकर प्रायोजकों से पूरी किराए की वसूली शुद्ध रूप से ठगी नहीं तो और क्या है। देश में और भी कई शरीफज़ादे मौका मिलते ही एस़ी थर्ड क्लास में सफर कर फर्स्ट क्लास का पैसा वसूल करते हैं या एस़ी थर्ड क्लास का पैसा वसूलकर सेंकड क्लास स्लीपर में सफर कर लेते हैं। नीचे लेवल पर हों सकता है कुछ टुच्चे ऐसे भी हो जो सेकंड क्लास स्लीपर का पैसा वसूल कर जनरल बोगी में ठुसकर पैसा बचा लेते हों या जनरल क्लास का पैसा वसूलकर ट्रेन की छत पर बैठकर चले जाते हों। जैसा टुच्चा वैसी हरकत, कुछ तो हराम की कमाई हो। इज्ज़त का भले फालूदा हो जाए मगर हराम का माल ज़रूर खखोरेंगे। हम नैतिकता की भ्रष्टता के प्रति बिल्कुल चिंतित नहीं, इसलिए हराम का माल पाने की तमन्ना हरेक के सिर च़कर बोलती है। मगर इस तरह अनैतिकता से चाँपे गए पैसों से परोपकार की बीन बजाने का क्या अर्थ है! इससे तो बेहतर है कि खुले आम चौर्यकर्म और ठगी शुरू कर दी जाए। यूँ चेहरे पर शराफत का उजला मुखौटा लगाकर चोर दरवाज़ों से पैसा चाँपने की क्या तुक है। अनैतिकता से बनाई गई रकम से अनैतिक कारोबार भले सध जाए, समाजसेवा की नैतिकता कैसे सध सकती है! डकैत अगर कहने लगे कि साहब हमने एक पैसा भी अपनी अय्याशी पर खर्च नहीं किया, मानव मात्र की सेवा के लिए डकैती डाली है, तो मेरे ख़याल से भारतीय दंड संहिता उसे फूलों की माला पहनाकर घर रवाना नहीं कर देगी।
इधर आजकल मजे़दार वाक़िया चल रहा है। करोड़ों रुपया खाकर डकार भी न लेने वाले लोग किराए में टुच्चाई से बचाई मामूली रकम पर नज़र गड़ाए हुए हैं। जनता के विश्वास को खड़ेखड़े मिट्टी में मिलाने वाले एक ज़रा से बॉन्ड के उल्लंघन पर बदसलूकी पर उतर आएँ हैं। इधर से चोरचोर की चिल्लाचोट पर उधर से भी चोरचोर चिल्लाया जा रहा है। किसी ने सच ही कहा है कि चोरों को सारे नज़र आते है चोर! वही सीन है, एक गैंग उधर से चिल्ला रहा है तू चोर तेरा बाप चोर और दूसरा इधर से कह रहा है तेरा दादा चोर तेरा नाना चोर।
प्रमोद ताम्बट
मो. 9893479106
अब भ्रष्टाचार विरोधी संतों साध्वियों की पोलें खोली जा रही हैं तो हमें बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हो रहा है बल्कि आश्चर्य तो हमें तब हो रहा था जब उनकी पोलें नहीं खोली जा रही थीं। क्योंकि वे ॔तू चोर तू चोर’ चिल्ला रहे थे और चोरों की तरफ से ॔तेरा बाप चोर’ की आवाज़ नहीं आ रही थी। बात दरअसल रोकड़े’ की है। जब भी रोकड़े’ की बात आती है तो अच्छे अच्छे लोग नीतिनैतिकता की तमीज़ को मैलीकुचैली कमीज़ की तरह खूँटी पर टाँगकर दोदो कौड़ी के लिए टुच्चों की तरह घटिया हरकतें करते दिखाई देते हैं। सरकार की ओर से किराया माफ टिकट पर हवाई जहाज़ के मज़े लेकर प्रायोजकों से पूरी किराए की वसूली शुद्ध रूप से ठगी नहीं तो और क्या है। देश में और भी कई शरीफज़ादे मौका मिलते ही एस़ी थर्ड क्लास में सफर कर फर्स्ट क्लास का पैसा वसूल करते हैं या एस़ी थर्ड क्लास का पैसा वसूलकर सेंकड क्लास स्लीपर में सफर कर लेते हैं। नीचे लेवल पर हों सकता है कुछ टुच्चे ऐसे भी हो जो सेकंड क्लास स्लीपर का पैसा वसूल कर जनरल बोगी में ठुसकर पैसा बचा लेते हों या जनरल क्लास का पैसा वसूलकर ट्रेन की छत पर बैठकर चले जाते हों। जैसा टुच्चा वैसी हरकत, कुछ तो हराम की कमाई हो। इज्ज़त का भले फालूदा हो जाए मगर हराम का माल ज़रूर खखोरेंगे। हम नैतिकता की भ्रष्टता के प्रति बिल्कुल चिंतित नहीं, इसलिए हराम का माल पाने की तमन्ना हरेक के सिर च़कर बोलती है। मगर इस तरह अनैतिकता से चाँपे गए पैसों से परोपकार की बीन बजाने का क्या अर्थ है! इससे तो बेहतर है कि खुले आम चौर्यकर्म और ठगी शुरू कर दी जाए। यूँ चेहरे पर शराफत का उजला मुखौटा लगाकर चोर दरवाज़ों से पैसा चाँपने की क्या तुक है। अनैतिकता से बनाई गई रकम से अनैतिक कारोबार भले सध जाए, समाजसेवा की नैतिकता कैसे सध सकती है! डकैत अगर कहने लगे कि साहब हमने एक पैसा भी अपनी अय्याशी पर खर्च नहीं किया, मानव मात्र की सेवा के लिए डकैती डाली है, तो मेरे ख़याल से भारतीय दंड संहिता उसे फूलों की माला पहनाकर घर रवाना नहीं कर देगी।
इधर आजकल मजे़दार वाक़िया चल रहा है। करोड़ों रुपया खाकर डकार भी न लेने वाले लोग किराए में टुच्चाई से बचाई मामूली रकम पर नज़र गड़ाए हुए हैं। जनता के विश्वास को खड़ेखड़े मिट्टी में मिलाने वाले एक ज़रा से बॉन्ड के उल्लंघन पर बदसलूकी पर उतर आएँ हैं। इधर से चोरचोर की चिल्लाचोट पर उधर से भी चोरचोर चिल्लाया जा रहा है। किसी ने सच ही कहा है कि चोरों को सारे नज़र आते है चोर! वही सीन है, एक गैंग उधर से चिल्ला रहा है तू चोर तेरा बाप चोर और दूसरा इधर से कह रहा है तेरा दादा चोर तेरा नाना चोर।
प्रमोद ताम्बट
मो. 9893479106
7 टिप्पणियां:
Nice post .
http://www.liveaaryaavart.com/2012/01/blog-post_3011.html
आपको नव वर्ष 2012 की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
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कल 03/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
चोर चोर पहले चिल्लायेंगे और जब जनता त्रस्त हो जायेगी तो चैन कि वंशी बजायेंगे .. काम ऐसे ही चलता रहेगा जैसे अभी चल रहा है .
raajneeti hai sahab...bhrashtachaar ki raajneeti...
यही आज -कल की राजनीति है...सार्थक आलेख
बहुत बढ़िया आलेख..
sundar pravishti ke liye abhar
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